BK Murli Hindi 7 May 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2016

    07-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– तुम यहाँ आये हो सेल्फ रियलाइज करने, तुम अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप से सुनो, देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करो”   

    प्रश्न:

    कई बार बच्चों से कोई-कोई पूछते हैं कि तुमने आत्मा का साक्षात्कार किया है, तो तुम उन्हें कौन सा उत्तर दो?

    उत्तर:

    बोलो हाँ, हमने आत्मा का साक्षात्कार किया है। आत्मा ज्योतिबिन्दू है। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार हैं। आत्मा की सारी नॉलेज अभी हमें मिली है। जब तक आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया था तब तक देह-अभिमानी थे। अभी हमें परमात्मा द्वारा गॉड रियलाइजेशन और सेल्फ रियलाइजेशन हुआ है।

    गीत:-

    न वह हमसे जुदा होंगे...   

    ओम् शान्ति।

    मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना। रूहानी बच्चे कहते हैं शरीर द्वारा। ऐसे कोई कभी नहीं कहेंगे कि हम मर मिटेंगे साधू-सन्तों के ऊपर। बच्चे जानते हैं-हमको उनके साथ जाना है, यह शरीर छोड़ देना है इसलिए कहते हैं, यह शरीर छोड़ करके हम चले जायेंगे बाप के साथ। बाप आये ही हैं साथ ले जाने। यह बहुत समझ की बात है। बच्चे बुलाते हैं, हम पतितों को आकर पावन बनाओ, फिर क्या करूँ। यहाँ तो नहीं छोड़ जायेंगे। यह सारी दुनिया पतित है इस पतित दुनिया से पावन दुनिया में ले जाने के लिए बाप आये हैं। हम आत्माओं को साथ ले जायेंगे। यह सारी दुनिया विशश है– यह भी तुम जानते हो। तुम किसको विकारी, पतित कहेंगे तो भी बिगड़ पड़ेंगे। मनुष्यों को समझाना बड़ा युक्ति से है। महिमा करनी है एक बाप की। अभी तुम बच्चों को नॉलेज मिली है, बड़ी समझ से बात करनी है। कहाँ देखते हो, प्रश्न-उत्तर करते हैं तो बोलो हम अभी कच्चे हैं, बड़ी बहिन आकर रेसपान्ड देंगी। तुम कहते हो, शिवबाबा समझाते हैं, भगवानुवाच– मनुष्य सब पतित हैं। पतित तो भगवान हो नहीं सकता। पतित-पावन को बुलाते हैं क्योंकि पतित हैं। देहधारियों को भगवान नहीं कह सकते। 

