BK Murli Hindi 5 July 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 5 July 2016

    05-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    “मीठे बच्चे– शिवबाबा को यह भी लालसा नहीं कि बच्चे बड़े होंगे तो हमारी सेवा करेंगे, वह कभी बूढ़ा होता नहीं, बाप ही है निष्काम सेवाधारी”   

    प्रश्न:

    भोलानाथ शिवबाबा हम सब बच्चों का बहुत बड़ा ग्राहक है– कैसे?

    उत्तर:

    बाबा कहते मैं इतना भोला ग्राहक हूँ, जो तुम्हारी सब पुरानी चीजें खरीद कर लेता और उसके रिटर्न में सब नई-नई चीजें देता हूँ। तुम कहते हो बाबा यह तन-मन-धन सब आपका है तो उसकी एवज में तुम्हें ब्युटीफुल तन मिल जाता, अपार धन मिल जाता।

    गीत:-

    भोलेनाथ से निराला...   

    ओम् शान्ति।

    यह भक्ति मार्ग में गीत गाते हैं। जो भी गीत हैं सब भक्ति मार्ग के हैं, उनका भी अर्थ बाप समझाते हैं। बच्चे भी समझ जाते हैं कि भोलानाथ किसको कहा जाता है। देवताओं को भोलानाथ नहीं कहेंगे। गाया हुआ है सुदामा ने दो मुठ्ठी अन्न की दी तो महल मिल गये। तो भी कितने समय के लिए? 21 जन्म के लिए। अब बच्चे समझते हैं कि बाप आकर के भारतवासियों को बरोबर हीरे-जवाहरों के महल देते हैं। किसकी एवज में देते हैं? बच्चे कहते हैं बाबा यह तन-मन-धन सब आपका है। आपका ही दिया हुआ है। किसको बच्चा पैदा हुआ तो कहते हैं भगवान ने दिया। धन के लिए भी कहते हैं भगवान ने दिया। कहने वाले कौन हैं? आत्मा। भगवान अर्थात् बाप ने दिया। बाप कहते हैं- सब कुछ तुमको अब देना होगा। उसकी एवज में हम तुमको बहुत ब्युटीफुल तन ट्रांसफर कर देंगे, अपार धन देंगे। लेकिन किसको देंगे? जरूर बच्चों को ही देंगे। लौकिक बाप से अल्पकाल के लिए धन मिला है। बेहद का बाप हमको बेहद का वर्सा देंगे। बाप समझाते हैं ज्ञान और भक्ति में रात-दिन का फर्क है। भक्ति में अल्पकाल के लिए मिलता है। धन है तो सुख है। धन के बिगर मनुष्य कितने दु:खी होते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा हमको अथाह धन देते हैं इसलिए खुशी होती है। 

    सुखधाम में तो सुख की कोई कमी नहीं। हर एक को अपनी-अपनी राजधानी है। उसको कहा जाता है पवित्र गृहस्थ आश्रम। तो बाप कितना भोला है, क्या लेते हैं और क्या देते हैं! कितना अच्छा ग्राहक है बाप! यूँ भी बच्चों का तो बाप ग्राहक ही है। बच्चा पैदा हुआ और सारी मिलकियत उनकी है। वह होते हैं हद के ग्राहक, यह है बेहद का भोलानाथ। बेहद के बच्चों का ग्राहक। बाप कहते हैं- मैं परमधाम से आया हूँ। पुराना सब कुछ तुमसे लेकर नई दुनिया में तुमको सब कुछ देता हूँ इसलिए दाता कहा जाता है। दाता भी इन जैसा और कोई नहीं। निष्काम सेवा करते हैं। बाप कहते हैं- मैं निष्कामी हूँ। मेरे को कोई भी लालसा नहीं। ऐसे तो नहीं कहता हूँ कि बच्चों का काम है– बूढ़े बाप की सम्भाल करना क्योंकि हमने तुम्हारी सम्भाल की है। नहीं, यह कायदा होता है– बाप बूढ़ा हो तो बच्चे उनकी सम्भाल करें। यह बाप तो कभी बूढ़ा होता नहीं, सदैव जवान है। आत्मा कभी बूढ़ी नहीं होती। यह तो जानते हो लौकिक बाप बच्चों में उम्मीद रखते हैं कि हम बूढ़ा होगा तो बच्चे हमारी सेवा करेंगे। भल सब कुछ बच्चों को देते हैं फिर भी सेवा तो होती है। यह शिवबाबा कहते हैं मैं हूँ ही अभोक्ता। मैं कभी खाता ही नहीं हूँ। मैं आता ही हूँ सिर्फ बच्चों को नॉलेज देने। सुप्रीम रूह, रूहों को बैठ समझाते हैं। रूह ही सुनती है, हर एक बात रूह करती है। 

