BK Murli Hindi 15 October 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 15 October 2016

    15-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– इस पुरानी दुनिया का अब अन्त है, इसलिए संगमयुग पर तुम्हें भविष्य राजाई के लायक बनना है”

    प्रश्न:

    बच्चों में कौन सा शौक हो तो गद्दी नशीन बन सकते हैं?

    उत्तर:

    आलराउन्ड सर्विस करने का शौक हो तो गद्दीनशीन बन सकते हैं, जो आलराउन्ड सर्विस कर बहुतों को सुख देते हैं उन्हें उसका उजूरा भी मिलता है। बच्चों को हमेशा हर सर्विस में हाजर रहना चाहिए। ऐसा होशियार बनो जो माँ-बाप का शो करो। मम्मा बाबा कहते हो तो उन जैसा बनकर दिखाओ।

    गीत:-

    इस पाप की दुनिया से...   

    ओम् शान्ति।

    सिर्फ मीठे-मीठे ब्रह्माकुमार कुमारियाँ ही यह जानते हैं कि पाप की दुनिया और पुण्य की दुनिया किसको कहा जाता है। पतित दुनिया किसको, पावन दुनिया किसको कहा जाता है। भल मनुष्य कहते हैं कि हे पतित दुनिया को पावन बनाने वाले आओ, परन्तु जानते नहीं हैं। यह भी आत्मा ही कहती है हे पतित-पावन...सब मनुष्य मात्र बुलाते रहते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि पावन दुनिया किसको कहा जाता है। वह कब और कैसे स्थापन होगी। अभी तुम नॉलेजफुल बाप के बने हो, इसलिए नॉलेजफुल ज्ञान सागर बाप को सिर्फ तुम ही जानते हो। और कोई बिल्कुल नहीं जानते कि पावन दुनिया फिर पतित कैसे बनती हैं। पतित दुनिया फिर पावन कैसे बनती है। पतित दुनिया में कौन रहते हैं और पावन दुनिया में कौन रहते हैं। यह सब बातें तुम अभी जानते हो। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। जरूर पावन दुनिया भारत में भी तो एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म का राज्य था, इसलिए भारत सबसे प्राचीन देश गाया जाता है। अभी तुम समझते हो हमको फिर से पावन दुनिया में जाने के लिए पतित-पावन बाप युक्तियाँ बता रहे हैं। बाप कहते हैं– एक सेकेण्ड में युक्ति बताता हूँ। बाप आते ही हैं नई दुनिया का राज्य भाग्य देने। यह है बेहद के बाप से बेहद का वर्सा। बाप ही आकर राजयोग सिखाते हैं। हम राजयोग सीख रहे हैं। बाप कहते हैं– तुम ही सतोप्रधान थे फिर सतोप्रधान बनना है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, न कि हिन्दू। 

    देवी-देवता धर्म भारत का ही पहले-पहले था। फिर जरूर पुनर्जन्म लेते आये होंगे। जैसे क्रिश्चियन लोग भी पुनर्जन्म ले वृद्धि को पाते हैं। बौद्धियों का धर्म स्थापन करने वाला बुद्ध, वह हो गया धर्म स्थापक। एक बुद्ध से कितने ढेर बौद्धी निकले। क्राइस्ट एक था। अभी देखो कितने क्रिश्चियन हो गये हैं। सब धर्मो का ऐसे-ऐसे चलता आया है। वैसे जब आदि सनातन देव्-देवता धर्म था तो यह और कोई थे नहीं। औरों का तो जानते हैं। क्रिश्चियन धर्म क्राइस्ट, इस्लाम धर्म इब्राहम ने स्थापन किया। अच्छा जो सतयुग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था वह किसने स्थापन किया? सतयुग में देवी-देवताओं की राजधानी चली है ना। तो जरूर कोई ने राज्य स्थापन किया है। सतयुग में देवी-देवता धर्म था, वह अभी बाप स्थापन करते हैं इसलिए बाप को आना ही पड़ता है संगमयुग पर। अभी सब मनुष्य मात्र पतित दुनिया में बैठे हैं। पुरानी दुनिया में करोड़ों मनुष्य हैं। नई दुनिया में तो इतने मनुष्य हो न सकें। वहाँ एक धर्म था। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि कोई नहीं थे। वह देवता धर्म अब प्राय: लोप है। वह कैसे भगवान ने स्थापन किया था, यह कोई नहीं जानते। देवता धर्म नाम ही भूल गये हैं, हिन्दू धर्म कह देते हैं। अब बाप समझा रहे हैं मैं आता ही तब हूँ जब पुरानी दुनिया को बदलना है। अभी इस पुरानी दुनिया की इन्ड है। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो। इस महाभारी लड़ाई से ही पुरानी दुनिया की इन्ड हुई थी। गीता में दिखाते हैं सब खत्म हो गये। कोई नहीं रहा। 