    भगवान निराकार शिव को कहा जाता है, शिव के मन्दिर भी बहुत हैं। पहले-पहले जब एक बात को समझ लेवें तब ठहर सकेंगे। पहले-पहले बताओ कि शिव भगवानुवाच– शिव बाबा कहते हैं कि मामेकम् याद करो। उनको अपना शरीर है नहीं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी अपना सूक्ष्म शरीर है। देखने में आता है। यह तो देखने में नहीं आता है। उनको कहा ही जाता है- परमपिता परमात्मा। तुम भी कहेंगे हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ। तुमने अपनी आत्मा का साक्षात्कार किया है। भक्ति मार्ग में साक्षात्कार के लिए नौधा भक्ति करते हैं। परन्तु भक्ति करने वालों ने कब साक्षात्कार नहीं किया है। वह क्या चीज है, यह बिल्कुल नहीं जानते हैं। सिर्फ कहते हैं- वह निराकार है। बातचीत तो आत्मा करती है। संस्कार भी आत्मा में रहते हैं। आत्मा निकल जाती है तो न आत्मा, न शरीर बात कर सकते हैं। आत्मा बिगर शरीर कुछ कर न सके। पहले तो आत्मा को पहचानना है और बाप द्वारा ही बाप को पहचान सकेंगे। आत्मा को परमपिता परमात्मा का साक्षात्कार कैसे हो सकता है- जबकि अपने को ही नहीं जान, देख सकती। भल कहते हैं “चमकता है अजब सितारा” परन्तु यह किसको पता नही है कि आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। मनुष्य बिल्कुल देह-अभिमानी रहते हैं। अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझ फिर मेरे द्वारा सुनो। सुनने वाली आत्मा है, आत्मा को सुनाने वाला परमात्मा चाहिए। मनुष्य को समझाने वाला मनुष्य ही होगा। यह आत्मा का ज्ञान किसको है नहीं इसलिए कहा जाता है पहले आत्मा को जानो। सेल्फ रियलाइज करो। आत्मा खुद ही कहती है– आत्मा को हम रियलाइज कैसे करें। यह थोड़ेही किसको पता है, हमारी आत्मा में कैसे सारा पार्ट भरा हुआ है। साधू-सन्यासी आदि कोई बता न सकें। बाप को ही आकर बच्चों को सेल्फ रियलाइज कराना पड़ता है। बाप कहते हैं- अपने को आत्मा समझ मुझ निराकार परमपिता परमात्मा से सुनो। आत्मा और परमात्मा जब मिलें तब यह बातें हों। दुनिया को यह पता ही नहीं है कि परमपिता परमात्मा कब आयेंगे। कैसे आकर समझायेंगे? न जानने के कारण मतभेद में आ जाते हैं। उन सबका मदार है शास्त्रों पर। 

    बाप कहते हैं- उनसे न तुम मुझे रियलाइज कर सकेंगे, न अपने को रियलाइज कर सकेंगे। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा। ऐसे कहने से क्या होता। हमको पतित से पावन कौन बनायेंगे? त्रिकालदर्शी कौन बनायेंगे? कोई भी आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो दे नहीं सकते इसलिए तुम कहते हो जो आत्मायें अपने बाप को नहीं जानती हैं, वह नास्तिक हैं। वो फिर कह देते कि जो भक्ति नहीं करते, वह नास्तिक हैं। अब तुम बच्चे भक्ति तो करते नहीं हो। तुम्हारे पास चित्र बहुत अच्छे हैं। चित्रों पर ही समझाया जाता है। कोई ने वर्ल्ड के नक्शे देखे ही नहीं होंगे तो उनको क्या पता- लन्दन कहाँ है? अमेरिका कहाँ है? जब तक टीचर बैठ मैप पर समझाये इसलिए तुमने यह चित्र बनाये हैं परन्तु डीटेल में कोई समझ नहीं सकते। सूर्यवंशियों ने यह राजधानी कहाँ से ली? फिर चन्द्रवंशियों ने कैसे ली? क्या सूर्यवंशी से लड़ाई की? तुम समझते हो सबको वर्सा एक बाप से मिलता है। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी तो विश्व के मालिक हैं। दूसरा कोई धर्म ही नहीं होता है तो लड़ाई की बात ही नहीं। अभी तुम समझते हो, हम विश्व के मालिक बनते हैं। ऐसे नहीं कि सूर्यवंशियों से चन्द्रवंशियों ने जीता वा युद्ध चली। नहीं, अलग-अलग घराना होता है। अब तुम्हारी बुद्धि में यह चित्रों की सारी नॉलेज है। स्कूल में भी स्टूडेण्ट पढ़ते हैं तो बुद्धि में सारी नॉलेज आ जाती है। छोटे बच्चों को किताब में दिखाया जाता है– यह हाथी है, यह फलाना है। अब तुम इस ड्रामा को जान गये हो। यह सारा चक्र बुद्धि में है। यह हैं सारी नई बातें और इन बातों को ब्राह्मण कुल ही समझेंगे। दूसरे तो बैठ फालतू डिबेट करेंगे। ऐसे भी नहीं सबको इकठ्ठा समझाया जा सकता है। नहीं, अलग-अलग समझाना होता है। कायदा भी है पहले बाप को, आत्मा को समझें फिर क्लास में बैठें तो समझेंगे, नहीं तो समझ ही नहीं सकेंगे। संशय उठाते ही रहेंगे। तुमको समझाना है भगवान एक ही है– वह ऊंच ते ऊंच है। देवताओं को भी भगवान नहीं कह सकते। आत्मा का भी ज्ञान अब तुमको मिला है। कर्म का फल आत्मा ही भोगती है। संस्कार आत्मा में ही रहते हैं। आत्मा सुनती है इन आरगन्स द्वारा। भगवान बाप एक है, वर्सा उनसे मिलता है। 

