BK Murli Hindi 30 April 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 April 2016

    30-04-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    “मीठे बच्चे - पतित जगत से नाता तोड़ एक बाप से बुद्धियोग लगाओ तो माया से हार नहीं हो सकती”  

    प्रश्न:

    समर्थ बाप साथ होते हुए भी यज्ञ में अनेक विघ्न क्यों पड़ते हैं? कारण क्या है?

    उत्तर:

    यह विघ्न तो ड्रामा अनुसार पड़ने ही हैं क्योंकि जब यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ें तब तो पाप का घड़ा भरे। इसमें बाप कुछ नहीं कर सकते, यह तो ड्रामा में नूँध है। विघ्न पड़ने ही हैं लेकिन विघ्नों से तुम्हें घबराना नहीं है।

    गीत:-

    कौन है माता, कौन पिता है...

    ओम् शान्ति।

    बच्चों ने बेहद के बाप का फरमान सुना। यह जो इस जगत के मम्मा-बाबा हैं, यह जो तुम्हारा नाता है, देह के साथ है क्योंकि देह से पहले-पहले माता की फिर पिता की लागत होती है फिर भाई-बन्धु आदि की होती है। तो बेहद के बाप का कहना है कि इस जगत में तुम्हारे जो मात-पिता हैं उनसे बुद्धि का योग तोड़ दो। इस जगत से नाता नहीं रखो क्योंकि यह सब हैं कलियुगी छी-छी नाते। जगत अर्थात् दुनिया। इस पतित दुनिया से बुद्धि का योग तोड़ मुझ एक से जोड़ो और फिर नये जगत के साथ जोड़ो, क्योंकि अब तुमको मेरे पास आना है। सिर्फ नाता जोड़ने की बात है और कोई बात नहीं और कोई तकलीफ नहीं। नाता जोड़ेंगे वह जिनको डायरेक्शन मिलता है। सतयुग में पहले नाता अच्छा होता है, सतोप्रधान फिर नीचे उतरते जाते हैं। फिर जो सुख का नाता है वह आहिस्ते-आहिस्ते कम होता जाता है। अभी तो बिल्कुल ही इस पुरानी दुनिया से नाता तोड़ना पड़े। बाप कहते हैं मेरे साथ नाता जोड़ो। श्रीमत पर चलो और जो भी देह के नाते हैं वह सब छोड़ दो। विनाश तो होना ही है। बच्चे जानते हैं बाप जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वह भी ड्रामा अनुसार सर्विस करते हैं। वह भी ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ है। मनुष्य तो समझते हैं वह सर्वशक्तिमान् हैं। जैसे कृष्ण को भी सर्वशक्तिमान् मानते हैं। उनको स्वदर्शन चक्र दे दिया है। समझते हैं उनसे गला काटते हैं। परन्तु यह नहीं समझते कि देवतायें हिंसा का काम कैसे करेंगे। वह तो कर नहीं सकते। देवताओं के लिए तो कहा जाता है - अहिंसा परमो धर्म था। उन्हों में हिंसा कहाँ से आई? जिसको जो आया वह बैठकर लिख दिया है। कितनी धर्म की ग्लानी की है। बाप कहते हैं इन शास्त्रों में सच तो बिल्कुल आटे में नमक मिसल है। यह भी लिखा हुआ है कि रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा था। उसमें असुर विघ्न डालते थे। अबलाओं पर अत्याचार होते थे। वह तो ठीक लिखा हुआ है। अभी तुम समझते हो - शास्त्रों में सच क्या है, झूठ क्या है। भगवान खुद कहते हैं इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में विघ्न पड़ेंगे जरूर। ड्रामा में नूँध है। ऐसे नहीं कि परमात्मा साथ है तो विघ्नों को हटा देंगे। इसमें बाप क्या करेंगे! ड्रामा में होने का ही है। यह सब विघ्न डालें तब तो पाप का घड़ा भरे ना। बाप समझाते हैं ड्रामा में जो नूँध है वही होना है। असुरों के विघ्न जरूर पड़ेंगे। अपनी राजधानी जो स्थापन हो रही है। आधाकल्प माया के राज्य में मनुष्य कितना तमोप्रधान बुद्धि, भ्रष्टाचारी बन जाते हैं। फिर उनको श्रेष्ठाचारी बनाना बाप का काम है ना। आधाकल्प लगता है भ्रष्टाचारी बनने में। फिर एक सेकेण्ड में बाप श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। निश्चय होने में देरी थोड़ेही लगती है। ऐसे बहुत अच्छे बच्चे हैं जिन्हों को निश्चय होता है, झट प्रतिज्ञा करते हैं, परन्तु माया भी तो पहलवान है ना। कुछ न कुछ मन्सा में तूफान लाती है। पुरूषार्थ कर कर्मणा में नहीं आना है। सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। कर्मातीत अवस्था तो हुई नहीं है। कुछ न कुछ कर्मेन्द्रियों से हो जाता है। कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने में बीच में विघ्न जरूर पड़ेंगे। बाप ने समझाया है - पुरूषार्थ करते-करते अन्त में जाकर कर्मतीत अवस्था होती है फिर तो इस शरीर को रहना नहीं है, इसलिए टाइम लगता है। विघ्न कुछ न कुछ पड़ते हैं। कहाँ माया हरा भी देती है। बाक्सिंग है ना। चाहते हैं बाबा की याद में रहें, परन्तु रह नहीं सकते। थोड़ा बहुत टाइम जो पड़ा हुआ है, धीरे-धीरे वह अवस्था धारण करनी है। कोई जन्मते ही राजा तो नहीं होता है। छोटा बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होगा ना, इसमें भी टाइम लगता है। अब तो बाकी थोड़ा समय रहा है। सारा मदार पुरूषार्थ के ऊपर है। अटेन्शन देना है, हम कैसे भी करके बाप से वर्सा लेंगे जरूर। माया का सामना जरूर करेंगे इसलिए प्रतिज्ञा करते हैं। माया भी कम नहीं है। हल्के से हल्के रूप में भी आती है। रूस्तम के सामने अच्छा जोर मारती है। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। बाप कहते हैं कि तुम बच्चों को अभी समझाता हूँ। बाप द्वारा तुम सद्गति को पा लेते हो। फिर इस ज्ञान की दरकार ही नहीं रहती। ज्ञान से सद्गति हो जाती है। सद्गति कहा जाता है सतयुग को।

