BK Murli Hindi 24 February 2017

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 February 2017

    24-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– एक बाप ही है जिसकी अपरमअपार महिमा है, बाप जैसी महिमा और किसी की भी हो नहीं सकती”

    प्रश्न:

    तुम बच्चों को इस पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर होना चाहिए– क्यों?

    उत्तर:

    क्योंकि सारे कल्प में एक ही बार बाप परमधाम से पढ़ाने के लिए आते हैं। मनुष्य पढ़ने के लिए भारत से विदेश में जाते, यह कोई बड़ी बात नहीं। यहाँ तो पढ़ाने वाला कितनी दूर से आता है। तो बच्चों को पढ़ाई का बहुत कदर होना चाहिए। थोड़ी दिक्कत भी हो तो हर्जा नहीं। तुम्हारे स्कूल गली-गली में बनने चाहिए, नहीं तो इतने सब पढ़ेंगे कैसे! बाबा का परिचय तो सबको मिलना है जरूर।

    ओम् शान्ति।

    मीठे-मीठे बच्चे कहते हैं यह कौन है? यह कोई साधू-सन्यासी मनुष्य तो नहीं है। यह तो और चीज है। मनुष्य को तो झट पहचान लें फलाना साधू सन्यासी है, नाम लेकर कहेंगे– फलाना महात्मा है। यह सिर्फ बच्चे जानते हैं। बच्चा कहा जाता है आत्मा को। आत्मा ही सब जानती है, शरीर नहीं। आत्मा ही कहती है यह फलाना है। आरगन्स द्वारा जानती है। अगर आत्मा न हो तो यह ऑखे काम न कर सकें। सब कुछ आत्मा ही जानती है। अभी तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनाया जाता है। आत्मा कहती है इन कर्मेन्द्रियों से फलाना कर्तव्य करता हूँ। वास्तव में आत्मा को मेल कहा जायेगा, फीमेल नहीं। मेल है क्योंकि हम सब भाई-भाई हैं। अभी तुम नई बातें सुनते हो। यह कौन आया? उनका कोई अपना मनुष्य का रूप नहीं है। तुम जानते हो बेहद का बाप है शिवबाबा, जो इनके द्वारा समझाते हैं। ऐसे नहीं फलाना सन्यासी है, उनकी आत्मा बोलती है। नहीं, मनुष्यों का सारा नाम रूप में अटेन्शन जाता है। तुम्हारी बुद्धि समझती है– यह हमारा बेहद का बाप है। वह शरीर द्वारा हमको अपना वर्सा देते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। यह है सबका बाप। सर्व का पतित-पावन, सिर्फ मनुष्यों का नहीं, 5 तत्वों का भी है। सर्व की सद्गति करने वाला है ऊंचे ते ऊंचा बाप। सृष्टि में महिमा करने लायक है तो एक बाप ही है, दूसरा न कोई। न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की महिमा कर सकते हैं। उनका बर्थ डे मनाकर क्या करेंगे! लक्ष्मी-नारायण जिसका कम्बाइन्ड रूप विष्णु है– अभी वह कहाँ है? लक्ष्मी-नारायण पुनर्जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। फिर शिवबाबा लायक बना रहे हैं। सर्व का सद्गति दाता वह एक ही है। महिमा भी एक की है। उस पतित-पावन बिगर देखो सृष्टि का क्या हाल हो गया है। कृष्ण के भक्तों से पूछो राधे कृष्ण कहाँ हैं तो कहेंगे सर्वव्यापी है। राधे के पुजारी कहेंगे राधे ही राधे है। हनूमान के पुजारी कहेंगे– जिधर देखो हनूमान ही हनूमान। परन्तु नहीं। बाप अपनी महिमा तो नहीं करेंगे। अपने पार्ट से सिद्ध करते हैं और कोई की महिमा गाई नहीं जा सकती। लक्ष्मी-नारायण ही राजाई करते हैं, छोटेपन में राधे कृष्ण हैं। वह तो है प्रालब्ध। तो उनकी महिमा क्या करेंगे। ब्रहमा की भी महिमा नहीं, विष्णु की भी कोई महिमा नहीं। महिमा तो एक की ही है। उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। 