    संस्कार भी रूह ले जाती है जिसके आधार पर शरीर मिलता है। यहाँ मनुष्यों की अनेक मतें हैं। कोई कहते हैं रूह परमात्मा ही ठहरा। उनको कुछ भी लेप-छेप नहीं लगता है। आत्मा निर्लेप कह देते हैं। अगर आत्मा निर्लेप होती तो क्यों कहते पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। अगर आत्मा निर्लेप है तो कहा जाए– पाप शरीर पुण्य शरीर। अभी तुम जानते हो कि सभी आत्माओं का रूहानी बाप हम रूहों को पढ़ा रहे हैं, इस शरीर द्वारा। आत्मा को बुलाते भी हैं ना। कहते हैं हमारे बाप की आत्मा आई, टेस्ट ली। आत्मा ही टेस्ट लेती है। बाप तो ऐसा नहीं कहेंगे। वो तो अभोक्ता है। ब्राह्मणों को खिलाते हैं, आत्मा आती है। कहाँ तो विराजमान होती होगी। ब्राह्मणों आदि को खिलाना भारत में कॉमन बात है। आत्मा को बुलाते हैं, उनसे पूछते हैं फिर कई बातें उनकी सच्ची भी निकलती हैं। यह पित्र आदि खिलाना– यह भी ड्रामा में नूँध है। इसमें कोई वन्डर नहीं खाना चाहिए। बाप नटशेल में ड्रामा के राज को बताते हैं। डीटेल तो इतनी ड्रामा की समझानी दे नहीं सकते। एक-एक की समझानी में ही वर्ष लग जायें। तुम बच्चों को बड़ी सहज शिक्षा मिलती है। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ। उनका नाम ही है पतित-पावन। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को पतित-पावन नहीं कह सकते हैं। बाप को ही पतित-पावन, लिबरेटर कहते हैं। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता भी उनको ही कहा जाता है। वह है निराकार। शिव के मन्दिर में जाकर देखो वहाँ लिंग रखा है। जरूर चैतन्य था तब तो पूजा करते हैं। यह देवता भी कभी चैतन्य थे तब तो उन्हों की महिमा है। 

    नेहरू चैतन्य में था तब तो उनका फोटो निकाल महिमा करते हैं। कोई अच्छा काम करके जाते हैं तो उनका जड़ चित्र बनाए महिमा करते हैं। पवित्र की ही पूजा करते हैं। कोई भी मनुष्य की पूजा नहीं कर सकते। विकार से पैदा होते हैं ना तो उनकी पूजा नहीं हो सकती। पूजा देवताओं की होती है, जो सदैव पवित्र होते हैं। तुम जानते हो बाप आया था फिर अब संगम पर आया है– स्वर्ग की स्थापना करने। फिर द्वापर से रावण राज्य शुरू होगा। रावण राज्य शुरू होने से झट शिव का मन्दिर बनाते हैं। अभी तो चैतन्य में नॉलेज सुना रहे हैं। वह सत है, चैतन्य है। उनकी ही महिमा गाते हैं– निराकार को शरीर तो चाहिए ना। तो बाप ही आकर विश्व को हेविन बनाते हैं, उस हेविन में राज्य करने के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। स्वर्गवासी तुम बन रहे हो। निराकार परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है। परन्तु सुनाये कैसे? कहते हैं मैं इस शरीर में आया हूँ, मेरा ड्रामा में यह पार्ट है। मैं प्रकृति का आधार लेता हूँ। यह जो पहले नम्बर का है इनके ही बहुत जन्मों के अन्त में मैं आकर प्रवेश करता हूँ और इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। पहले यह सब भठ्ठी में थे तो बहुतों को नाम दिये थे। परन्तु बहुतों ने फिर छोड़ दिया इसलिए नाम रखने से क्या फायदा? तुम वह नाम देखो तो वन्डर खाओ। एक ही साथ सब इकट्ठे कितने रमणीक नाम आये। सन्देशी नाम ले आती थी। वह लिस्ट भी जरूर रखनी चाहिए। सन्यासी भी जब सन्यास करते हैं तो उनका भी नाम बदल जाता है। घरबार छोड़ देते हैं। तुम छोड़ते नहीं हो। तुम ब्रह्मा के आकर बनते हो। शिव के तो हो ही। 

