BK Murli Hindi 29 April 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 29 April 2016

    29-04-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    “मीठे बच्चे - बाप समान लवली बनने के लिए अपने को आत्मा बिन्दु समझ बिन्दु बाप को याद करो”   

    प्रश्न:

    याद में रहने की गुप्त हड्डी मेहनत हर एक बच्चे को करनी है - क्यों?

    उत्तर:

    क्योंकि याद के बिगर आत्मा, पाप आत्मा से पुण्य आत्मा नहीं बन सकती। जब गुप्त याद में रहे, देही-अभिमानी बनें, तब विकर्म विनाश हों। धर्मराज की सजाओं से बचने का साधन भी याद है। माया के तूफान याद में ही विघ्न डालते हैं इसलिए याद की गुप्त मेहनत करो तभी लक्ष्मी-नारायण जैसा लवली बन सकेंगे।

    गीत:-

    ओम् नमो शिवाए...   

    ओम् शान्ति।

    यह महिमा है सबके बाप की। याद किया जाता है भगवान अर्थात् बाप को, उन्हें मात-पिता कहते हैं ना। गॉड फादर भी कहा जाता है। ऐसे नहीं सब मनुष्यों को गॉड फादर कहेंगे। बाबा तो उनको (लौकिक बाप को) भी कहते हैं। लौकिक बाप जिसको कहते हैं वह भी फिर पारलौकिक बाप को याद करते हैं। वास्तव में याद करने वाली आत्मा है, जो लौकिक बाप को भी याद करती है। वह आत्मा अपने रूप को, आक्युपेशन को नहीं जानती है। आत्मा अपने को ही नहीं जानती तो गॉड फादर को कैसे जानेगी। अपने लौकिक फादर को तो सब जानते हैं, उनसे वर्सा मिलता है। नहीं तो याद क्यों करें। पारलौकिक बाप से जरूर वर्सा मिलता होगा। कहते हैं ओ गॉड फादर। उनसे रहम, क्षमा मागेंगे क्योंकि पाप करते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है। परन्तु आत्मा को जानना और फिर परमात्मा को जानना, यह डिफीकल्ट सब्जेक्ट है। इज़ी ते इज़ी और डिफीकल्ट ते डिफीकल्ट। भल कितना भी साइन्स आदि सीखते हैं, जिससे मून तक चले जाते हैं। तो भी इस नॉलेज के आगे वह तुच्छ है। अपने को और बाप को जानना बड़ा मुश्किल है। जो भी बच्चे अपने को ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हैं, वह भी अपने को आत्मा निश्चय करें। मैं आत्मा बिन्दी हूँ, हमारा बाप भी बिन्दी है - यह भूल जाते हैं। यह है डिफीकल्ट सब्जेक्ट। अपने को आत्मा भी भूल जाते तो बाप को याद करना भी भूल जाते। देही- अभिमानी बनने का अभ्यास नहीं है। आत्मा बिन्दी है, उनमें ही 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। जो मैं आत्मा भिन्न-भिन्न शरीर ले पार्ट बजाती हूँ, यह घड़ी-घड़ी भूल जाता है। मुख्य बात यही समझने की है। आत्मा और परमात्मा को समझने के सिवाए बाकी नॉलेज तो सबकी बुद्धि में आ जाता है। हम 84 जन्म लेते हैं, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी ... बनते हैं। यह चक्र तो बहुत सहज है। समझ जाते हैं। परन्तु सिर्फ चक्र को जानने से इतना फायदा नहीं है, जितना अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करने में फायदा है। मैं आत्मा स्टार हूँ। फिर बाप भी स्टार अति सूक्ष्म है। वही सद्गति दाता है। उनको याद करने से ही विकर्म विनाश होने हैं। इस तरीके से कोई भी निरन्तर याद नहीं करते। देही-अभिमानी नहीं बनते हैं। घड़ी- घड़ी यह याद रहे मैं आत्मा हूँ। बाप का फरमान है मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। मैं बिन्दी हूँ। यहाँ पार्टधारी आकर बना हूँ। मेरे में 5 विकारों की कट चढ़ी हुई है। आइरन एज़ में हैं। अब गोल्डन एज़ में जाना है इसलिए बाप को बहुत प्यार से याद करना है। इस रीति बाप को याद करेंगे तब कट निकल जायेगी। यह है मेहनत। सार्विस की लबार तो बहुत मारते हैं। आज यह सार्विस की, बहुत प्रभावित हुए परन्तु शिवबाबा समझते हैं आत्मा और परमात्मा के ज्ञान पर कुछ भी प्रभावित नहीं हुआ। भारत हेविन और हेल कैसे बनता है। 