BK Murli Hindi 5 August 2016

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 5 August 2016

    05-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– बाप के राइट हैण्ड बनना है तो हर बात में राइटियस बनो, सदा श्रेष्ठ कर्म करो”   

    प्रश्न:

    कौन सा संस्कार सेवा में बहुत विघ्न डालता है?

    उत्तर:

    भाव-स्वभाव के कारण आपस में जो द्वेत मत के संस्कार हो जाते हैं, वह सेवा में बहुत विघ्न डालते हैं। दो मतों से बहुत नुकसान होता है। क्रोध का भूत ऐसा है जो भगवान का भी सामना करने में देरी न करे इसलिए बाबा कहते हैं मीठे बच्चे, ऐसा कोई भी संस्कार हो तो उसे निकाल दो।

    गीत:-

    तकदीर जगाकर आई हूँ...   

    ओम् शान्ति।

    मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बच्चों अर्थात् शिवबाबा जो सुप्रीम रूह है, उनके बच्चों आत्माओं ने शरीर रूपी कर्मेन्द्रियों द्वारा गीत सुना। अब तो बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है। बहुत मेहनत भी है। घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। यह है गुप्त मेहनत। बाप भी गुप्त, तो मेहनत भी गुप्त कराते हैं। बाप स्वयं आकर कहते हैं बच्चों, मुझे याद करो तो कल्प 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से सतोप्रधान बनेंगे। बच्चे समझते हैं हम ही सतोप्रधान थे फिर हम ही अब तमोप्रधान बने हैं। सतोप्रधान बनना है जरूर। गीत में भी कहते हैं तकदीर जो गँवाई हुई है वह फिर पाने के लिए तदबीर कराने वाला एक ही सर्वशक्तिमान् बाप है, क्योंकि सबको पावन बनाते हैं ना। बाप बच्चों को समझाते हैं, हे रूहानी बच्चों अब तकदीर बनाने आये हो। स्टूडेन्ट स्कूल में तकदीर बनाने जाते हैं ना। वह तो छोटे बच्चे होते हैं। तुम छोटे नहीं हो, तुम तो बड़े बुजुर्ग हो। तकदीर बना रहे हो। हाँ कोई बूढ़े-बूढ़े भी हैं। बुढ़ापे से जवानी में पढ़ना अच्छा होता है, जवान की बुद्धि अच्छी होती है। यह तो सबके लिए बहुत सहज है। तुम्हारा शरीर तो बड़ा है ना। यह बेबी है, इतना नहीं समझ सकेंगे क्योंकि आरगन्स छोटे हैं। स्तुति-निंदा, दु:ख-सुख इन बातों को तुम समझ सकते हो। आत्मा तो बिन्दी है। शरीर बढ़ता रहता है। 

    आत्मा तो एकरस ही होती है। कभी घटती-बढ़ती नहीं। उस आत्मा की बुद्धि के लिए बाप कस्तूरी जैसी सौगात दे रहे हैं क्योंकि अभी तो बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान बन गई है। सो अब स्वच्छ भी बन रही है। यह चित्र तुमको समझाने में बहुत काम में आते हैं। भक्ति मार्ग में देवताओं के आगे जाकर माथा झुकाते हैं, पूजा करते हैं। आगे तुम भी अन्धश्रधा से जाते थे। शिव के मन्दिर में जाते थे, तुमको यह थोड़ेही पता था कि यह शिवबाबा है। बाबा से जरूर वर्सा मिला है तब तो उनकी महिमा गाई जाती है। कोई अच्छा काम करके जाते हैं तो उनकी महिमा गाई जाती है। स्टैम्प बनानी चाहिए शिवबाबा की। शिवबाबा गीता सर्मोनाइजर.... यह स्टैम्प सहज बन सकेगी। वह बाप सबको सुख देने वाला है। बाप कहते हैं- मैं तुमको सुखधाम का मालिक बनाने वाला हूँ। बुढि़याँ भी यह तो समझती होंगी कि हम आये हैं शिवबाबा के पास, जो विचित्र है। जिसने इस चित्र (तन) में प्रवेश किया है। निराकार को विचित्र कहा जाता है। बुद्धि में रहता है हम शिवबाबा के पास जाते हैं, जिसने यह टैम्प्रेरी चित्र धारण किया है। पतितों को पावन बनाए मुक्तिजीवनमुक्ति देते हैं अथवा शान्तिधाम, सुखधाम का रहवासी बनाते हैं। मनुष्य शान्ति के लिए ही कोशिश करते हैं। भगवान मिले तो शान्ति मिले, सुख के लिए पुरूषार्थ नहीं करते हैं। बस बाप के पास घर जायें, भगवान मिले। इस समय सब मुक्ति की चाहना रखने वाले हैं। जीवनमुक्ति लेने वाले सिर्फ तुम ब्राह्मण ही हो। 