    तुम कहते ही हो बापदादा। सन्यासियों का ऐसे नहीं होता है। भल नाम बदलते हैं परन्तु बापदादा नहीं मिलता। उनको सिर्फ गुरू मिलता है। हठयोगी हद के सन्यासी और राजयोगी बेहद के सन्यासी में रात दिन का फर्क है। गाया भी जाता है ज्ञान भक्ति और वैराग्य। उनको भी वैराग्य है। परन्तु उनका है घरबार से वैराग्य। तुमको सारी दुनिया से वैराग्य है। उनको पता ही नहीं कि सृष्टि बदलती है। तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। यह सृष्टि खलास होनी है। तुम्हारे लिए नई दुनिया बन रही है। वहाँ जाना है परन्तु पावन होने बिगर तो वहाँ जा नहीं सकते। दिल में जंचता है बरोबर नई दुनिया में देवी-देवताओं का राज्य था, जो बाप अब स्थापन करते हैं। तुम जानते हो शिवबाबा को याद करने से हम पुण्य आत्मा बन जायेंगे। है बड़ा सहज, परन्तु याद भूल जाती है। भक्ति मार्ग की रसम रिवाज बिल्कुल ही अलग है। वापिस अपने घर तो कोई जा नहीं सकता। पुनर्जन्म सबको जरूर लेना है। घर जाने का समय एक ही है। फलाना मोक्ष को प्राप्त हुआ, यह तो गपोड़ा है। बाप कहते हैं- कोई भी आत्मा बीच से वापिस नहीं जा सकती। नहीं तो सारा खेल बिगड़ जाये। हर एक को सतो रजो तमो में जरूर आना है। मोक्ष के लिए तो बहुत आते हैं, समझाया जाता है मोक्ष होता नहीं। यह तो अनादि बना बनाया ड्रामा है। वह कभी बदली नहीं हो सकता। मक्खी यहाँ से पास हुई फिर 5 हजार वर्ष बाद ऐसे ही पास होगी। यह तो जानते हैं बाबा कितना भोला है। 

    पतित-पावन बाप अपने परमधाम से आते हैं– पार्ट बजाने। वही समझाते हैं यह ड्रामा कैसे बना हुआ है, इसमें मुख्य कौन-कौन हैं। जैसे कहते हैं ना कि सबसे साहूकार कौन हैं– इस दुनिया में? उसमें नम्बरवार नाम निकालते हैं। तुम जानते हो, सबसे साहूकार कौन है? वह कहेंगे अमेरिका। परन्तु तुम जानते हो स्वर्ग में सबसे साहूकार यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तुम पुरूषार्थ करते हो भविष्य के लिए, सबसे बड़ा साहूकार बनने के लिए। यह रेस है। इन लक्ष्मी-नारायण जैसा साहूकार कोई होगा? अल्लाह अवलदीन की भी स्टोरी बनाते हैं। ठका करने से कुबेर का खजाना निकल गया। बहुत किसमकिसम के नाटक बनाते हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में है– यह शरीर छोड़ स्वर्ग में जायेंगे। हमको कारून का खजाना मिलेगा। बाप कहते हैं- मुझे याद करने से माया एकदम भाग जायेगी। बाप को याद नहीं करते तो माया फिर तंग करती है। कहते हैं बाबा हमको माया के तूफान बहुत आते हैं। अच्छा बाप को बहुत प्यार से याद करो तो तूफान उड़ जायेंगे। बाकी नाटक आदि बैठ बनाये हैं। बात है कुछ भी नहीं। बाप कितना सहज बताते हैं– सिर्फ बाप को याद करो तो तुम्हारे में जो अलाए है वह निकल जायेगी और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। आत्मा जो पवित्र सच्चा सोना थी, वह अब झूठी बन गई है फिर सच्ची बनेगी– इस याद अग्नि से। आग में डालने बिगर सोना पवित्र हो न सके। 