84 जन्म कैसे लेते हैं, सतो रजो तमो में कैसे आते हैं। सिर्फ यह सुनकर प्रभावित होते हैं। परमात्मा निराकार है, यह भी समझ जाते हैं। बाकी मैं आत्मा हूँ, मेरे में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाप भी बिन्दी है, उनमें सारा ज्ञान है। उनको याद करना है। यह बातें कोई भी समझते नहीं। मुख्य बात समझते नहीं हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज बाप ही देते हैं। गवर्मेंन्ट भी चाहती है कि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी होनी चाहिए। यह तो उनसे भी सूक्ष्म बातें हैं। आत्मा क्या है, उनमें कैसे 84 जन्मों का पार्ट है। वह भी अविनाशी है। यह याद करना, अपने को बिन्दी समझना और बाप को याद करना जिससे विकर्म विनाश हों - इस योग में कोई भी तत्पर नहीं रहते हैं। इस याद में रहें तो बहुत लवली हो जाएं। यह लक्ष्मी-नारायण देखो कितने लवली हैं। यहाँ के मनुष्य तो देखो कैसे हैं। खुद भी कहते हैं हमारे में कोई गुण नाहीं। हम जैसे मलेच्छ हैं, आप स्वच्छ हैं। जब अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करें तब सफलता मिले। नहीं तो सफलता बहुत थोड़ी मिलती है। समझते हैं हमारे में बहुत अच्छा ज्ञान है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हम जानते हैं। परन्तु योग का चार्ट नहीं बताते हैं। मुश्किल कोई हैं जो इस अवस्था में रहते हैं अर्थात् अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हैं। बहुतों को अभ्यास नहीं है। बाबा समझते हैं कि बच्चे सिर्फ ज्ञान का चक्र बुद्धि में फिराते हैं। बाकी मैं आत्मा हूँ, बाबा से हमको योग लगाना है, जिससे आइरन एज़ से निकल गोल्डन एज़ में जायेंगे। मुझ आत्मा को बाप को जानना है, उसकी याद में ही रहना है, यह बहुतों का अभ्यास कम है। बहुत आते भी हैं। अच्छा- अच्छा भी कहते हैं। बाकी उनको यह पता नहीं पड़ता कि अन्दर कितनी कट लगी हुई है। सुन्दर से श्याम बन गये हैं। फिर सुन्दर कैसे बने? यह कोई भी नहीं जानते हैं। सिर्फ हिस्ट्री-जॉग्राफी जानने का काम नहीं है। पावन कैसे बनें? सजा न खाने का उपाय है - सिर्फ याद में रहना। योग ठीक नहीं होगा तो धर्मराज की सज़ायें खायेंगे। यह बहुत बड़ी सब्जेक्ट है, जिसको कोई उठा नहीं सकते। ज्ञान में अपने को मियाँ मिट्ठू समझ बैठते हैं, इसमें कोई शक नहीं। मूल बात है योग की। योग में बहुत कच्चे हैं इसलिए बाप कहते हैं खबरदार रहो, सिर्फ पण्डित नहीं बनना है। मैं आत्मा हूँ, मुझे बाप को याद करना है। बाप ने फरमान दिया है -मनमनाभव। यह है महामन्त्र। अपने को स्टार समझ बाप को भी स्टार समझो फिर बाप को याद करो। बाप का कोई बड़ा रूप नहीं सामने आता है। तो देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। विश्व के महाराजा महारानी एक बनते हैं, जिनकी लाखों प्रजा बनती है। प्रजा तो बहुत है ना। हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानना तो सहज है परन्तु जब अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे तब पावन बनेंगे। यह अभ्यास बड़ा डिफीकल्ट है। याद करने बैठेंगे तो बहुत तूफान विघ्न डालेंगे। कोई आधा घण्टा भी एकरस हो बैठे, बड़ा मुश्किल है। घड़ी-घड़ी भूल जायेंगे। इसमें सच्ची- सच्ची गुप्त मेहनत है। चक्र का राज़ जानना सहज है। बाकी देही-अभिमानी हो बाप को याद करना, यह मुश्किल कोई समझते हैं और उस एक्ट में आते हैं। बाप की याद से ही तुम पावन बनेंगे। निरोगी काया, बड़ी आयु मिलेगी। सिर्फ वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाने से माला का दाना नहीं बन सकते। दाना बनेंगे याद से। यह मेहनत कोई से पहुँचती नहीं है। खुद भी समझते हैं कि हम याद में नहीं रहते। अच्छे-अच्छे महारथी इस बात में ढीले हैं। मुख्य बात समझाना आता ही नहीं है। यह बात है भी मुश्किल। कल्प की आयु इन्होंने बड़ी कर दी है। तुम 5 हजार वर्ष सिद्ध करते हो। परन्तु आत्मा- परमात्मा का राज़ कुछ भी नहीं जानते हैं, याद ही नहीं करते हैं इसलिए अवस्था डगमगाती रहती है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी बनें तब माला का दाना बन सकें। ऐसे नहीं वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं इसलिए हम माला में नजदीक आ जायेंगे, नहीं। आत्मा इतनी छोटी है, इसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। इस बात को पहले-पहले बुद्धि में लाना है, फिर चक्र को याद करना है। मूल बात है योग की। योगी अवस्था चाहिए। पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनना है। आत्मा पवित्र होगी योग से। योगबल वाले ही धर्मराज के डन्डों से बच सकते हैं। यह मेहनत बड़ी मुश्किल कोई से होती है। माया के तूफान भी बहुत आयेंगे। यह बहुत हड्डी गुप्त मेहनत है। लक्ष्मी-नारायण बनना मासी का घर नहीं है। यह अभ्यास हो जाए तो चलते फिरते बाप की याद आती रहे, इसको ही योग कहा जाता है। बाकी यह ज्ञान की बातें तो छोटे- छोटे बच्चे भी समझ जायेंगे। चित्रों में सब युग आदि लगे हुए हैं। यह तो कॉमन है। जब कोई भी कार्य शुरू करते हैं तो स्वास्तिका लगाते हैं। यह निशानी है सतयुग, त्रेता...की बाकी ऊपर में है छोटा-सा संगमयुग। तो पहले अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहेंगे तब ही वह शान्ति फैल सकती। योग से विकर्म विनाश होंगे। सारी दुनिया इस बात में भूली हुई है आत्मा और परमात्मा के बारे में, कोई कहते परमात्मा हजारों सूर्यों से तेजोमय है, परन्तु यह हो कैसे सकता। जबकि कहते हैं - आत्मा सो परमात्मा फिर तो दोनों एक हुए ना। छोटे बड़े का फर्क नहीं पड़ सकता। इस पर भी समझाना है। आत्मा का रूप बिन्दी है। आत्मा सो परमात्मा है तो परमात्मा भी बिन्दी ठहरा ना। इसमें फर्क तो हो न सके। सब परमात्मा हो जाएं तो सब क्रियेटर हो जाएं। सर्व की सद्गति करने वाला तो एक बाप है ना। बाकी तो हर एक को अपना पार्ट मिला हुआ है। यह बुद्धि में बिठाना पड़े, समझ की बात है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो कट निकल जायेगी। यह मेहनत है। एक तो आधाकल्प देह-अभिमानी हो रहे हो। सतयुग में देही-अभिमानी रहते भी बाप को नहीं जानते। ज्ञान को नहीं जानते। इस समय जो तुमको नॉलेज मिलती है वह नॉलेज गुम हो जाती है। वहाँ सिर्फ इतना जानते हैं कि हम आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा लेते हैं। पार्ट बजाते हैं। इसमें फिकर की क्या बात है। हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है। रोने से क्या होगा? यह समझाया जाता है अगर कुछ समझें तो शान्ति आ जाए। खुद समझेंगे तो औरों को भी समझायेंगे। बुजुर्ग लोग समझाते भी हैं, रोने से क्या वापिस थोड़ेही आयेंगे। शरीर छोड़ आत्मा निकल गई, इसमें रोने की क्या बात है। अज्ञानकाल में भी ऐसे समझते हैं। परन्तु वह यह थोड़ेही जानते हैं कि आत्मा और परमात्मा क्या चीज़ है। आत्मा में खाद पड़ी है, वह तो समझते आत्मा निर्लेप है। तो यह बहुत महीन बातें हैं। बाबा जानते हैं बहुत बच्चे याद में रहते नहीं हैं। सिर्फ समझाने से क्या होगा। बहुत प्रभावित हुआ, परन्तु इससे उसका कोई कल्याण थोड़ेही हुआ। आत्मा- परमात्मा की पहचान मिले तब समझें बरोबर हम उनके बच्चे हैं। बाप ही पतित-पावन है। हमको आकर दु:ख से छुड़ाता है। वह भी बिन्दी है। तो बाप को निरन्तर याद करना पड़े। बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी जानना कोई बड़ी बात नहीं है। भल समझने लिए आते हैं परन्तु इस अवस्था में तत्पर रहे कि मैं आत्मा हूँ, इसमें ही मेहनत है। आत्मा परमात्मा की बात तो तुमको भी बाप ही आकर समझाते हैं। सृष्टि का चक्र तो सहज है। जितना हो सके उठते बैठते देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। देही-अभिमानी बहुत शान्त रहते हैं। समझते हैं मुझे साइलेन्स में जाना है। निराकारी दुनिया में जाकर विराजमान होना है। हमारा पार्ट अभी पूरा हुआ। बाप का रूप छोटा बिन्दी समझेंगे। वह कोई बड़ा लिंग नहीं है। बाबा बहुत छोटा है। वही नॉलेजफुल, सर्व के सद्गति दाता हैं। मैं आत्मा भी नॉलेजफुल बन रहा हूँ। ऐसा चिंतन जब चले तब ऊंच पद पा सकें। दुनिया भर में कोई आत्मा और परमात्मा को नहीं जानते।

