BK Murli Hindi 6 May 2016

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 6 May 2016

    06-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– अभी तुम शूद्र घराने से निकल ब्राह्मण घराने में आये हो, बाप ने ब्रह्मा मुख से तुम्हें एडाप्ट किया है– तो इसी खुशी में रहो”   

    प्रश्न:

    कौन सा गुह्य राज, ब्राह्मण कुल वाले बच्चे ही समझ सकते हैं?

    उत्तर:

    निराकार शिवबाबा हमारा पिता है और यह ब्रह्मा हमारी माता है। निराकार भगवान कैसे मात-पिता, बन्धु-सखा बनते हैं, यह गुह्य गुप्त राज ब्राह्मण कुल के बच्चे ही समझ सकते हैं। उसमें भी जो दैवी कुल में ऊंच पद पाने वाले हैं वही यह राज यथार्थ रीति समझेंगे।

    ओम् शान्ति।

    बच्चे बैठे हैं– समझ रहे हैं कि हमारा बापदादा आया हुआ है। बाप तो इकठ्ठा हो जाता है दादा के साथ, तो कहेंगे बापदादा आये हैं। वह टीचर भी है। बाप, दादा के बिगर तो कुछ बता न सके। बुद्धि चलनी चाहिए क्योंकि यह नई बात है ना। अज्ञान काल में याद करते हैं सिंगल को। कहेंगे हमारा गुरू फलानी जगह है। उनके शरीर का नाम जानते हैं। हमारा बाबा, हमारी माँ फलानी जगह है। उनका नाम रूप सब कुछ है। मनुष्यों ने फिर शार्ट में लिख दिया है। मनुष्यों ने जो बनाया है, उनमें कुछ न कुछ रांग है। भल गायन है त्वमेव माताश्च पिता...यह एक के लिए ही गाया जाता है। ब्रह्मा के लिए भी नहीं गाया जाता है। उनका नाम रूप बुद्धि में नहीं आता। न विष्णु का, न शंकर का। गाते तो हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे। तो भी बुद्धि ऊपर में जायेगी। कृष्ण को याद कोई कर न सके। याद फिर भी निराकार को ही करेंगे, उनकी महिमा है। तो बाप समझाते हैं- यहाँ जब बैठते हो तो लौकिक सम्बन्ध से बुद्धियोग निकाल, पारलौकिक बाप को याद करो। इस समय यह सम्मुख है। 

    भक्ति मार्ग में जो गाते हैं तो ऑखें ऊपर करके कहते हैं- तुम मात-पिता.... हे भगवान कह याद करते हैं। भगवान जब कहते हैं तो शिवलिंग को भी याद नहीं करते। तोते मिसल ऐसे ही गाते हैं। लक्ष्मी नारायण के लिए भी ऐसे नहीं कह सकते, यह तो महाराजा-महारानी हैं। उनका बच्चा ही मात-पिता कहेंगे, बन्धु नहीं कहेंगे। भक्त लोग गाते हैं पतित-पावन, परन्तु यह बुद्धि में नहीं आता कि शिवलिंग होगा, ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं– हे भगवान! हे भगवान किसने कहा, किसको कहा? कुछ भी पता नहीं। अगर यह ज्ञान होता मैं आत्मा हूँ, उनको बुलाता हूँ तो यह समझें कि वह निराकार परमात्मा है। उनका रूप ही लिंग है। यथार्थ रीति कोई बाप को याद नहीं करते। उनसे प्राप्ति क्या होगी, कब होगी- यह कुछ भी नहीं जानते। तुम भी नहीं जानते थे। अभी तो बाप के बने हो। तुम जानते हो हमको शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा अपना बच्चा बनाया है। यह ब्रह्मा माँ है। इस ब्रह्मा माता द्वारा शिवबाबा ने एडाप्ट किया है। इस समय तुम अच्छी रीति जानते हो। हम शिवबाबा के बच्चे हैं। साकार में फिर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। ऐसे नहीं कि कोई नई सृष्टि रचते हैं? नहीं, इस समय आकर गोद में लेते हैं, एडाप्ट करते हैं। अब मात-पिता कहते हैं तो शिव पिता ठहरा और माता ब्रह्मा ठहरी। उनको कहा जाता है मात-पिता। 