    तो मीठे-मीठे बच्चों को लक्ष्य मिला है - यह भी समझते हैं ड्रामा अनुसार झाड़ बढ़ने में टाइम तो लगता ही है। विघ्न तो बहुत पड़ते हैं। चेंज होना पड़ता है। कौड़ी से हीरे जैसा बनना पड़ता है। रात-दिन का फ़र्क है। देवताओं के मन्दिर अभी तक भी बनाते रहते हैं। तुम ब्राह्मण अभी मन्दिर नहीं बनायेंगे क्योंकि वह है भक्ति मार्ग। दुनिया को यह पता ही नहीं कि अब भक्ति मार्ग खत्म हो ज्ञान मार्ग जिंदाबाद होना है। यह सिर्फ तुम बच्चों को मालूम है। मनुष्य तो समझते हैं कलियुग अभी बच्चा है। उन्हों का सारा मदार है - शास्त्रों पर। तुम बच्चों को तो बाप बैठ सभी वेदों शास्त्रों का राज़ समझाते हैं। बाप कहते हैं - अभी तक तुम जो पढ़े हो, वह सब भूल जाओ। उनसे कोई की सद्गति होती नहीं। भल करके अल्पकाल का सुख मिलता आया है। सदा सुख ही सुख मिले, ऐसे हो नहीं सकता। यह है क्षण भंगुर सुख। मनुष्य दु:ख में रहते हैं। मनुष्य यह नहीं जानते कि सतयुग में दु:ख का नाम निशान नहीं होता है। उन्होंने वहाँ के लिए भी ऐसी बातें बता दी हैं। वहाँ कृष्णपुरी में कंस था, यह था..। कृष्ण ने जेल में जन्म लिया। बहुत बातें लिख दी हैं। अब श्रीकृष्ण स्वर्ग का पहला नम्बर प्रिन्स, उसने क्या पाप किया? यह हैं दन्त कथायें, सो भी तुम अभी समझते हो जबकि बाप ने सच बताया है। बाप ही आकर सचखण्ड स्थापन करते हैं। सचखण्ड में कितना सुख था, झूठ खण्ड में कितना दु:ख है। यह सब भूल गये हैं। तुम जानते हो हम श्रीमत पर सचखण्ड स्थापन करके उसके मालिक बनेंगे।