    बाबा ने समझाया है- तुम अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप से बुद्धियोग लगाओ। जन्म-जन्मान्तर भक्ति करते आये हो। हनूमान के भी पुजारी होंगे तो हनूमान को याद करेंगे वा कृष्ण के पुजारी होंगे तो कृष्ण को याद करेंगे। अभी तुमको समझाया जाता है- तुम आत्मा हो। तुम्हारा परमपिता परमात्मा है। उनको याद करने से ही बाप का वर्सा मिलेगा, जो बाप है स्वर्ग का रचयिता, तो जरूर हम स्वर्ग में होने चाहिए। भारत स्वर्ग था। अभी तो स्वर्ग है नहीं, जो राजाई हो। नर्क में तो रावण की राजाई है। हमारी राजधानी कैसे चली फिर नीचे उतरे, कुछ भी नहीं जानते। अभी तुम जानते हो पुनर्जन्म लेते-लेते हमको नीचे उतरना ही है। अब फिर बाप कहते हैं, मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे। स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। हम बाप के बनते हैं तो बाप का वर्सा मिलता है। परन्तु जब तक तमोप्रधान से सतोप्रधान न बनें, योग से पावन न बनें तब तक वर्सा मिल न सके। बाप कहते हैं, मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, विकर्माजीत बनेंगे, यह गैरन्टी है। समझानी देनी पड़ती है। कोई समझेंगे, कोई तेज बुद्धि वाले होते तो रडि़याँ मचाने लगते हैं। कोई न कोई विघ्न डालने वाले निकल पड़ते हैं। कोई हंगामा करे तो बोलना चाहिए- एकान्त में आकर समझो। यहाँ का कायदा है- 7 रोज भठ्ठी में रहकर समझना क्योंकि यह ज्ञान नया होने के कारण मनुष्य मूँझते हैं। कोई भी पहले नया सेन्टर खुलता है तो उसमें होशियार होने चाहिए जो सबको समझा सकें। भगवान तो सबका एक है, सब आत्मायें भाई-भाई हैं। परमात्मा सबका बाप है। पुकारते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर वह पावन है, वह कभी पतित होते नहीं। बाप ही आकर पतितों को पावन बनायेंगे। सतयुग में सब हैं पावन। कलियुग में सब हैं– पतित। पतित बहुत होते हैं, पावन थोड़े होते हैं। सतयुग में सब तो नहीं जायेंगे। जो पतित से पावन बनते हैं, वही पावन दुनिया में जाते हैं। बाकी सब निर्वाण दुनिया में चले जायेंगे। यह भी जानते हैं, सारी दुनिया आकर मत नहीं लेगी। यह मुश्किल है जो तुम सारी दुनिया को मत दो। अभी सबकी कयामत का समय है। विनाश सबका होना है। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। जो शान्ति से बैठ सुनें, डिस्टरबेन्स न करें। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है। शिवबाबा ही पतित-पावन ठहरा, वही समझाते हैं। गीता में भी अक्षर मशहूर हैं। पतित-पावन बाप ही कहते हैं कि मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। गीता से ही यह अक्षर तैलुक रखते हैं। शिवबाबा ने कहा है– मुझे याद करो। मैं सर्वशक्तिमान्, पतित-पावन हूँ। गीता ज्ञान दाता, ज्ञान का सागर हूँ। गीता के अक्षर तो हैं ना। सिर्फ वह कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच, तुम कहते हो शिव भगवानुवाच। भगवान निराकार है, वह कभी पुनर्जन्म में नहीं आते हैं, अलौकिक दिव्य जन्म लेते हैं। खुद ही समझाते हैं– मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ, जिसको ही भागीरथ कहते हैं। ब्रह्मा द्वारा ही रचना रचते हैं। तो मनुष्य का नाम ब्रह्मा रखा जाता है। व्यक्त ब्रह्मा से फिर पावन अव्यक्त फरिश्ता बन जाते हैं। बाप आते ही हैं– पतितों को पावन बनाने। तो जरूर फिर पतित दुनिया पतित शरीर में आयेंगे। यह है डीटेल की समझानी। पहले तो समझाना चाहिए– भगवान कहते हैं कि कल्प पहले मुआफ़िक मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, पतित से पावन बनो। गाते भी हैं, हे पतित-पावन आओ। गंगा तो है ही। तुम पुकारते हो तो जरूर कहाँ से आयेंगे। पतित-पावन आते हैं पतित से पावन बनाने का पार्ट बजाने। बाप कहते हैं, तुम पावन थे फिर तुम्हारे में खाद पड़ी है, वह योगबल से ही निकलेगी। तुम पवित्र बन जायेंगे फिर पावन दुनिया में ही आयेंगे। पतित दुनिया का विनाश हो जायेगा। जो समझाया जाता है उसे अच्छी रीति से धारण करना है। हम तो सिर्फ ऊंच ते ऊंच बाप की महिमा करते हैं। 

