BK Murli Hindi 10 October 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 10 October 2016

    10-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– बेहद का बाप आया है तुम बच्चों को अपने साथ ले जाने, इसलिए अब बाप का बनकर उनकी श्रीमत पर चलो”

    प्रश्न:- 

    बाप अपने बच्चों की तकदीर ऊंची बनाने के लिए कौन सी श्रेष्ठ मत देते हैं?

    उत्तर:- 

    मीठे बच्चे मौत के पहले जितना हो सके याद में रहने का पुरूषार्थ कर लो, इससे ही तुम्हारी कमाई है। मेरा बच्चा बनकर कभी भूल से भी कोई पाप कर्म नहीं करना। भल माया के कितने भी तूफान आयें लेकिन पतित तो कभी नहीं बनना।

    ओम् शान्ति। 

    शिव भगवानुवाच। तुम बच्चे तो समझेंगे शिवबाबा हमें समझाते हैं। तुम हो संगमयुगी। शिवबाबा के सम्मुख बैठे हो। वह कलियुगी मनुष्य शिवबाबा के जड़ मन्दिर में जाकर बैठते हैं। फर्क समझते हो ना। बुद्धि का ताला कुछ खोलो भी। तुम समझते हो हम चैतन्य शिवबाबा के पास बैठे हैं। बाबा हमसे सम्मुख वार्तालाप कर रहे हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखला रहे हैं और दूसरी तरफ देखो मनुष्य शिवबाबा की पूजा कर रहे हैं। अमरनाथ पर, काशी पर जा रहे हैं ढूँढने। फिर तुम यह घड़ी-घड़ी भूल क्यों जाते हो कि हम शिवबाबा के पास बैठे हैं, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। उनकी कितनी महिमा है। उनको तुम बाबा-बाबा कहते हो। जानते हो हम शिवबाबा की मत पर चल विश्व के मालिक बनने का वर्सा ले रहे हैं। वह मन्दिरों, तीर्थो आदि पर धक्के खाते रहते हैं और तुम वर्सा ले रहे हो। फर्क देखो कितना है। तुम्हारी भेंट में वह कितने बुद्धू हैं। शिवबाबा कहते हैं मैं तुम्हारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। मैं तुमको वर्सा देने आया हूँ। वह गॉड फादर को बुलाते रहते हैं। यहाँ तो तुम गॉड फादर के सम्मुख बैठे हो। यहाँ बुद्धि में बैठता है फिर घर जाने से भूल क्यों जाते हो! यहाँ तुम्हारे लिए दिन है, वहाँ उनके लिए रात है। वह चिल्लाते रहते हैं, तुम सम्मुख में बैठे हो कहते हो तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से सुनूँ। परन्तु घर जाकर भूल जाते हो। माया बड़ी प्रबल है। शिवबाबा के बच्चे बन पुजारी से पूज्य बनने का पुरूषार्थ भी करते हैं फिर बाहर जाकर पुजारी बन पड़ते हैं। शिवबाबा के जड़ मन्दिर में जाते रहते हैं। 