    इसको भी योग अग्नि कहते हैं। है याद की बात। वो लोग तो अनेक प्रकार के हठयोग सिखलाते हैं। तुमको तो बाप कहते हैं- उठते बैठते याद करो। आसन आदि कहाँ तक तुम लगायेंगे। यह तो चलते फिरते काम करते याद में रहना है। भल बीमार हो तो यहाँ लेटकर भी बाप को याद कर सकते हो। शिवबाबा को याद करो और चक्र फिराओ, बस। उन्होंने फिर लिखा है गंगा का तट हो, अमृत मुख में हो। गंगा के किनारे तो गंगाजल ही मिलता है, इसलिए मनुष्य हरिद्वार में जाकर बैठते हैं। बाप तो कहते हैं तुम कहाँ भी बैठो, भल बीमार हो सिर्फ बाप को याद करो। स्वदर्शन चक्र फिराते रहो तब प्राण तन से निकलें। यह प्रैक्टिस करनी पड़े। उस भक्ति मार्ग की बातों में और इस ज्ञान मार्ग की बातों में कितना रात दिन का फर्क है। बाप की याद से तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। वह तो लड़ाई वालों को कहते हैं– जो युद्ध के मैदान में मरेगा वह स्वर्ग में जायेगा। वास्तव में युद्ध यही है। उन्होंने कौरवों, पाण्डवों का लश्कर दिखाया है। महाभारत लड़ाई हुई फिर क्या हुआ? रिजल्ट कुछ भी नहीं। बिल्कुल ही घोर अन्धियारा है, कुछ भी समझते नहीं इसलिए अज्ञान अन्धियारा कहा जाता है। बाप फिर रोशनी करने आया है। उनको ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल कहा जाता है। अभी तुमको भी सारा ज्ञान मिला है। वह है मूलवतन, जहाँ तुम आत्मायें रहती हो उनको ब्रह्माण्ड भी कहा जाता है। यहाँ रूद्र यज्ञ रचते हैं तो बाप के साथ-साथ तुम आत्माओं की भी पूजा करते हैं क्योंकि तुम बहुतों का कल्याण करते हो। बाप के साथ तुम भारत की खास और दुनिया की आम रूहानी सेवा करते हो इसलिए बाप के साथ तुम बच्चों का भी पूजन होता है। अच्छा! 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) माया के तूफानों को भगाने के लिए बाप को बहुत-बहुत प्यार से याद करना है। आत्मा को योग अग्नि से सच्चा-सच्चा सोना बनाना है।

    2) बेहद का वैरागी बन इस पुरानी दुनिया को भूल जाना है। दुनिया बदल रही है, नई दुनिया में जाना है इसलिए इससे सन्यास ले लेना है।

    वरदान:

    महान् और मेहमान-इन दो स्मृतियों द्वारा सर्व आकर्षणों से मुक्त बनने वाले उपराम व साक्षी भव!   

    उपराम वा साक्षीपन की अवस्था बनाने के लिए दो बातें ध्यान पर रहें-एक तो मैं आत्मा महान् आत्मा हूँ, दूसरा मैं आत्मा अब इस पुरानी सृष्टि में वा इस पुराने शरीर में मेहमान हूँ। इस स्मृति में रहने से स्वत: और सहज ही सर्व कमजोरियां वा लगाव की आकर्षण समाप्त हो जायेगी। महान् समझने से जो साधारण कर्म वा संकल्प संस्कारों के वश चलते हैं, वह परिवार्तित हो जायेंगे। महान् और मेहमान समझकर चलने से महिमा योग्य भी बन जायेंगे।

    स्लोगन:

    सर्व की शुभ भावना और सहयोग की बूंद से बड़ा कार्य भी सहज हो जाता है।   



    ***OM SHANTI***