    बाप ब्रह्मा द्वारा कहते हैं तुम आत्मायें मेरे बच्चे हो। फिर आत्मा को बैठ पहचान देते हैं कि आत्मा क्या है? कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में रहती है, स्टार मिसल है और कुछ भी नहीं जानते। यह कह न सकें कि आत्मा 84 जन्म भोगती है। आत्मा शरीर द्वारा पार्ट बजाती है। भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल से आत्मा एक शरीर छोड़ती है तो सारा परिवार ही बदल जाता है। कोई एडाप्ट करते हैं तो परिवार ही बदल जाता है। मात-पिता जिससे जन्म लिया, उनको भी जानते हैं। फिर जो एडाप्ट करते हैं उनके घर का बन जाते हैं। यहाँ तुम शूद्र घराने से निकल अब ब्राह्मण घराने में आये हो। ब्रह्मा तन से तुमको एडाप्ट किया। तुम तो ब्राह्मण कुल में आ गये। यह बातें शास्त्रों में नहीं लिखी जा सकती, यह समझाया जाता है। लिखने से कोई समझते नहीं। अभी तुम बच्चे ही जानते हो- हम परमपिता परमात्मा की सन्तान बने हैं। यह हो गई माँ। ब्रह्मा को प्रजापिता ही कहते हैं। इस द्वारा तुम बच्चों को एडाप्ट करता हूँ– यह कितनी गुप्त बातें हैं। सिवाए सम्मुख के कोई समझ न सकें। समझेंगे भी वह जो इस ब्राह्मण कुल के होंगे। दैवी कुल में ऊंच पद पाने वाले होंगे। नये किसकी बुद्धि में यह बातें बैठेंगी नहीं। न बुद्धि में बैठेगा, न किसको समझा सकेंगे। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं, जिनकी बुद्धि में बैठता है। गाया जाता है त्वमेव माताश्च पिता... याद किया जाता है शिवबाबा को। फिर कहते हैं तुम मात-पिता। एक बाप फिर मात-पिता कैसे? यह बातें और कोई समझा न सके। जैसे शास्त्रों में व्यास ने जो लिखा है वह मनुष्यों ने कण्ठ कर लिया है वैसे तुमको भी कहेंगे, तुमको कोई ने बताया है, तुमने कण्ठ कर दिया है। नये मनुष्य के लिए समझना बड़ा मुश्किल है। यहाँ रहने वाले भी कोई किसको इतना भी समझा नहीं सकते। तुम आत्मा हो– तुम्हारा बाप परमपिता परमात्मा है। वह बेहद का बाप ही बेहद का वर्सा देते हैं। वर्सा दिया था फिर पुनर्जन्म लेते-लेते 84 जन्म पूरे हुए, अब बाप फिर वर्सा देने आये हैं। यह किसको समझाना कितना सहज है। तुम मात-पिता किसको कहा जाता है-विचार की बात है ना। ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं फिर माँ भी जरूर चाहिए। तो जो अनन्य बच्ची होती है, ड्रामा प्लैन अनुसार उनको जगत-अम्बा का टाइटिल दिया जाता है। मेल को जगत-अम्बा नहीं कह सकते, इनको जगतपिता कहेंगे। इनका प्रजापिता नाम मशहूर है। अच्छा प्रजा माता कहाँ? तो एडाप्ट किया जाता है माता को। आदि देव तो है फिर आदि देवी को मुकरर किया जाता है। जगत-अम्बा तो एक ही है- उनकी ही महिमा है। जगत-अम्बा पर कितना मेला लगता है। परन्तु उनके आक्यूपेशन को कोई नहीं जानते। कलकत्ते में काली का मन्दिर है। बाम्बे में भी जगत अम्बा का मन्दिर है। शक्ल अलग-अलग है। जगत-अम्बा है कौन? यह कोई नहीं जानते। उनको भी भगवती कहते हैं। अब जगत-अम्बा को भगवती नहीं कह सकते। वह तो ब्राह्मणी है, ज्ञान-ज्ञानेश्वरी है, उनको बाप से