    अभी तुम बच्चे जानते हो कि विष्णु कौन है! विष्णु को स्वदर्शन चक्र सूक्ष्मवतन में क्यों दिखाते हैं? मनुष्य को तो जास्ती भुजा होती नहीं। सूक्ष्मवतन में भी 4 भुजा दिखाई हैं– प्रवृत्ति मार्ग को सिद्ध करने के लिए। बाप कहते हैं मीठे बच्चे– अब तुम जान गये हो 84 जन्म हम कैसे लेते हैं। तुम्हारा गृहस्थ व्यवहार पवित्र था। मन्दिरों में जाकर गाते हैं ना सर्वगुण सम्पन्न... तुम मात पिता... अब यह महिमा फिर रांग हो जाती है। यह महिमा है सिर्फ एक की। देवताओं की नहीं है। जो कुछ महिमा है सो एक की। वह है परमपिता परम आत्मा। परम बाप, परम टीचर, परम सतगुरू अकाल कहते हैं ना। उनको याद करते हैं, वही अकालमूर्त है। शिवबाबा को बैल पर दिखाते हैं। वह फिर अकाल तख्त दिखाते हैं, अब यह तो कोई को पता नहीं है शिवबाबा क्या है! मन्दिर में जो रखते हैं वह उनका अंश है। वह तो है ज्ञान सागर पतित-पावन। उनको तो मनुष्य का तन चाहिए ना। तुम बच्चे जानते हो कि उनका तख्त यह ब्रह्मा ही है। धर्म स्थापकों की क्या महिमा है। वह तो सिर्फ आकर धर्म स्थापन करते हैं। वह कोई जीवनमुक्ति नहीं देते। मनुष्य कहते हैं मोक्ष मिले, फिर आयें ही नहीं। वह धर्म स्थापक तो अपने धर्म वालों को नीचे ले आने के निमित्त बनते हैं। उनको तो आकर अपना धर्म स्थापन करना है। ड्रामा का पार्ट है। जो भी आते हैं उनको पुनर्जन्म लेना ही है, यह तो स्थापना बाप करते हैं, वह सबका पतित-पावन है और कोई पावन नहीं बनाते हैं। वह तो आते हैं अपना-अपना पार्ट बजाते हैं। सतो रजो तमों में आना ही हैं उन्हों ने धर्म स्थापन किया, बस। जो शिक्षा दी फिर उसके शास्त्र बनें। जो धर्म स्थापन करते हैं उनको फिर पालना जरूर करनी है। वापिस कोई जाता नहीं। सभी इस समय भिन्न-भिन्न नाम रूप में यहाँ पतित दुनिया में हैं। पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण देखो। वह भी अब यहाँ हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचते हैं। फिर यह जाकर राधे कृष्ण बनेंगे। जब तक शिवबाबा न आये तब तक कोई पावन बन न सके। बलिहारी उस एक की है। उनकी ही महिमा है। कहते भी हैं– शिवाए नम:, तुम मात-पिता...सब याद करते हैं। सबसे जास्ती महिमा उस बाप की ही है। पुकारते भी हैं ओ गॉड फादर, बाप को ही पुकारते हैं। यह नाटक बना हुआ है। जब सृष्टि पुरानी होती है तब बाप आते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन तीनों लोकों का ज्ञान देते हैं। ज्ञान एक ही बार मिलता है। उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है। बाकी यह सूर्य चांद आदि तो बेहद मांडवे की रोशनी देने वाली बत्तियां हैं। वह रात, वह दिन, यह माण्डवे की बत्तियां हैं। ऐसे नहीं कि सूर्य देवता नम: कहेंगे। नहीं, देवतायें तो ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं। कोई मूलवतन से आत्मायें यहाँ आती हैं तो सीधा गर्भ में जाती हैं, सूक्ष्मवतन में नहीं जाती। सीधा सतयुग में आयेंगी गर्भ महल में। वहाँ तो कोई पाप कर्म होते नहीं। यहाँ पाप करते हैं तब त्राहि-त्राहि करते हैं। 

    धर्मराज हमें बाहर निकालो फिर हम पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलने से फिर पाप करने लग पड़ते हैं। वहाँ की वहाँ रही... यह भी ड्रामा में है। भारत का सबसे बड़ा दुश्मन रावण ही है, द्वापर से रावण राज्य शुरू होता है। द्वापर में ही देवी देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं। उन्हों का फिर मन्दिर है। पुरी में देखो कैसा मन्दिर बना हुआ है। अन्दर जगत नाथ की मूर्ति है और बाहर में देवताओं के बड़े गन्दे चित्र हैं। ऐसे-ऐसे चित्र मन्दिर में नहीं होने चाहिए। तुम तो अभी श्रीमत पर श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो। सतयुग आदि में लक्ष्मी-नारायण श्रेष्ठ हैं ना। उन्हों ने यह श्रेष्ठ पद कैसे पाया। अब तुम फिर से पढ़ रहे हो। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे फिर से आता हूँ, आता ही रहूँगा। फिर से तुम बच्चों को राजयोग सिखलाऊंगा। फिर सतो रजो तमों में आना है। तुमको 84 जन्म भोगना पड़ता है, जो पहले-पहले आते हैं। सब नहीं भोगते। 84 लाख तो हैं नहीं। मनुष्यों को जो कुछ कोई ने कहा, वह सत-सत कहते रहते हैं। अगर 84 लाख जन्म हों तो कल्प की आयु बड़ी हो जाए। बाप कहते हैं 84 जन्म हैं, सो भी देवी देवताओं के। अच्छा फिर इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि कितने जन्म लेते होंगे। हिसाब है ना। आते तो बहुत हैं, टाल टालियां हैं। तुम सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हो। भारत ही पहले नम्बर विश्व का मालिक था, और कोई धर्म था ही नहीं। अभी उस देवी-देवता धर्म की टांग है नहीं। उनका शास्त्र भी नहीं हैं। यह गीता आदि शास्त्र फिर बनेंगे। ऐसे नहीं तुम जो सच्ची गीता बनाते हो, वह होगी। निकलेगी फिर भी वही गीता। भक्ति मार्ग के लिए तो सब चाहिए ना। ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं बच्चों को। अब बरोबर ब्रह्मा द्वारा भगवान की प्राप्ति होती है। बाबा कहते हैं यह सब है भक्ति मार्ग। मेरी प्राप्ति तब होती है जब मैं यहाँ आता हूँ भारत में। भारत ही अविनाशी खण्ड है। भारत ही कितना साहूकार था। सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा है। सब लूट ले गये। बिड़ला के पास बहुत पैसे हैं तो कितने बड़े मन्दिर बनाये हैं। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं, यह और कोई समझा न सके। ज्ञान सागर बाप जब बच्चों को समझाते हैं तब बच्चे समझ जाते हैं। यह कौन पढ़ाते हैं? यह कोई सन्यासी नहीं। उनका नाम ही है शिव। सब आत्मायें उनके बच्चे हैं। उन्हों के शरीरों के नाम बदलते रहते हैं। इनका नाम ही है एक। कहते हैं मेरा कोई दूसरा नाम नहीं है। तुम तो जन्म-मरण में आते हो, देह-अभिमानी भी बनते हो। मैं कभी देह-अभिमानी नहीं बनता हूँ। बाप है ही फार एवर देही-अभिमानी क्योंकि पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। 