    बाप समझाते हैं, ऐसे-ऐसे श्रीमत पर चलने से तुम ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे यह जानते हैं हमको यह पढ़ाई पढ़कर सूर्यवंशी महाराजा महारानी बनना है। दिल भी सबकी होती है ऊंच पद पाने की। सबका पुरूषार्थ चलता है। अच्छे पक्के भक्त जो होते हैं वह चित्र साथ में रखते हैं तो घड़ी-घड़ी उनकी याद रहेगी। बाबा भी कहते हैं त्रिमूर्ति का चित्र साथ में रख दो तो घड़ी-घड़ी याद आयेगी। बाप को याद करने से हम सूर्यवंशी घराने में आ जायेंगे। कमरे में त्रिमूर्ति का चित्र लगा हुआ होगा तो घड़ी-घड़ी नज़र सामने पड़ेगी। बाबा द्वारा हम इस सूर्यवंशी घराने में जायेंगे। सवेरे उठते ही नज़र उस पर जायेगी। यह भी एक पुरूषार्थ है। बाबा राय देते हैं - अच्छे-अच्छे भगत बहुत पुरूषार्थ करते हैं। आंख खोलने से ही कृष्ण याद आ जाये, इसलिए चित्र सामने रख देते हैं। तुम्हारे लिए तो और ही सहज है। अगर सहज याद नहीं आती, माया हैरान करती है तो यह चित्र मदद करेंगे। शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का मालिक बनाते हैं। हम बाबा से विश्व का मालिक बन रहे हैं। इस सिमरण में रहने से भी मदद बहुत मिलेगी। जो बच्चे समझते हैं याद घड़ी-घड़ी भूल जाती है तो बाबा राय देते हैं, चित्र सामने रख दो तो बाप भी और वर्सा भी याद आयेगा। परन्तु ब्रह्मा को याद नहीं करना है। सगाई करते हैं तो दलाल थोड़ेही याद आता है। तुम बाबा को अच्छी रीति याद करो तो बाबा भी तुमको याद करेगा। याद से याद मिलती है। अभी माशुक के आक्युपेशन का तुमको पता है। शिव के कितने ढेर भगत हैं। शिव-शिव कहते रहते हैं। परन्तु वह रांग है - शिवकाशी, विश्वनाथ फिर गंगा कह देते हैं। पानी के किनारे जाकर बैठते हैं। यह समझते नहीं कि ज्ञान का सागर बाप है। बनारस में बहुत फॉरेनर्स आदि जाते हैं देखने। बड़े-बड़े घाट हैं फिर भी सभी के बाप का मन्दिर तो खींचता है। सब उनके पास जाते हैं। मन्दिर तो किसके पास जायेगा नहीं। मन्दिर के देवतायें खींचते हैं। शिवबाबा भी खींचते हैं। नम्बरवन है शिवबाबा फिर सेकेण्ड नम्बर में यह ब्रह्मा, सरस्वती सो विष्णु। विष्णु सो ब्रह्मा। ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के देवतायें। विष्णुपुरी के देवतायें सो ब्राह्मण। अब तुम्हारा धन्धा यह रहा, हम सो देवता बन रहे हैं तो औरों को भी रास्ता बताना है। और सब हैं जंगल में ले जाने वाले। तुम जंगल से निकाल बगीचे में ले जाते हो। शिवबाबा आकर कांटों को फूल बनाते हैं। तुम भी यह धन्धा करते हो। इन बातों को तुम ही जानते हो। कोई राजा-रानी तो हैं नहीं जिनको तुम समझाओ। गाया हुआ है पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे। बाप समर्थ था तो उनको विश्व की बादशाही दे दी। अभी भी वही पार्ट बजेगा ना। बाप है गुप्त। कृष्ण को तो कोई विघ्न पड़ न सके। अब बाप आये हैं, बाप से आकर वर्सा लेना है, इसके लिए मेहनत करनी होती है। दिन प्रतिदिन नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। देखने में आता है, प्रदर्शनी में समझाने से अच्छा प्रभाव पड़ता है। बुद्धि से काम लिया जाता है कि प्रदर्शनी से अच्छा प्रभाव होता है या प्रोजेक्टर से? प्रदर्शनी में समझाने से चेहरा देखकर समझाया जा सकता है। समझते हो गीता का भगवान बाप है, तो बाप से फिर वर्सा लेने का पुरूषार्थ करना है। 7 रोज़ देना है। लिखकर दो। नहीं तो बाहर जाने से ही माया भुला देगी। तुम्हारी बुद्धि में आ गया - हमने 84 का चक्र लगाया है, अभी जाना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह चित्र तो साथ में होने ही चाहिए। बड़े अच्छे हैं। बिड़ला आदि भी यह नहीं जानते कि इन लक्ष्मी-नारायण ने यह राज्य-भाग्य कब और कैसे लिया। तुम जानते हो तो तुमको बड़ी खुशी होनी चाहिए। लक्ष्मी-नारायण का चित्र ले, झट कोई को समझायेंगे। उन्होंने यह पद कैसे पाया? यह बातें बुद्धि से समझने और समझाने की हैं। मंजिल है ऊंची। जो जैसा टीचर है वह वैसे ही सर्विस करते हैं। देखते हैं - कौन-कौन सेन्टर सम्भाल रहे हैं, अपनी अवस्था अनुसार। नशा तो सबको है। परन्तु विवेक कहता है समझाने वाला जितना होशियार होगा उतना सर्विस अच्छी होगी। सब तो होशियार हो नहीं सकते। सबको एक जैसा टीचर मिल नहीं सकता। जैसे कल्प पहले चला था वैसे ही चल रहा है। बाप कहते हैं अपनी अवस्था को जमाते रहो। कल्प-कल्प की बाजी है। देखा जा रहा है - कल्प पहले मुआि॰फक हर एक का पुरूषार्थ चल रहा है। जो कुछ होता है - हम कह देते कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। फिर खुशी भी रहती है, शान्ति भी रहती है। बाप कहते हैं कर्म करते हुए बाप को याद करो। बुद्धि का योग वहाँ लटका रहे तो बहुत कल्याण होगा, जो करेगा सो पायेगा। अच्छा करेगा अच्छा पायेगा। माया की मत पर सब बुरा ही करते आये हैं। अब मिलती है श्रीमत। भला करो तो भला हो। हर एक अपने लिए मेहनत करते हैं। जैसा करेंगे वैसा पायेंगे। क्यों न हम योग लगाते सर्विस करते रहें। योग से आयु बढ़ेगी। याद की यात्रा से निरोगी बनना है तो क्यों न हम बाबा की याद में रहें! यथार्थ बात है तो क्यों न हम कोशिश करें। ज्ञान तो बिल्कुल सहज है। छोटे बच्चे भी समझ जाते हैं और समझाते हैं। परन्तु वह योगी तो नहीं ठहरे ना। यह तो पक्का कराना है कि बाप को याद करो। जो समझते हैं, घड़ी-घड़ी भूल जाता है तो चित्र रख दें, तो भी अच्छा है। सवेरे चित्र को देखते ही याद आ जाता है। शिवबाबा से हम विष्णुपुरी का वर्सा ले रहे हैं। यह त्रिमूर्ति का चित्र ही मुख्य है, जिसका अर्थ तो तुमने अभी समझा है। दुनिया में ऐसे त्रिमूर्ति का चित्र और कोई के पास है नहीं। यह तो बिल्कुल सहज है। हम लिखें वा न लिखें। यह तो सभी जानते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना। अच्छा।