    बाकी सब मुक्ति की चाहना रखने वाले हैं। जीवनमुक्ति का रास्ता बताने वाला कोई है ही नहीं। सन्यासियों आदि के पास जाकर शान्ति मांगते हैं। कहेंगे मन की शान्ति कैसे मिले। जो भी रास्ता बताने वाले हैं वह हैं ही मुक्ति में जाने वाले। मोक्ष क्या होता है, वह भी बुद्धि में नहीं आता है। तंग होकर कहते हैं मुक्ति में जायें तो अच्छा है। वास्तव में मुक्तिधाम है आत्माओं के रहने का स्थान। इतने सेन्टर्स पर बच्चे हैं सब जानते हैं कि हम नई दुनिया के लिए राज्य-भाग्य लेते हैं। बाबा हमको नई दुनिया का राज्य देते हैं। कहाँ देंगे? नई दुनिया में देंगे वा पुरानी दुनिया में देंगे? बाप कहते हैं मैं संगम पर आता हूँ। मैं न सतयुग में, न कलियुग में आता हूँ। दोनों के बीच में आता हूँ। बाप तो सबको सद्गति देंगे ना। ऐसे तो नहीं दुर्गति में छोड़ जायेंगे। सद्गति और दुर्गति इकठ्ठे नहीं रह सकते। बच्चे जानते हैं यह पुरानी दुनिया विनाश होनी है, इसलिए इनसे प्यार नहीं रखना है। बुद्धि कहती है बरोबर अभी हम संगमयुग पर हैं। यह दुनिया बदलने वाली है। अब बाप आया हुआ है, बाप कहते हैं-मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ। तुमको दु:ख से छुड़ाए हरि के द्वार ले जाता हूँ। यह ज्ञान की बात है। हरिद्वार, कृष्ण का द्वार अर्थात् कृष्णपुरी को कहा जाता है। अच्छा उनके पीछे फिर लक्ष्मण झूला लगा दिया है। पहले हरिद्वार आयेगा। सतयुग को हरी-द्वार कहा जाता है। फिर राम लक्ष्मण आदि दिखाते हैं। वह बात कोई है नहीं। वह तो बनाई हुई बात है। 

    राम को कितने भाई दे दिये हैं! 4 भाई तो होते नहीं। 4-8 भाई तो यहाँ होते हैं। एक तरफ हैं ईश्वरीय सन्तान, दूसरे तरफ हैं आसुरी सन्तान। अभी तुम जानते हो शिवबाबा ब्रह्मा तन में आये हैं। शिवबाबा है, ब्रह्मा है दादा। प्रजापिता है। वह आत्माओं का पिता तो अनादि है, इस समय ब्राह्मणों को रचते हैं। ऐसे नहीं कि शिवबाबा सालिग्राम को रचते हैं। नहीं, सालिग्राम तो अविनाशी हैं ही हैं। सिर्फ बाप आकर पवित्र बनाते हैं। जब तक आत्मा पवित्र नहीं बनी है तब तक शरीर कैसे पवित्र बन सकता। हम आत्मायें पवित्र थी तो सतोप्रधान थी। अभी अपवित्र तमोप्रधान हैं फिर सतोप्रधान कैसे बनें। यह तो सहज समझ की बात है। तुम इस समय खाद पड़ने से पतित तमोप्रधान हो गये हो। अब फिर सतोप्रधान बनना है। हिसाब-किताब चुक्तू कर सब शान्तिधाम वा सुखधाम में आयेंगे। आत्मायें निराकारी घर से कैसे आती है, उसका यादगार भी क्रिश्चियन लोग झाड़ में बल्ब लगाकर मनाते हैं। तुम जानते हो यह सभी धर्मों की अलग-अलग शाखायें हैं, वहाँ से आत्मायें कैसे नम्बरवार नीचे उतरती हैं, यह नॉलेज भी तुमको मिल गई है। हम आत्माओं का घर शान्तिधाम है। अभी है संगम। वहाँ से सब आत्मायें आ जायेंगी फिर सब जायेंगे। प्रलय तो होने की नहीं है। तुम जानते हो हम बाबा से तकदीर बनाने फिर से स्वराज्य लेने आये हैं। यह कोई सिर्फ कहने मात्र नहीं है। 