    शिवरात्रि मनाते हो ना। परन्तु रात्रि का अर्थ कुछ भी समझ नहीं सकते हैं। कितनी भूलें हैं। अभी है रात, फिर दिन होना है। अब कल्प का अन्त अर्थात् रात हुई है। सतयुग त्रेता है दिन। द्वापर कलियुग है रात। मुझे आना ही है संगम पर। यह है बेहद की रात और दिन। भगवानुवाच, समझाते हो यह वेला मुख्य है। परन्तु शिवबाबा की वेला नहीं ले सकते। वह कब आते हैं, पता थोड़ेही लगता है। तो यह है बेहद की दिन और रात, इसको कल्प का संगम कहेंगे। बर्थ डे भी अगर मनाते हैं तो एक का। शिवबाबा आते हैं फिर चले जाते हैं। उनका न जन्म है और न ही मौत है। कहेंगे बाबा चला गया, यह खेल है। बाप बैठ समझाते हैं, गाते भी हैं रास्ते चलते ब्राह्मण फँस गया। इस बाबा को थोड़ेही पता था। अचानक प्रवेशता हो गई। पहले थोड़ेही मालूम पड़ता है। धीरे-धीरे मालूम पड़ता है कि यह बाबा का काम है। इस ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्वलित होनी है। बेहद के यज्ञ में बेहद की सामग्री स्वाहा होनी है। बेहद बाप का यह यज्ञ है। इनके बाद फिर कोई यज्ञ नहीं रचा जाता है। भक्ति मार्ग ही खलास हो जाता है। यह नॉलेज बुद्धि में रखनी चाहिए। पढ़ाई पढ़ने के लिए आना पड़े। थोड़ी दिक्कत (तकलीफ) होती है। मनुष्य पढ़ने के लिए भारत से लण्डन अमेरिका भी जाते हैं। यह तो क्या है। बाप कहते हैं मैं कल्प, कल्प, कल्प के संगम युगे-युगे परमधाम से पढ़ाने के लिए आता हूँ, तो बच्चों को कितना कदर होना चाहिए। आगे चलकर तुम्हारे स्कूल गली-गली में बनेंगे। नहीं तो सब पढ़ेंगे कैसे। बाबा का परिचय सबको मिलना चाहिए। बाप को जरूर जानेंगे। अच्छा। 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ करना है। पढ़ाई के लिए बहाना नहीं देना है। पढ़ाई पढ़नी जरूर है।

    2) जैसे आदि में पवित्र गृहस्थ आश्रम था, ऐसे अभी अपना पवित्र गृहस्थ आश्रम बनाना है। बलिहारी एक बाप की है, उसका ही गुणगान करना है।

    वरदान:

    मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को यन्त्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली भव

    जो बच्चे सच्चे मन से प्रतिज्ञा करते हैं तो मन मन्मनाभव हो जाता है और यह मन्मनाभव का मन्त्र किसी भी परिस्थिति को पार करने में यन्त्र बन जाता है। लेकिन मन में आये कि मुझे यह करना ही है। यही संकल्प हो कि जो बाप ने कहा वह हुआ ही पड़ा है इसलिए कोई भी प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो तो शक्तिशाली बन जायेंगे। बार-बार अपने को चेक करो कि प्रतिज्ञा पावरफुल है या परीक्षा पावरफुल है? परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर न कर दे।

    स्लोगन:

    जो स्वमान में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हैं उन्हें अपमान की फीलिंग नहीं आ सकती।


    ***OM SHANTI***