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) माया की बॉक्सिंग में कभी भी हार न हो - इसका ध्यान रखना है। कल्प पहले की स्मृति से अपनी अवस्था को जमाना है। खुशी और शान्ति में रहना है।

    2) अपना भला करने के लिए श्रीमत पर चलना है। इस पुरानी दुनिया से नाता तोड़ देना है। माया के तूफान से बचने के लिए चित्रों को सामने रख बाप और वर्से को याद करना है।

    वरदान:

    सर्व खाते और रिश्ते एक बाप से रखने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव!  

    डबल लाइट फरिश्ता बनने के लिए देह के भान से भी परे रहो क्योंकि देह भान मिट्टी है, यदि इसका भी बोझ है तो भारीपन है। फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के साथ भी रिश्ता नहीं। बाप का दिया हुआ तन भी बाप को दे दिया। अपनी वस्तु दूसरे को दे दी तो अपना रिश्ता खत्म हुआ। सब हिसाब-किताब, सब लेन-देन बाप से बाकी सब पिछले खाते और रिश्ते खत्म-ऐसे सम्पूर्ण बेगर ही डबल लाइट फरिश्ते हैं।

    स्लोगन:

    अपनी विशेषताओं को प्रयोग में लाओ तो हर कदम में प्रगति का अनुभव करेंगे।  



    ***OM SHANTI***