    तुम ब्राह्मणों ने अब जाना है। सन्यासी भी नहीं जानते। न आकर समझेंगे। वह तो सब अपने-अपने धर्मों में ही आने वाले हैं। हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जायेंगे। तुमको ही यह मेहनत करने से बाप से वर्सा मिलेगा। अब फिर देही-अभिमानी बनना है। दिल तो आत्मा में है ना। आत्मा को ही दिल बाप से लगाना है। दिल शरीर में नहीं है। शरीर के तो सब स्थूल आरगन्स हैं। दिल को लगाना यह आत्मा का काम है। अपने को आत्मा समझ फिर परमात्मा बाप से दिल लगानी है। आत्मा बहुत सूक्ष्म है। कितनी छोटी सूक्ष्म आत्मा, पार्ट कितना बजाती है। यह है कुदरत। इतनी छोटी चीज़ में कितना अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। वह कभी मिटने वाला नहीं है। बहुत सूक्ष्म है। तुम कोशिश करेंगे तो भी बड़ी चीज़ याद आ जायेगी। मैं आत्मा छोटा स्टार हूँ तो बाप भी छोटा है। तुम बच्चों को पहले-पहले मेहनत यह करनी है। इतनी छोटी सी आत्मा ही इस समय पतित बनी है। आत्मा को पावन बनाने का पहले-पहले यह उपाय है। पढ़ाई पढ़नी है। बाकी खेलना, कूदना तो अलग बात है। खेलने का भी एक हुनर है। पढ़ाई से मर्तबा मिलता है। खेल कूद से मर्तबा नहीं मिलता है। खेल आदि की डिपार्टमेन्ट अलग होती है। उनसे ज्ञान वा योग का कनेक्शन नहीं है। यह भोग आदि लगाना भी खेल है। मुख्य बात है याद की। अच्छा।

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) धर्मराज की सजाओं से बचने के लिए याद की गुप्त मेहनत करनी है। पावन बनने का उपाय है अपने को आत्मा बिन्दी समझ बिन्दु बाप को याद करना।

    2) ज्ञान में अपने आपको मिया मिट्ठू नहीं समझना है, एकरस अवस्था बनाने का अभ्यास करना है। बाप का जो फरमान है उसे पालन करना है।

    वरदान:

    सोचने और करने के अन्तर को मिटाने वाले स्व-परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव!   

    कोई भी संस्कार, स्वभाव, बोल व सम्पर्क जो यथार्थ नहीं व्यर्थ है, उस व्यर्थ को परिवर्तन करने की मशीनरी फास्ट करो। सोचा और किया.. तब विश्व परिवर्तन की मशीनरी तेज होगी। अभी स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माओं के सोचने और करने में अन्तर दिखाई देता है, इस अन्तर को मिटाओ। तब स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे।

    स्लोगन:

    सबसे लक्की वह है जिसने अपने जीवन में अनुभूति की गिफ्ट प्राप्त की है।  



    ***OM SHANTI***