    याद से ही वर्सा मिलेगा। बाप कहते हैं- देह सहित जो भी देह के मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, सबको भूल जाओ। चित्र और विचित्र हैं ना। विचित्र उनको कहा जाता है जिनको देखा नहीं जाता है। यह बहुत महीन बातें हैं। आत्मा कितनी छोटी है। उनको घड़ी-घड़ी पार्ट बजाना पड़ता है और किसकी बुद्धि में ऐसी बातें हैं नहीं। पहले-पहले तो यह बुद्धि में बिठाना है कि हम आत्मा हैं, वह हमारा बाप है। उनको ही पतित-पावन, हे भगवान कह याद करते हैं। दूसरी कोई जगह जाने की दरकार नहीं है। तो याद भी एक को करना चाहिए ना। भगवान को याद करते हैं तो जरूर उससे कुछ मिलने का होगा। फिर दर-दर धक्के क्यों खाते हो! भगवान को तो परमधाम से आना पड़ेगा ना। हम तो जा नहीं सकते क्योंकि पतित हैं। पतित वहाँ जा न सकें। अभी तुम वन्डर खाते हो। भक्ति मार्ग का पार्ट कैसे वन्डरफुल है। एक भगवान को ही याद करते हैं– हे ईश्वर, हे परमपिता, ओ गॉड फादर। जब वह एक ही है फिर दूसरे तरफ धक्के क्यों खाते हो! वह एक ऊपर में रहते हैं। परन्तु यह सब नूँध हैं, ड्रामा अनुसार भक्ति करते हैं, बेहद बेसमझी से। अभी तुम फिर बेहद समझदार बनते हो। श्रीमत पर चलने वाले ही समझदार बनते हैं। वह फिर छिपे नहीं रह सकते, वह सदैव श्रेष्ठाचारी काम ही करेंगे। बाप कहते हैं-हम दु:ख हर्ता सुख कर्ता हैं तो बच्चों को भी कितना मीठा बनना चाहिए। बाप का राइट हैण्ड बनना चाहिए। ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं। राइट हैण्ड हैं ना। 

    तुमको मालूम है लेफ्ट हाथ से इतना काम नहीं कर सकते हैं क्योंकि राइट हाथ राइटियस काम करते हैं इसलिए इस राइट हाथ को ही शुभ काम में लगाते हैं। पूजा हमेशा राइट हैण्ड से करते हैं। बाप कहते हैं- हर बात में राइटियस बनो। बाप मिला है तो खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं- मामेकम् याद करो तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। मत और गत वा गति करने की मत एक ही है। गाया भी जाता है ईश्वर की गत मत ईश्वर ही जाने। पतित-पावन वही है। वह जानते हैं मैं मनुष्यों को पावन बनाए दुर्गति से सद्गति में कैसे ले जाऊंगा। भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते है परन्तु सद्गति होती नहीं। फल कुछ भी मिलता नहीं, सद्गति देने वाला तो एक ही बाप है। भक्ति में जो जिस भावना से पूजा करते हैं, उनको वह फल देने वाला मैं ही हूँ। वह भी ड्रामा में नूँध है, उनको आपेही मिल जाता है– अपने पुरूषार्थ से। अब पवित्र भी अपने पुरूषार्थ से बच्चों को बनना है। बाप कहते हैं- मीठे-मीठे बाप को याद करो। वही सर्वशक्तिमान्, आलमाइटी अथॉरिटी कितना अच्छा बनाते हैं। तुम सब कुछ जान चुके हो फिर बाप से वर्सा ले रहे हो। रचयिता और रचना की नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। तुम जानते हो यह नॉलेज हमारे में नहीं थी। यज्ञ-तप आदि करना, शास्त्र आदि सुनना– यह है शास्त्रों की नॉलेज। उनको भक्ति कहा जाता। उसमें एम आब्जेक्ट कुछ है नहीं। पढ़ाई में एम आब्जेक्ट रहती है। कोई न कोई प्रकार की नॉलेज होती है। 