    5 पाण्डव बचे वह भी पहाड़ों पर गल मरे। परन्तु ऐसा कोई होता नहीं है। यह तो बाप स्थापन करते हैं। प्रलय अथवा जलमई तो होती नहीं। बाबा को पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ, हमारे दु:ख हरो सुख दो क्योंकि अभी रावण राज्य है। रामराज्य चाहते हैं तो जरूर रावण राज्य है ना। बाप समझाते हैं अभी रामराज्य की स्थापना, रावण राज्य का विनाश हो जाता है। मैं जो युक्ति सिखलाता हूँ, जो सीखते हैं वही जाकर नई दुनिया में राज्य करते हैं। यह ज्ञान वहाँ कुछ भी रहेगा नहीं। अब तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है। जिनकी बुद्धि में है वह औरों को समझाते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान टपकता रहता है। जरूर सतयुग में पहले-पहले देवी-देवता धर्म वाले थे। यह भी तुम जानते हो। बाप पहले-पहले ब्राह्मणों को ही रचते हैं प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा। यह ज्ञान यज्ञ है ना तो जरूर ब्राह्मण सम्प्रदाय ही चाहिए। ब्राह्मण सम्प्रदाय जरूर संगम पर ही होगी। आसुरी सम्प्रदाय है कलियुग में, दैवी सम्प्रदाय है सतयुग में। तो जरूर संगम पर ही स्थापना होगी दैवी सम्प्रदाय की। जब बाजोली खेलते हैं तो पाँव और चोटी मिलते हैं। तुम ब्राह्मण हो फिर याद आता है। विराट रूप का चित्र भी जरूरी है। इसकी समझानी बड़ी अच्छी है। कहते भी हैं बाबा हम आपके 6 मास के बच्चे हैं। 4 दिन के बच्चे हैं। कोई कहते हैं हम एक दिन का बच्चा हूँ अर्थात् आज ही बाबा का बना हूँ। मुख वंशावली बना हूँ। जो जीते जी बाप के बनते हैं तो कहते हैं बाबा हम आपके हैं। छोटा बच्चा तो कह न सके। यह ज्ञान है बड़ों के लिए। कहते हैं बाबा हम आपका छोटा बच्चा हूँ। छोटे बच्चों को चित्रों पर समझाना सहज है। 

    दिन-प्रतिदिन समझानी विस्तार को पाती रहती है। यह चित्रों की युक्ति ड्रामा प्लैन अनुसार 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक निकली है। इसमें यह कोई प्रश्न नहीं उठा सकता कि शुरू में क्यों नहीं निकली, अभी क्यों? ड्रामा अनुसार जो युक्ति जब निकलनी होगी तब निकलेगी। स्कूल में पढ़ाई के नम्बरवार दर्जे होते हैं। ऐसे थोड़ेही है पहले से ही बड़ा इम्तहान पास कर लेंगे। पहले सिर्फ अल्फ बे पढ़ाया जाता है ना। यह तो बाप का बच्चा बनने से ही बाप स्वर्ग की बादशाही देते हैं। बाप को बाप कहने बाद फिर निश्चय टूटता थोड़ेही है। यहाँ तो बाबा-बाबा कहते निश्चय टूट जाता है। तुम जानते हो यह तो बेहद का बाप है। तुम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हो तो उनकी श्रीमत पर चलना है। बाप कहते हैं– और सभी बातें छोड़ मुझे याद करो और वर्से को याद करो। चलते-फिरते यह याद रहने से खुशी भी रहेगी। परन्तु यह याद ठहरती क्यों नहीं हैं। तुम्हारी तो गैरन्टी है– बाबा हम आपके बनेंगे तो हमारा और कोई से ममत्व नहीं रहेगा। हम आपकी मत पर ही चलूँगा। बाप भी कहते हैं श्रीमत पर न चलने से भूलें होती रहेंगी। श्रीमत पर चलने से खुशी का पारा चढ़ेगा। आत्मा को अतीन्द्रिय सुख मिलता है तो कितनी खुशी होती है। आत्मा जानती है परमपिता परमात्मा ने हमको राज्य भाग्य दिया था, जो 84 जन्म लेते-लेते गँवा दिया है फिर बाप दे रहे हैं। तो अपार खुशी होनी चाहिए ना। अन्दर की खुशी भी दिखाई पड़ती है ना। इस लक्ष्मी-नारायण के चेहरे से दिखाई पड़ता है ना। भल अज्ञान काल में कोई-कोई बहुत अच्छे खुशी में होते हैं। 

