BK Murli Hindi 12 January 2017

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 January 2017 

    12-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– यह तुम्हारी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए एक बाप को याद करना है, निर्वाणधाम में चलने की तैयारी करनी है”

    प्रश्न:

    बाप के पास किस बात का भेद नहीं है?

    उत्तर:

    गरीब व साहूकार का। हर एक को पुरूषार्थ से अपना ऊंच पद पाने का अधिकार है। आगे चल सबको अपने पद का साक्षात्कार होगा। बाबा कहते हैं मैं हूँ गरीब निवाज इसलिए अभी गरीब बच्चों की सब आशायें पूरी होती हैं। यह अन्तिम समय है। किसकी दबी रहेगी धूल में..... जो बाप को इनश्योर करते हैं, उनका सफल होता है।

    गीत:–

    आखिर वह दिन आया आज....

    ओम् शान्ति।

    इसका अर्थ तो बिल्कुल सिम्पुल है। हर एक बात सेकेण्ड में समझने की है। सेकेण्ड में बाप से वर्सा लेना है। बच्चे जानते हैं कि बेहद का बाप आ गया है। परन्तु यह निश्चय भी कोई-कोई को स्थाई बैठता नहीं है। जैसे लौकिक सम्बन्ध में माँ को बच्चा पैदा होता है तो झट समझ जाता है कि यह जन्म दे और पालना करने वाली है। तो यहाँ भी झट समझना चाहिए ना। अब तुम बच्चे जानते हो भक्ति के बाद ही भगवान आते हैं। अब भक्ति कितना समय चलती है, कब शुरू होती है, यह दुनिया में कोई नही जानते सिवाए तुम बच्चों के। तुम बता सकते हो– भक्ति कब से शुरू हुई! मनुष्य तो कहेंगे परम्परा से चली आती है। ज्ञान और भक्ति दो चीजें जरूर हैं। कहते हैं यह अनादि चलती आती हैं। परन्तु अनादि का भी अर्थ नहीं समझते। यह ड्रामा का चक्र अनादि काल से फिरता रहता है। उनका आदि अन्त नहीं है। मनुष्य तो गपोड़े लगाते रहते हैं। कभी कहते इतने वर्ष हुए, कभी कहते इतने वर्ष। बाप आकर सब सिद्ध कर बताते हैं। शास्त्र आदि पढ़ने से कोई बाप की प्राप्ति तो नहीं होगी। बाप की प्राप्ति तो सेकेण्ड में होती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति... यह भी किसको पता नहीं कि बाप कब आते हैं। कल्प की आयु लम्बी कर दी है। अब बाप तो जानते हैं और बच्चे भी सब कुछ जानते हैं परन्तु वण्डर यह है जो 10-20 वर्ष में भी कोई को पूरा निश्चय नहीं होता है। निश्चय होने के बाद फिर तो कभी कह न सकें कि यह हमारा बाप नहीं है। है भी बहुत सहज। तुमको तो बच्चा बनने में भी बहुत टाइम लगा है। 10-20 वर्ष में भी पूरा निश्चय नहीं हुआ है। अब तुम किसको परिचय देते हो तो सेकेण्ड में निश्चय हो जाता है। जनक की बात भी पिछाड़ी की है क्योंकि दिन-प्रतिदिन बहुत सहज होता जाता है। ऐसी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं जो झट किसको निश्चय हो जाए। बाप कहते हैं बच्चे अशरीरी भव। यह जो अनेक देह के धर्म हैं, उनको छोड़ो। असुल तो एक धर्म था ना। एक से ही वृद्धि होगी ना। यह है ही वैराइटी मनुष्य सृष्टि झाड़, मनुष्यों की बात है। वैराइटी धर्मों के झाड़ को भी जानना पड़े। धर्मों की कन्फ्रेन्स होती है। परन्तु उन्हों को पता ही नहीं कि पहले-पहले पूज्य धर्म कौन सा है! बुद्धि में आना चाहिए। भारत प्राचीन धर्म वाला है तो जरूर प्राचीन धर्म परमपिता परमात्मा ने ही रचा होगा। भारत में गाया भी जाता है शिव जयन्ती। मन्दिर भी हैं ढ़ेरों के ढ़ेर.. तो सबसे बड़े से बड़ा मन्दिर बाप का है– निर्वाणधाम। जहाँ हम आत्मायें भी बाप के साथ रहती हैं। मन्दिर रहने का स्थान होता है ना। तो यह महतत्व कितना बड़ा मन्दिर है। तुम्हारी बुद्धि में आना चाहिए कि ब्रह्म तत्व जो सबसे ऊंचे ते ऊंचा मन्दिर है, हम सब वहाँ के रहने वाले हैं। वहाँ सूर्य, चाँद नहीं होते क्योंकि रात-दिन नहीं होता। असुल हमारा रूहानी मन्दिर वह निर्वाणधाम है। वही शिवालय है, जहाँ हम शिवबाबा के साथ रहते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैं उस शिवालय का रहने वाला हूँ। वह है बेहद का शिवालय। तुम शिव के बच्चे भी वहाँ रहते हो। वह है इनकारपोरियल शिवालय। फिर कारपोरियल में आते हैं तो यहाँ रहने का स्थान बनेगा। अभी शिवबाबा यहाँ है, इस शरीर में बैठा हुआ है। यह है चैतन्य शिवालय, जिससे तुम बातचीत कर सकते हो। वह निर्वाणधाम भी शिवबाबा का शिवालय है, जहाँ हम आत्मायें रहती हैं। वह घर सबको याद पड़ता है। वहाँ से हम आते हैं पार्ट बजाने– सतो रजो तमो में, उसमें हर एक को आना ही है। यह बात दुनिया में किसकी बुद्धि में नहीं है, जो भी आत्मायें हैं उन सबको अपना-अपना अनादि पार्ट मिला हुआ है, जिसकी न आदि है, न अन्त है। तुम बच्चे जानते हो हम असुल उस शिवालय के रहने वाले हैं। शिवबाबा जो स्वर्ग स्थापन करते हैं उनको भी शिवालय कहा जाता है। शिवबाबा का स्थापन किया हुआ स्वर्ग। वहाँ भी बच्चे ही रहते हैं। उन्हों को यह राज्य भाग्य कैसे मिला! वह है सतयुग का आदि, अभी है कलियुग का अन्त। तो सतयुग में देवी-देवताओं को हेविन का मालिक किसने बनाया। यहाँ भी कितने अच्छे-अच्छे खण्ड हैं। अमेरिका सबसे फर्स्टक्लास खण्ड है। बहुत पैसे वाला और ताकत वाला भी है। इस समय सबसे हाइएस्ट है। ब्रहस्पति की दशा बैठी हुई है। परन्तु उनके साथ-साथ राहू की दशा भी बैठी हुई है। इस समय राहू की दशा तो सबके ऊपर बैठी हुई है। विनाश तो सबका होना है। भारत जो सबसे साहूकार था, अब भारत गरीब है। यह सब कुछ माया का भभका है। माया का फुल फोर्स है इसलिए मनुष्य इनको स्वर्ग समझते हैं। अमेरिका में देखो क्या लगा पड़ा है। मनुष्य आकर्षित हो जाते हैं। बाम्बे भी देखो कितना फैशनबुल हो गया है। आगे थोड़ेही ऐसा था। माया का पूरा पाम्प है। कितने 8-10 मंजिल के महल बनाते हैं। स्वर्ग में थोड़ेही इतनी मंजिलें होती हैं। वहाँ डबल स्टोरी भी नहीं होती। यहाँ ही बनाते हैं क्योंकि जमीन नहीं है। जमीन का बहुत भाव बढ़ गया है। तो मनुष्य समझते हैं यही स्वर्ग है। प्लैन बनाते रहते हैं। परन्तु कहते हैं नर चाहत कुछ और... मनुष्य कितनी चिंता में रहते हैं। मौत तो सबके लिए है। सबके गले में मौत की फांसी है। अभी तुम भी फाँसी पर हो। तुम्हारी बुद्धि वहाँ नई दुनिया में लगी हुई है। अभी सबके वानप्रस्थ अवस्था में जाने का समय है इसलिए बाप कहते हैं अब मुझे याद करो। मैं खुद तुमको डायरेक्शन देता हूँ कि तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, मैं सबको लेने लिए आया हूँ। मच्छरों सदृष्य तुम सबको जाना पड़ेगा। 