    बेहद का बाप समझाते हैं तुम 84 जन्मों का पार्ट बजाते-बजाते कितने पतित बने हो। पहले पावन थे, अब पतित बने हो फिर याद की यात्रा पर रहने से तुम पावन बन जायेंगे। भक्ति मार्ग से तुम सीढ़ी नीचे उतरते ही आये हो। यह तो बिल्कुल ही सहज बात है। यह तो बच्चों की बुद्धि में बैठना चाहिए। सवेरे उठकर विचार सागर मंथन करना चाहिए फिर जो भी आये उनको समझाना है। मुरली की मुख्य प्वाइंट्स नोट कर देनी चाहिए फिर रिपीट करनी चाहिए। तो दिल पर पक्का हो जाए। पहली-पहली मुख्य बात है बाप को याद करना। बाप ही कहते हैं मनमनाभव, मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। अब करो न करो तुम्हारी मर्जी। बाप का फरमान तो मिला हुआ है। पावन दुनिया में चलना है तो फिर पतित दुनिया में बुद्धि का योग नहीं जाना चाहिए। विकार में नहीं जाना है। समझानी तो बहुत मिलती रहती है। अच्छा। 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) सवेरे-सवेरे उठकर विचार सागर मंथन करना है। बाप जो सुनाते हैं उसे नोट कर रिपीट करना है, दूसरों को सुनाना है। सबको पहले-पहले बाप का ही परिचय देना है।

    2) पावन दुनिया में चलने के लिए इस पतित दुनिया से बुद्धियोग निकाल देना है।

    वरदान:

    सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविद्या करने वाले अतीन्द्रिय सुख वा आनंद स्वरूप भव  

    जैसे बच्चा अगर बाप की गोदी में है तो उसे थकावट नहीं होती। अपने पांव से चले तो थकेगा भी, रोयेगा भी। यहाँ भी आप बच्चे बाप की गोदी में बैठे हुए चल रहे हो। जरा भी मेहनत वा मुश्किल का अनुभव नहीं। संगमयुग पर जो ऐसे सदा साथ रहने वाली आत्मायें हैं उनके लिए मेहनत अविद्या मात्रम् होती है। पुरूषार्थ भी एक नेचरल कर्म हो जाता है, इसलिए सदा अतीन्द्रिय सुख वा आनंद स्वरूप स्वत:बन जाते हैं।

    स्लोगन:

    रूहे गुलाब बन अपनी रूहानी वृत्ति से वायुमण्डल में रूहानियत की खुशबू फैलाओ।   



    ***OM SHANTI***