    हमको पतित से पावन बनने की नॉलेज पतित-पावन बाप ने दी है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज बाप ने दी है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, इसमें सभी एक्टर्स पार्टधारी हैं। यह अनादि नाटक बना हुआ है। यह बेहद की नॉलेज तो जरूर होनी चाहिए। तुम बच्चे जानते हो अभी हम घोर अन्धियारे से निकल घोर सोझरे में जा रहे हैं। तुम अभी देवता बन रहे हो। यह भी समझाना है कि आदि सनातन तो देवी-देवता धर्म है, जिसे हिन्दू धर्म कह दिया है। धीरे-धीरे यह बात भी समझ जायेंगे। बच्चों को खड़ा होना चाहिए। इसमें तो ढेर बच्चे चाहिए। देहली में कन्फ्रेन्स करनी पड़े। परिस्तान भी देहली को कहा जाता है। यही जमुना का कण्ठा था, देहली कैपीटल है। बहुतों के हाथ आई है। देवताओं की कैपीटल भी यह थी, देहली में बहुत बड़ी कन्फ्रेन्स होनी चाहिए परन्तु माया ऐसी है जो करने नहीं देती। विघ्न बहुत डालती है। आजकल भाव-स्वभाव भी बहुत हो गये हैं ना। बच्चों को आपस में मिलकर सर्विस में लगना है। वे लोग भी आपस में नहीं मिलते हैं तो राजाई ही उड़ जाती है, दो पार्टी हो जाती हैं तो प्रेजीडेंट को भी उड़ा देते हैं। द्वेत मत बड़ा नुकसान करती है। फिर भगवान का भी सामना करने में देरी नहीं करते हैं। नुकसान भी बहुत पाते हैं। क्रोध का भूत आ जाता है तो फिर बात मत पूछो इसलिए बाबा कहते हैं गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। बाप बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुना रहे हैं। 

    अब कोई धारणा करे वा न करे, वह है पुरूषार्थ पर मदार। ऐसे नहीं कोई पर बाबा आशीर्वाद वा कृपा करेंगे, इसमें कृपा आदि मांगने की बात नहीं। प्रेरणा से अगर योग और ज्ञान सिखलाना होता, फिर तो बाप कहते हैं मैं इस गन्दी दुनिया में आता क्यों? प्रेरणा, आशीर्वाद यह सब भक्ति मार्ग के अक्षर हैं। इसमें पुरूषार्थ करना होता है, प्रेरणा की बात नहीं। तुमको 3 इन्जन मिली हैं इकठ्ठी। वहाँ तो बाप अलग, टीचर अलग मिलता है, गुरू पिछाड़ी में मिलता है। यहाँ तो यह तीनों ही इकठ्ठे हैं। बाप कहते हैं-मैं तुमको पूज्य बनाता हूँ, तुम फिर पुजारी बन जायेंगे। बड़ा युक्ति से समझाना है। ऐसा न हो कोई बेहोश हो जाए। पहले-पहले मुख्य है दो बाप की बात। भगवान बाप है, उनका जन्म शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। जरूर स्वर्ग का मालिक बनाते होंगे। भारत में ही स्वर्ग था। अभी नर्क के विनाश लिए महाभारत लड़ाई खड़ी है। जरूर बाप नई दुनिया की स्थापना कराने वाला भी है। बाप की श्रीमत पर ही हम कहते हैं कि भारत को हम पावन बनाकर ही छोड़ेंगे। अच्छा! 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे बाप समान बनना है। बहुत मीठा बनना है। सदा शुभ काम करके राइट हैण्ड बन जाना है।

    2) कभी दो मतें नहीं बनानी है। भाव-स्वभाव में आकर एक-दो का सामना नहीं करना है। क्रोध का भूत निकाल देना है।

    वरदान:

    निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा कर्मयोगी बनने का वरदान प्राप्त करने वाले मास्टर वरदाता भव  

    जब कोई भी चीज साकार में देखी जाती है तो उसे जल्दी ग्रहण किया जा सकता है इसलिए निमित्त बनी हुई जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों की सर्विस, त्याग, स्नेह, सर्व के सहयोगीपन का प्रैक्टिकल कर्म देखकर जो प्रेरणा मिलती है वही वरदान बन जाता है। जब निमित्त बनी हुई आत्माओं को कर्म करते हुए इन गुणों की धारणा में देखते हो तो सहज कर्मयोगी बनने का जैसे वरदान मिल जाता है। जो ऐसे वरदान प्राप्त करते रहते वह स्वयं भी मास्टर वरदाता बन जाते हैं।

    स्लोगन:

    नाम के आधार पर सेवा करना अर्थात् ऊंच पद में नाम पीछे कर लेना।   



    ***OM SHANTI***