ज्ञान मिला है। तुम सब जगत-अम्बा के बच्चे हो। ज्ञान सुनकर फिर सुनाते हो। तुम्हारा धन्धा ही यह हुआ। तुमको ईश्वर पढ़ाते हैं, कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा भी तो मनुष्य है। मनुष्य कोई को भी पावन बना नहीं सकते। मनुष्यों की बुद्धि इतनी डल हो गई है जो कुछ भी समझते नहीं हैं। पतित-पावन तो एक ही बाप है। वह आते ही हैं, पतितों को पावन बनाने। यह सारी दुनिया तमोप्रधान है, सब पतित हैं। नई दुनिया पावन, पुरानी दुनिया पतित। पुरानी दुनिया में हैं नर्कवासी। नई दुनिया में हैं स्वर्गवासी। बुद्धि भी कहती है सतयुग में सिर्फ भारतवासी देवी-देवतायें होंगे और कोई नहीं थे। अभी तुम बच्चों को यह ज्ञान मिला है। नई दुनिया में पहले सूर्यवंशी देवता थे फिर चन्द्रवंशी हुए, तो सूर्यवंशी पास्ट हो गये। चन्द्रवंशी के बाद फिर वैश्य वंशी....आते हैं बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अच्छा उनके आगे क्या था। यह कोई समझ न सकें। तुम बच्चों को बाप ने चक्र का राज समझाया है। द्वापर में हैं वैश्य वंशी। कलियुग में होते हैं शूद्र वंशी। अभी तुम जानते हो– हम ब्राह्मण बने हैं। तुमको बाप ने अपना बनाया है अर्थात् शूद्र धर्म से देवता धर्म में ट्रांसफर किया है। अब सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी तो हैं नहीं। न लक्ष्मी-नारायण का राज्य है, न रामराज्य है। अब है कलियुग का अन्त। कलियुग के बाद जरूर सतयुग आयेगा। कलियुग में यह पुरानी, पतित दुनिया है, महान दु:खी हैं इसलिए देवताओं की जाकर महिमा गाते हैं, माथा टेकते हैं। अच्छा लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य किसने दिया? कोई है जो बता सके। कोई के भी ख्याल में नहीं होगा क्योंकि बुद्धि में है कलियुग अभी बच्चा है। 40 हजार वर्ष पड़े हैं इसलिए यह ख्याल आते ही नहीं। अभी तुमको यह ख्याल आता है। कई बच्चे कहते हैं हमें याद नहीं रहती। क्यों नहीं रहती? क्योंकि सवेरे-सवेरे उठकर याद में बैठकर धारणा नहीं करते। समझते भी हैं फिर किसको समझा नहीं सकते। यह तो जरूर होगा। सब एकरस तो समझदार बन न सकें। समझदार भी चाहिए, बेसमझ भी चाहिए। बहुत समझदार तो जाकर राजा-रानी बनेंगे। जितना जितना जो जास्ती समझते और समझाते हैं उनका नाम बाला होता है। प्रदर्शनियाँ होती हैं तो लिखते हैं बाबा फलानी को भेज दो। तो क्या तुम नहीं समझा सकते हो? बाबा उनकी प्रैक्टिस जास्ती है। हम थोड़े कच्चे हैं। बाबा खुद भी कहते हैं- कहाँ से भी निमंत्रण मिलता है तो लिखकर भेजो, कौन-कौन हैं, तो हम देखेंगे किस-किसको भेजना चाहिए। सन्यासी भी उस निमन्त्रण पर हैं क्या? फिर बहुत अच्छी ब्रह्माकुमारी को भेजना होगा। अच्छा कुमारका है, मनोहर है, गंगे है-इसमें से किसी को भेज दो। बच्चे तो ढेर हैं। जगदीश को भेज दो, रमेश को भेज दो। तुम भी समझते हो, एक दो से होशियार हैं। जैसे जज मजिस्ट्रेट होते हैं। एक दो से होशियार होते हैं। गवर्मेन्ट जानती है, एक दो से होशियार हैं। तब तो केस एक दो से ऊपर जाते हैं फिर हाईकोर्ट में