    यहाँ तो बाप समझाते हैं बच्चे, श्रीमत पर चलने से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे। मुख्य है ही पवित्रता। वहाँ जड़ चित्रों के आगे जाकर काशी कलवट खाते हैं। यहाँ तो चैतन्य में बैठे हैं। यहाँ काशी कलवट खाने की बात नहीं। यह है जीते जी मरना। बाप कहते हैं– श्रीमत पर चलो। यहाँ से बाहर जाने से ही बाप को भूल जाते हैं। कभी चिठ्ठी आदि भी नहीं लिखते। कोई तो ऐसे हैं जो कभी देखा भी नहीं है। वह तड़फते-तड़फते चिठ्ठीयाँ लिखते रहते और जो सम्मुख मिलकर जाते हैं वह फिर एकदम भूल जाते हैं। तुमको तो शिवबाबा पर बलि चढ़ना है ना। भक्ति मार्ग में शिवबाबा से मिलने के लिए काशी कलवट खाते थे परन्तु वह तो मिल नहीं सकते। अब बाप चैतन्य में आकर कहते हैं बच्चे मेरा बनो। मैं आया हूँ ले चलने। बिगर पवित्र बने तो चल नहीं सकते। पवित्र बनाने मुझे ही आना पड़ता है। सर्व का सद्गति दाता बाप तुम्हारे पास बैठा है। तुमको राजयोग सिखा रहे हैं, जो गीता के भगवान ने सिखाया था। उन्होंने कृष्ण को भगवान कह दिया है। तुम जानते हो गीता का भगवान शिवबाबा है। तुम चिठ्ठी भी ऐसे लिखते हो– शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा। तुमको सम्मुख बैठ बाप समझाते हैं। फिर भी नशा नहीं चढ़ता है। ओहो! शिवबाबा ने हमको गोद में लिया है। धर्म का बच्चा बनाया है। परन्तु सबको तो यहाँ पर नहीं रखेंगे ना। हजारों बच्चे हैं। सबको यहाँ कैसे रखेंगे, इतनी जगह कहाँ है! बाप कहते हैं- तुमको रहना अपने घर में ही है। बाप को याद करना है। सबसे मीठा जो बेहद का बाप है, उनके तुम बच्चे बने हो। बाप समझाते हैं बच्चे, तुम काम-चिता पर बैठ जल मरे हो। अब तुम ज्ञान चिता पर बैठ देवता बनो। देवताओं की पूजा भी करते हैं, परन्तु समझते कुछ भी नहीं। 

    यह भी ड्रामा की भावी कहेंगे। अभी तुम चैतन्य शिवबाबा के पास बैठे हो। गाया भी जाता है शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना करते हैं। बाप समझाते हैं बच्चों, कोई भी पाप कर्म नहीं करो। देह- अभिमान में नहीं आओ। तुमको तो चलते फिरते साजन को याद करना है। जिसको तुम आधाकल्प से याद करते थे, वह अब तुम्हारी सर्विस में उपस्थित है। रूहानी सोशल वर्कर है। तुमको रूहानी सर्विस सिखलाते हैं। सोशल वर्क के हेड्स भी होते हैं ना। यह है रूहानी। वह होते हैं मनुष्य सोसायटी की जिस्मानी सर्विस करने वाले। अभी देखो वह कहते हैं गऊ का कोस करना बन्द करो। तुम लिख सकते हो कि एक दो पर काम कटारी चलाना– यह सबसे बड़ा कोस है। पहले तो यह बन्द करो। जिसके लिए ही भगवान ने कहा है काम महाशत्रु आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है। तुम गीता के भगवान को भूल गये हो। बाबा को तो वन्डर लगता है। एक तो अमरनाथ पर, पहाड़ों पर धक्के खाते रहते हैं, समझते हैं पार्वती को वहाँ अमरकथा सुनाई। अब एक पार्वती को सुनाने से क्या होगा! बाप समझाते हैं यह सब पार्वतियाँ हैं। सबको अमरकथा सुना रहे हैं। बाप कहते हैं- बच्चे 84 जन्म लेते-लेते अब मृत्युलोक में आकर पहुँचे हो। अच्छा लक्ष्मी-नारायण कहाँ गये, क्या वापिस गये वा ज्योति ज्योत समाये? सूर्यवंशी राजा-रानी, प्रजा वह सब गये कहाँ? जरूर सतोप्रधान से 84 जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बन गये होंगे। समझते हो ना! यह ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा बैठ समझाते हैं। बच्चों, अभी मैं तुम्हारी तकदीर बनाने आया हूँ, फिर तुम तकदीर को लकीर क्यों लगाते हो! कुछ तो समझो। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। 