84 जन्मों का चक्र पूरा हुआ, अब मुझे जीते जी याद करो। हम जीते जी स्वर्ग में जाने के लिए तैयार बैठे हैं। और कोई भी स्वर्ग में जाने के लिए तैयारी नहीं करते। अगर स्वर्ग जाने की खुशी हो तो फिर बीमारी में दवाई आदि भी न करें। तुम जानते हो वह स्वर्ग में तो जाते नहीं हैं। अब हम स्वीटहोम में जा रहे हैं। वह है गॉड फादर का होम अथवा रूहानी शिवालय। फिर सतयुग को जिस्मानी शिवालय कहा जाता है। उस स्वर्ग में जाने के लिए हम पुरूषार्थ कर रहे हैं। बाबा ने समझाया है ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात मशहूर है। जब रात पूरी होती है तो मैं आता हूँ। लक्ष्मी-नारायण का दिन और रात नहीं कहेंगे। भल हैं वही परन्तु ब्रह्मा को दिन और रात का ज्ञान है। वहाँ लक्ष्मी-नारायण को यह ज्ञान नहीं इसलिए ब्रह्मा और ब्राह्मण ब्राह्मणियां समझते हैं कि शिव की रात्रि कब होती है। दुनिया तो इन बातों को नहीं जानती। शिव है निराकार, वह कैसे आये– यह भी पूछना पड़े ना। शिव जयन्ति पर तुम बहुत सर्विस कर सकते हो। राजधानी स्थापन हो रही है। अभी बहुत छोटा झाड़ है और इस झाड़ को तूफान आते हैं, और झाड़ों को इतने तूफान नहीं आते। उसमें तो एक के पिछाड़ी और सब आते जाते हैं। यहाँ तुम्हारा नया जन्म है। माया के तूफान भी सामने खड़े हैं और किसको तूफान का सामना नहीं करना पड़ता। यहाँ धर्म की स्थापना में माया के तूफान आते हैं। बहुत ऊंची मंजिल है। विश्व का बादशाह बनना, कोई नई बात नहीं है। अनेक बार तुमने इस तूफान से पार होकर अपना राज्य भाग्य लिया है। जो जिस रीति पुरूषार्थ करता है, उनका साक्षात्कार होता जाता है। जितना आगे चलेंगे तुमको साक्षात्कार होगा कि यह कौन सा पद पायेंगे। मालूम तो पड़ता है ना कि यह कैसा पुरूषार्थ करता है। गरीब अथवा साहूकार की बात नहीं है। गीत भी सुना कि आखिर वह दिन आया... गरीब निवाज बाबा आया। बाबा कहते हैं मुझे कोई साहूकारों को धन नहीं देना है। वह तो हैं ही साहूकार। उन्हों के लिए तो स्वर्ग यहाँ है। करोड़पति हैं, आगे करोड़पति कोई मुश्किल होता था। अभी तो करोड़ मनुष्यों के पास दीवारों में छिपे पड़े हैं। परन्तु यह किसके काम आने नहीं हैं। पेट कोई ज्यादा नहीं खाता है। ठगी से पैसे इकठ्ठे करने वालों को नींद नहीं आती होगी। पता नहीं कहाँ गवर्मेन्ट छापा न मारे। बाप कहते हैं– याद रखना– यह अन्तिम समय है। अब किसकी दबी रहेगी धूल में... सफली होगी साई जो खर्चे नाम धनी के। धनी तो अब स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। अब तुम बाप के पास अपने को इनश्योर करो। मौत तो सामने खड़ा है। सब आशायें तुम्हारी अब पूरी होती है। बाप गरीबों को उठाते हैं। साहूकार का एक हजार, गरीब का एक रूपया– एक समान। अक्सर करके गरीब ही आते हैं। किसका 100 पघार, किसका 150.. दुनिया में मनुष्यों के पास तो करोड़ हैं, उन्हों के लिए यह स्वर्ग है। वह कभी नहीं आयेंगे। न बाबा को दरकार है। बाबा कहेंगे तुम भल अपना मकान आदि बनाओ। सेन्टर खोलो, हम पैसा क्या करेंगे। सन्यासी लोग तो बहुत फ्लैट आदि बनाते हैं, उनके पास बहुत मिलकियत रहती है। यह रथ भी अनुभवी है। अब मैं आया हूँ गरीबों को साहूकार बनाने, तो अब हिम्मत करो। करोड़पति जो हैं उनके पैसे कोई काम में आने वाले नहीं हैं। यहाँ पैसे आदि की कोई बात नहीं। बाप सिर्फ कहते हैं मनमनाभव। खर्चे की बात नहीं। यह मकान बनाया है, वह भी बड़ा सिम्पुल सो भी अन्त समय तुम्हारे ही रहने के लिए है। तुम्हारा यादगार यहाँ खड़ा है। अभी फिर चैतन्य में स्थापना कर रहे हो। फिर यह जड़ यादगार खलास हो जायेंगे। तुमको यह लिखना चाहिए कि आबू में आकर जिसने ये मन्दिर नहीं देखा और इन्हों के आक्यूपेशन को नहीं जाना तो कुछ नहीं देखा.. तुम कहेंगे हम वही चैतन्य में अब बैठे हैं। इन जड़ चित्रों का राज समझा सकते हैं। कहेंगे यह हम हैं। हमारा जड़ यादगार बना हुआ है। वन्डरफुल मन्दिर यह है, वन्डर है ना! मम्मा, बाबा और बच्चे यहाँ चैतन्य में बैठे हैं। वहाँ जड़ चित्र खड़े हैं। मुख्य है यह शिव। ब्रह्मा, जगत अम्बा और लक्ष्मी-नारायण। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। फिर भी बाप का बन और बाप को फारकती दे देते हैं। यह भी कोई नई बात नहीं। बाप का बन फिर भागन्ती हो जाते हैं। भागन्तियों का भी हम चित्र रख सकते हैं। अगर पक्का निश्चय है तो अपना राजाई का चित्र बना लो तो स्मृति रहेगी हम भविष्य में डबल सिरताज स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अगर बाप को छोड़ दिया तो ताज गिर पड़ेगा। यह बड़ी वन्डरफुल बात समझने की है। बाप को याद करो। उनसे ही वर्सा मिलता है। उसको ही सेकण्ड में जीवनमुक्ति कहा जाता है। भविष्य के लिए बाबा तुमको लायक बना रहे हैं। मनुष्य दान-पुण्य करते हैं दूसरे जन्म के लिए। वह है अल्पकाल की प्राप्ति। तुम्हारी तो इस पढ़ाई से भविष्य 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध बनती है। कोई इस मात-पिता की आज्ञा पर पूरा चले तो एकदम तर जायें। मात-पिता भी खुश होंगे। अमल में नहीं लाते हो तो पद भी कम हो जाता है। शिवबाबा कहते हैं मैं निष्कामी हूँ.. अभोक्ता हूँ... मैं यह टोली आदि कुछ भी नहीं खाता हूँ। विश्व की बादशाही भी तुम्हारे लिए है। यह खान-पान भी तुम्हारे लिए है, मैं तो सर्वेन्ट हूँ। मेरे आने का टाइम भी मुकरर है। कल्प-कल्प अपने बच्चों को राज्य-भाग्य देकर मैं निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ। बाप को शल कोई न भूले। बाप तो तुमको स्वर्ग की बादशाही देने आये हैं, तो भी तुम उनको भूल जाते हो! किसको बाप का परिचय देने का भी बहुत सहज तरीका बताया है-पूछो, परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? प्रजापिता ब्रह्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? दोनों बाप है। वह निराकार, यह साकार। बाप को सर्वव्यापी कहने से वर्सा कैसे मिलेगा। श्रीमत भगवान की मिलती है। श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनते हो। अच्छा! 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) माया के तूफानों को पार करते हुए बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है। मात-पिता की आज्ञाओं को अमल में लाना है।

    2) पुरानी दुनिया को भूल नई दुनिया को याद करना है। मौत के पहले बाप के पास स्वयं को इनश्योर कर देना है।

    वरदान:

    समर्पण भाव से सेवा करते सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव !

    सच्चे सेवाधारी वह हैं जो समर्पण भाव से सेवा करते हैं। सेवा में जरा भी मेरे पन का भाव न हो। जहाँ मेरा पन है वहाँ सफलता नहीं। जब कोई यह समझ लेते हैं कि यह मेरा काम है, मेरा विचार है, यह मेरी फर्ज-अदाई है-तो यह मेरापन आना अर्थात् मोह उत्पन्न होना। लेकिन कहाँ भी रहते सदा स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ, यह मेरा घर नहीं लेकिन सेवा-स्थान है तो समर्पण भाव से निर्माण और नष्टोमोहा बन सफलता को प्राप्त कर लेंगे।

    स्लोगन:

    सदा अपने स्वमान की सीट पर रहो तो सर्व शक्तियां आर्डर मानती रहेंगी।

     
    ***OM SHANTI***