जाओ फिर उनसे ऊपर। उसने भी जजमेन्ट ठीक न दी तो फिर उससे ऊपर जायेंगे। इनके ऊपर तुम रहम करो। अब यह सब बातें यहाँ होती हैं। सतयुग, त्रेता में होती नहीं। फिर द्वापर में राजा-रानी का राज्य होता है। वहाँ तो महाराजा-महारानी ही केस सम्भालते हैं। केस होंगे भी थोड़े। अभी तो तमोप्रधान पतित हैं ना। तो बादशाह के पास केस जायेगा तो थोड़ी सजा दे देते हैं। कड़ी भूल होगी तो कड़ी सजा देंगे। यहाँ तो कितने जज वकील ढेर हैं। इतना कारोबार में फर्क है, सतयुग में क्या होता है, यह किसको पता नहीं। अब बाप ने समझाया है– कोई से भी पूछो, इन लक्ष्मी-नारायण को जानते हो? जैसे बिरला है, बहुत मन्दिर बनाते रहते हैं तो कोई अच्छा बच्चा हो, उनको चिठ्ठी लिखे। तुम लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर तो बहुत बनवाते हो। इन्हों को यह राजधानी कैसे मिली, जबकि सतयुग से पहले कलियुग था? कलियुग में तो कुछ है नहीं। देवताओं ने तो कोई से लड़ाई की नहीं होगी। लड़ाई से कोई विश्व के मालिक बन नहीं सकते। विश्व के मालिक जो थे उन्हों के यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र रखे हुए हैं। अभी तो है कलियुग। यहाँ लड़ाई चलती है हथियारों की। बाप ने समझाया है क्रिश्चियन धर्म वाले ही आपस में मिल जाएं, आपस में प्रीत रखें तो विश्व के मालिक बन सकते हैं। परन्तु विश्व के मालिक तो लक्ष्मी-नारायण ही बनते हैं। बुद्धि कहती है यह आपस में मिल जाएं- तो मालिक बन सकते हैं परन्तु सतयुग में किंग-क्वीन तो कोई बन न सकें। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। अभी हम फिर से योगबल से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। तुम बता सकते हो– कल्प पहले भी संगम पर बाप से पद पाया है। 84 जन्म पूरे हुए फिर से वर्सा ले रहे हैं। अच्छा। 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) स्वयं में धारणा करने और दूसरों को कराने के लिए– सवेरे-सवेरे उठकर बाप की याद में बैठना है। जो समझा है उसे दूसरों को समझाने की प्रैक्टिस करनी है।

    2) लौकिक सम्बन्धों से बुद्धि योग निकाल एक पारलौकिक बाप को याद करना है। बाप से जो ज्ञान मिला है, वह सुनकर सबको सुनाना है। यही तुम्हारा धन्धा है।

    वरदान:

    सर्व आत्माओं को शक्तियों का दान देने वाले मास्टर बीजरूप भव   

    अनेक भक्त आत्मा रूपी पत्ते जो सूख गये हैं, मुरझा गये हैं उनको फिर से अपने बीजरूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो। उन्हें सर्व प्राप्ति कराने का आधार है आपकी “इच्छा मात्रम् अविद्या” स्थिति। जब स्वयं इच्छा मात्रम् अविद्या होंगे तब अन्य आत्माओं की सर्व इच्छायें पूर्ण कर सकेंगे। इच्छा मात्रम् अविद्या अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीजरूप स्थिति। तो मास्टर बीजरूप बन भक्तों की पुकार सुनो, प्राप्ति कराओ।

    स्लोगन:

    सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में रहना ही अलौकिक जीवन की सेफ्टी का साधन है।   


    ***OM SHANTI***