    तुम मेरी मत पर नहीं चलेंगे! घर जाने से याद क्यों भूल जाते हो! बाप बार-बार समझाते हैं बच्चे, अभी तुम संगमयुगी हो। वह कलियुगी हैं। तुम पूज्य, वह पुजारी। तुम्हारा भटकना अभी बन्द है। भल वह तुमको नास्तिक समझते हैं, तुम उनको कहते हो नास्तिक। वह कहते हैं तुम भक्ति नहीं करते हो इसलिए नास्तिक हो। तुम कहते हो तुम बाप को नहीं जानते हो इसलिए नास्तिक हो। तुम कहते हो हम आस्तिक हैं। बाप को जानकर वर्सा लेते हैं। तुम नहीं जानते हो तो धक्के खाते रहते हो। कुम्भ के मेले पर भी कितने जाते हैं, फिर दान-पुण्य करते हैं। अब बाप कहते हैं यह सब बातें छोड़ो। तुमको ज्ञान का सागर मिला है फिर और कहाँ जायेंगे। यह ज्ञान नदियाँ हैं। ज्ञान सागर के पास ज्ञान स्नान कराने तुमको ले आते हैं। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे बाप के पास आकर फिर जाए गन्द करते हैं। कोई तो बाप की मत पर चलते हैं। पूछते हैं बाबा विनाशी धन कैसे सफल करें! तो फिर उनको समझाया जाता है– डूबी नांव से जितना भी निकले वह अच्छा है। भारत की सेवा में लगाए उनको सफल कर दो, कोई सेन्टर खोल दो। यह चित्र भी कितने बनते रहते हैं। बाबा के पास ऐसे-ऐसे बच्चे हैं– जो कहते हैं जब जरूरत पड़े तो बाबा मुझे याद करना, हम मदद करने के लिए हाजर हैं। यज्ञ के अच्छे-अच्छे काम के लिए दरकार हो तो मुझे याद करना। बाबा कहते हैं- हम किसको याद नहीं करते– जो करना है सो करो। हम तो दाता हैं। हम तो आये ही हैं भारत को स्वर्ग बनाने, तुम भी स्वर्ग में जायेंगे। जितना करेंगे उतना पायेंगे। परन्तु जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है, उसे उतारना है। नहीं तो उसकी बहुत सजाये हैं। 

    स्वर्ग में तो जायेंगे परन्तु सजायें रह गई तो पद नहीं पा सकेंगे। यह तो गायन है सांवलशाह की हुण्डी सकारी। इनको कोई परवाह नहीं है। बाबा कहते हैं हुण्डी आपेही भरेगी। तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना है, इसमें ही कल्याण है। अकल्याण कभी मत समझो। समझो देहली जाते रास्ते में टांग टूट पड़ती है, इसमें भी समझो कल्याण है। आत्मा तो नहीं टूटी ना। टांग टूटी, हर्जा नहीं। मैं तो तुम्हारी आत्मा से बात करता हूँ। बाप समझाते हैं यह रावण राज्य है तब तो जलाते हैं। हम क्या थे, बाबा ने हमको क्या से क्या बना दिया है। दुनिया की हालतें देखो क्या हैं! अभी बाप तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं तो उनकी मत पर चलना चाहिए। कोई पाप का काम नहीं करना चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। बस यह सत्य नारायण की कथा सुनते रहो। यह कितनी लम्बी है। सारा सागर स्याही बनाओ तो भी इन्ड नहीं हो सकती। तो बाप की मत पर चलना चाहिए ना। तुम जानते हो हम भगवान की श्रीमत पर राजाई पाते हैं, मनुष्य से देवता बनते हैं। मौत तो सामने खड़ा है। अचानक हार्ट फेल होते रहते, एक्सीडेंट में मर जाते हैं। बाप कहते हैं– मरने के पहले खूब पुरूषार्थ करो। बाप को याद करते-करते अपनी कमाई कर लो। बेहद के बाप का बनकर फिर पाप किया तो एक का सौ गुणा हो जायेगा। फिर लज्जा भी आयेगा कि मनुष्य क्या कहेंगे? शिवबाबा कहते हैं– मैं धर्मराज से बहुत कड़ी सजायें दिलवाता हूँ। फिर उस समय ऐसे थोड़ेही कहेंगे यह हमारा बच्चा है। इसमें बड़े कायदे हैं। जज का बच्चा पाप करे, कुछ कर थोड़ेही सकेंगे। सजा भोगनी ही पड़े। तो बाप रोज समझाते हैं, बच्चे पाप का काम बिल्कुल नहीं करना। सबसे बड़ा विकार का पाप है। भल तूफान बहुत आयेंगे, बाहर बहुत गन्द लगा हुआ है। बात मत पूछो। 