    बातचीत करने में भी अच्छे होते हैं। मनुष्य सृष्टि में सबसे ऊंच पोजीशन किसका है? यूँ तो सबसे ऊंच है शिव परमात्मा जिसको सब फादर कहकर पुकारते हैं। परन्तु उनके आक्यूपेशन को जानते नहीं। जब बाप आये तब आकर अपना परिचय दे। अभी तुम बच्चे जानते हो हमको बाबा से बैकुण्ठ की राजाई मिलती है। खुशी होनी चाहिए ना। हम नर से नारायण बनते हैं। कोई भल हाथ उठा लेते हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं। जिनको निश्चय रहता है तो उनको यह खुशी रहती है कि अब हमने 84 जन्म पूरे किये। अब हम बाबा की मत पर चल विश्व के मालिक बनते हैं। इस पढ़ाई का नशा कितना होना चाहिए। प्रेजीडेंट, गवर्नर आदि को नशा तो है ना। बड़े-बड़े आदमी आते हैं उनसे मिलने। बिगर पोजीशन को जानें कब कोई से मिल न सके। बाबा भी कब मिलते नहीं हैं। बाबा की पोजीशन को सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो। भल ब्रह्माकुमार कहलाते हैं परन्तु बुद्धि में यह नहीं रहता कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। उनसे हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। न बाप को, न वर्से को याद कर सकते हैं। याद रहे तो अन्दर की खुशी भी रहे ना। जैसे कन्या की शादी कराते हैं तो उनको गुप्त दान दिया जाता है। पेटी बन्दकर चाबी हाथ में दे देते हैं। बाप भी तुमको विश्व के बादशाही की चाबी हाथ में दे देते हैं। तुम नये सतयुगी विश्व का उद्घाटन करते हो। स्वर्ग में भी तुम जायेंगे। बाबा तुमको लायक बनाते हैं। भगत तो स्वर्ग में जाने लायक बन न सकें। जब तक बाबा ज्ञान न दे, पवित्र न बनें इसलिए नारद का मिसाल है। भल भगत तो अच्छे-अच्छे बहुत हैं परन्तु आत्मा तो पतित है ना। जन्म-जन्मान्तर वह पतित बनते आये हैं। 

    जब तक बाप न मिले तब तक स्वर्ग में जा न सके। तुमको बाप ने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है, जो तुम जाकर नई दुनिया में राज्य करेंगे। दूसरे कोई राजाई स्थापन करते ही नहीं हैं। न किसको मालूम है। बाप ही संगमयुग पर आकर भविष्य 21 जन्मों की राजाई स्थापन कर रहे हैं। इस बाप को कोई भी जानते नहीं। अभी तुम समझते हो बरोबर 5 हजार वर्ष पहले भगवान आया था। गीता का ज्ञान सुनाया था, जिससे मनुष्य से देवता बने थे। गीता है ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। सतयुग में तो कोई शास्त्र आदि होते नहीं। बाप कहते हैं– मैं संगमयुग पर ही आता हूँ। फिर से आकर सृष्टि के आदिमध् य-अन्त का ज्ञान सुनाता हूँ, वही देवी-देवता बनते हैं फिर 84 का चक्र लगाकर जब अन्त में आते हैं तो उन्हों को ही आकर फिर समझाता हूँ। बीच में कभी भी मैं आता ही नहीं हूँ। ऐसा थोड़ेही कि क्राइस्ट कोई बीच में आ जायेगा और जो भी धर्म स्थापन करते हैं वह इस दुनिया के लिए। मैं आता ही हूँ संगम पर नई दुनिया स्थापन करने। क्राइस्ट की आत्मा आकर प्रवेश कर अपना धर्म स्थापन करती है। यह बाप तो राजाई स्थापन करते हैं। यह किसको पता नहीं है कि यह लक्ष्मी-नारायण की राजाई कब और किसने स्थापन की। यह जो लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर आदि बनाते हैं उन्हों से पूछना चाहिए। तुम सभा में भी पूछ सकते हो। यह राज तुम्हारी बुद्धि में है। बाबा, ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं कल्प-कल्प, और कोई जान न सके। अक्षर भी हैं, परन्तु यथार्थ रीति किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। कोई-कोई बच्चों पर ग्रहचारी भी बैठ जाती है। देह-अभिमान है पहले नम्बर की ग्रहचारी। बाप कहते हैं– बच्चे, देही-अभिमानी भव। 

    यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र और सीढ़ी का चित्र समझाने के लिए बड़ी अच्छी चीज है। बहुतों का इससे कल्याण हो सकता है। परन्तु ड्रामा में शायद देरी है इसलिए विघ्न पड़ते हैं, राजधानी स्थापन होने में। बाप खुद कहते हैं बहुत विघ्न पड़ते हैं। माया बड़ी समर्थ है। मेरे बच्चों को झट नाक से, कान से पकड़ लेती है। इसको कहा जाता है राहू की ग्रहचारी। भारत में खास इस समय विकारों रूपी राहू की पूरी ग्रहचारी बैठी हुई है। तुम सेकेण्ड में सिद्ध कर सकते हो कि यही भारत पावन हीरे जैसा था। अब विकारी कौड़ी मिसल बन पड़ा है, फिर हीरे जैसा बनना है। कहानी सारी भारत की है। बाप आकर हीरे जैसा बनाते हैं। फिर भी कितने प्रकार के विघ्न पड़ते हैं। देह-अभिमान का तो बड़ा भारी विघ्न पड़ जाता है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर भी किसको समझाना बड़ा सहज है। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। सर्विस भी बहुत किसम की है ना। बहुतों को सुख देते हैं तो उसका उजूरा भी बहुत मिलता है, कोई आलराउन्ड हड्डी सर्विस करते हैं। खुशी रहनी चाहिए हमको आलराउन्ड बनना है। बाबा हम सर्विस में हाजर हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे रूहानी सर्विस करने वाले, खाना अपने हाथ से पकाते हैं। तुमको मालूम है कि बच्चे भी इतने होशियार हो जाते हैं जो गद्दी ले लेते हैं। यहाँ तो घर सम्भालने वाली मातायें हैं। अब माताओं, कुमारियों को इस सर्विस में खड़ा हो जाना चाहिए। मम्मा जैसी सर्विस कर दिखानी चाहिए। शो करना चाहिए। बाकी सिर्फ मम्मा, मम्मा करने से क्या फायदा! उन जैसा बनना चाहिए। अच्छा– 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) देह-अभिमान की ग्रहचारी ही यज्ञ में विघ्न रूप बनती है, इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है।

    2) अपनी पढ़ाई और सतयुगी पद के पोजीशन की खुशी वा नशे में रहना है, श्रीमत पर चलना है। कोई भी भूल नहीं करनी है।

    वरदान:

    फरियाद को याद में परिवर्तन करने वाले स्वत: और निरन्तर योगी भव

    संगमयुग की विशेषता है-अभी-अभी पुरूषार्थ, अभी-अभी प्रत्यक्षफल। अभी स्मृति स्वरूप अभी प्राप्ति का अनुभव। भविष्य की गॉरन्टी तो है ही लेकिन भविष्य से श्रेष्ठ भाग्य अभी का है। इस भाग्य के नशे में रहो तो स्वत: याद रहेगी। जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। क्या करें, कैसे करें, यह होता नहीं है, थोड़ी मदद दे दो-यह है फरियाद। तो फरियाद को छोड़कर स्वत: योगी निरन्तर योगी बनो।

    स्लोगन:

    जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वही महान स्थिति का अनुभव करते हैं।



    ***OM SHANTI***