    यह है ही वेश्यालय। समझो कोई बड़े आदमी को तुम समझाते हो और वह स्टूडेन्ट बन जाता है तो कहेंगे ब्रह्माकुमारियों का इनको जादू लगा है। बड़े-बड़े लोग आकर लिखते भी हैं बरोबर आप सच कहते हो। गीता का भगवान बरोबर शिव है, न कि श्रीकृष्ण। अच्छा फिर अपने घर गये खलास। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे भूलो मत। माया बड़ी प्रबल है। बाबा की याद पारे मिसल है, झट भूल जाती है। बाप कहते हैं– भल गृहस्थ-व्यवहार में रहो, सिर्फ पवित्र बनो। पुरूषार्थ तो करना है ना। बाप तो एक-एक बच्चे को बहुत प्यार से कहते हैं, अब मेरा बच्चा बन फिर कोई पाप का काम नहीं करना। बाप को तो जान गये हो ना। सृष्टि चक्र का भी राज बुद्धि में है। विद्वान, पण्डित, आचार्य तो अपने को शिवोहम् कह बैठ पूजा कराते हैं। बहुत करके सन्यासी लोग हरिद्वार में जाकर रहते हैं। सारा दिन कहते रहते हैं शिव काशी विश्वनाथ गंगा। बाप कितना अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। गाते भी हैं अकालमूर्त। अकाल तख्त कोई सन्दल नहीं होता। अकाल मूर्त बाप का यह रथ तख्त है। जैसे तुम्हारा यह रथ है। बाबा भी कहते हैं मैंने यह रथ लिया है। भ्रकुटी में, एक तरफ चेला, एक तरफ गुरू बैठा है। जरूर इनके बाजू में ही आकर बैठूँगा ना। मैं भी हूँ बिन्दी। कोई इतना बड़ा नहीं हूँ। मीठे-मीठे बच्चे यह तुम्हारी सच्ची-सच्ची चैतन्य यात्रा है याद की। बापदादा दोनों मिले हुए हैं। बाप-दादा का अर्थ कोई समझ न सके। तार में सही करते हैं, बापदादा। कोई समझ न सके। अरे शिवबाबा तुम्हारा बाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा दादा है ना। तो बापदादा हुए ना। अब बाप कहते हैं मैं आया हूँ– इन द्वारा तुमको वर्सा देने। शिवबाबा तुम्हारा भी है। प्रजापिता ब्रह्मा भी सबका बाप हो गया। वर्सा शिवबाबा से मिलता है। तो सही ऐसे करेंगे ना। बापदादा कहा जाता है। शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो भी बुद्धि में बैठता नहीं है। प्रदर्शनी में हजारों आते हैं। उनसे 8-10 समझने के लिए आते हैं। उनसे भी आहिस्ते-आहिस्ते बाकी जाकर एक दो बचते हैं। कोटो में कोई गाया हुआ है। तो कितनी प्रदर्शनी करनी पड़े, जो कोटो में कोई निकलें। कई तो 4-5 वर्ष आकर भी गुम हो जाते हैं। बाप को फारकती दे देते हैं। अच्छा– 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) शिवबाबा पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है अर्थात् जीते जी मरना है। श्रीमत पर चलना है।

    2) शिवबाबा के बच्चे बने हैं तो कोई भी पाप का काम नहीं करना है। पवित्र बन अपना कल्याण करना है।

    वरदानः 

    याद के आधार द्वारा माया की कीचड़ से परे रहने वाले सदा चियरफुल भव

    कोई कैसी भी बात सामने आये सिर्फ बाप के ऊपर छोड़ दो। जिगर से कहो-“बाबा”। तो बात खत्म हो जायेगी। यह बाबा शब्द दिल से कहना ही जादू है। माया पहले-पहले बाप को ही भुलाती है इसलिए सिर्फ इस बात पर अटेन्शन दो तो कमल पुष्प के समान अपने को अनुभव करेंगे। याद के आधार पर माया के समस्याओं की कीचड़ से सदा परे रहेंगे। कभी किसी भी बात में हलचल में नहीं आयेंगे, सदा एक ही मूड होगी चियरफुल।

    स्लोगनः 

    पवित्रता की धारणा वा धर्म को जीवन में लाने वाले ही महान आत्मा हैं।   



    ***OM SHANTI***