BK Murli Hindi 6 July 2017

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 6 July 2017

    06-07-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– तुम्हारे सच्चे तीर्थ हैं– शान्तिधाम और सुखधाम, तुम्हें रूहानी पण्डा सत्य तीर्थ कराने आया है, तुम राजाई और घर को याद करो”

    प्रश्न:

    तुम्हारी किस मेहनत को बाप ही जानते हैं? बाप ने उस मेहनत से छूटने की कौन सी युक्ति बताई है?

    उत्तर:

    बाप जानते हैं बच्चों ने आधाकल्प भक्ति मार्ग में दर-दर भटक कर बहुत ठोकरें खाई हैं। बहुत मेहनत करते भी प्राप्ति अल्पकाल क्षण-भंगुर की हुई। एकदम जंगल में जाकर फँस गये। विकारों रूपी डाकुओं ने लूट लिया। अब बाप इस मेहनत से छूटने की युक्ति बताते– बच्चे सिर्फ मुझे याद करो। मेरे से ही सच्ची सगाई करो, इस बेहद की सगाई में ही मजा है। देह-अभिमान रूपी बड़े डाकू से बचने के लिए अपने को इस देह से न्यारी आत्मा समझो।

    गीत:

    ओम् नमो शिवाए....   

    ओम् शान्ति।

    बच्चों को रिफ्रेश करने के लिए रिकार्ड भी काफी होते हैं इसलिए बाप कहते हैं और फर्निचर आदि तो घर में लाया जाता है। 5-7 रिकार्ड भी घर में रखो। भल बाल बच्चे भी रिकार्ड सुनें तो भी नशा चढ़े, महिमा तो सारी एक बाप की है ना। परन्तु इस समय कोई उनको जानते नहीं हैं। और तो मनुष्यों की ढेर महिमा करते हैं। फारेन के कोई आदमी आते हैं तो उनके दर्शन करने के लिए जाते हैं। बाप को सिर्फ बच्चे ही जानते हैं। एक ही बाप है जो पतित दुनिया से पावन दुनिया में ले जाते हैं। पतित दुनिया है विषय सागर, पावन दुनिया है क्षीरसागर। तो मीठे-मीठे बच्चे तुम यह भी निश्चय करते हो कि हमको अब श्रीमत मिली है। रूहानी पण्डा मिला है। जिस्मानी पण्डे हैं जिस्मानी यात्रा कराने के लिए। मनुष्य कितने यज्ञ तीर्थ आदि करते आये हैं। परन्तु फायदा तो कुछ नहीं। तुम बच्चों की बुद्धि में यह ज्ञान रहना चाहिए जिससे खुशी रहे। जन्म-जन्मान्तर कितने तीर्थ किये हैं, परन्तु सच्चा तीर्थ एक ही है अथवा दो कहो। और कराने वाला है बाप। वह समझते हैं यज्ञ तप तीर्थ करने से भगवान मिलेगा। अच्छा वह कहाँ ले जायेंगे? जरूर अपने घर ही ले जायेंगे। वास्तव में सच्चास च्चा तीर्थ है सुखधाम और शान्तिधाम। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हमें सच्चे-सच्चे तीर्थों को ही याद करना है, यही मनमनाभव है। बच्चे जानते हैं हम अभी तीर्थों पर जा रहे हैं। बाप कहते हैं अपने घर को और राजाई को याद करो। स्वर्ग का रचयिता एक बाप ही है। उसको हेविनली गॉड फादर कहा जाता है इसलिए पूछा जाता है हेविनली गॉड फादर से आपका क्या सम्बन्ध है? अगर सिर्फ तुम पूछेंगे कि गॉड फादर को तुम पहचानते हो? तो झट कह देंगे हाँ– वह सर्वव्यापी है। तो यह समझाने की युक्ति रची जाती है कि बच्चों को सहज हो। तकलीफ तो बहुत देखी है ना। आधाकल्प 63 जन्म तुम आसुरी मत पर चले हो। पुरूषार्थ तो किया जाता है अच्छी प्रालब्ध पाने के लिए। परन्तु तुम जानते हो अभी हमारी चढ़ती कला हुई नहीं है और ही गिरते आये हैं। कितना माथा मारते रहते हैं। 

    भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत की। दर-दर भटकते हो। बाप जानते हैं बच्चों ने बहुत मेहनत की है। बहुत तकलीफ उठाई है। 63 जन्म बहुत धक्के खाये हैं। जैसे सन्यासी लोग कहते हैं इस दुनिया में काग विष्टा समान सुख है। वैसे तुमने जो इतनी मेहनत की, थोड़ा सा अल्पकाल का सुख मिला क्योंकि साक्षात्कार हुआ, थोड़ा सा सुख हुआ। अब तो बाप कहते हैं बच्चे तुमने बहुत ठोकरें खाई हैं। एकदम जंगल में जाकर फँसे थे। जंगलों में डाकू रहते हैं। इस जंगल में भी कई तुमको लूटने वाले डाकू मिलते हैं। सबसे पहले-पहले आता है देह-अभिमान, इसके साथी कितने बड़े डाकू हैं। यह हैं आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाले नम्बरवन डाकू। यह किसको पता नहीं है। तुम कहते हो यह बड़े ते बड़े डाकू हैं। मनुष्य कहते हैं यह डाकापना जरूर चाहिए। बाप कहते हैं इन डाकुओं ने क्या तुम्हारी हालत कर दी है। एक दो को काम कटारी से मारते हैं। कितना खर्च करते हैं? धक्का खाते- खाते अब क्या हाल हो गया है। अब यह तो बेहद की बातें हैं। हाँ, आज बच्चा जन्मा, खुशी हुई, कल मर जाता है तो रोने लग पड़ते। दुनिया की हालत देखो अब क्या है। अब तुम जानते हो बाबा आय् हुआ है, वही सतगुरू है, वो गुरू लोग तो अनेक प्रकार के हैं, रास्ता बताते हैं– जप, तप, दान, पुण्य आदि करने से भगवान मिलेगा, परन्तु उसमें कितना खर्च लगता है। यहाँ कोई खर्च नहीं। सिर्फ कहते हैं बाप को याद करो। यह सच्ची सगाई है। कन्या की सगाई होती है ना, उनको क्या पता किससे सगाई होगी? यह भी कहते हैं कि भगवान साजन आयेगा जरूर, परन्तु जानते नहीं हैं। वह है हद की बात, इस बेहद की सगाई में कितना मजा है। बाप कहते हैं मैं तुमको श्रीमत देता हूँ तो उस पर सबको चलना पड़े। तुम जानते हो कल्प-कल्प श्रीमत मिलने से ही भारत श्रेष्ठ बनता है। भारत को ही पैराडाइज कहते हैं। सेन्सीबुल जो हैं वह समझेंगे बरोबर पैराडाइज भारत ही था। 

    भारत में ही गॉड गाडेज का राज्य था। तुम उन्हें समझा सकते हो कि भारत जब हेविन था, उस समय तुम थे नहीं। कोई भी नेशनल्टी नहीं थी। गॉड गाडेज का राज्य समझते थे। कृष्ण को ही कभी लार्ड, कभी गॉड कह देते हैं। श्रीकृष्ण का ही मान है। लार्ड क्यों कहते हैं? क्योंकि उनको भगवान समझते हैं। गीता के भगवान ने सबको सद्गति दी है, नाम कृष्ण का डाल दिया है, इसलिए कृष्ण का बहुत मान है। कहते हैं कृष्ण सांवरा, कृष्ण गोरा, श्याम सुन्दर, कैसे-कैसे काले चित्र बनाते हैं। काली माता बनाई है कलकत्ते की। आस-पास जहाँ-तहाँ काली के ही मन्दिर होंगे। जगत अम्बा के चित्र भी किसम-किसम के बनाते हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि खुल गई हैं, यह कौन बैठकर समझाते हैं। सतगुरू सत् बाबा, सत् शिक्षक। उनका नाम है सत्। सच बोलने वाला, सच जानने वाला। ग्रंथ सुखमनी में उनकी बहुत महिमा है। वह आकर सचखण्ड की स्थापना करते हैं और मनुष्यों को ऐसा सच्चा बनाते हैं। तुम सबको सच बताते हो। सिक्ख लोगों को भी समझाना तो बहुत सहज है। वह अकाल तख्त को भी मानते हैं। सत् श्री अकाल का तख्त है यह। बिचारों को कुछ भी पता नहीं है कि सत् श्री अकाल किस तख्त पर बैठते हैं। आत्मा शरीर रूपी तख्त पर बैठती है। कितना बड़ा तख्त है। बाप आकर इस तख्त पर बैठते हैं। यह है अकाल तख्त। ज्ञान सागर बाप इसमें बैठ हमको मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखा रहे हैं। ब्रह्माण्ड सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की सब बातें समझाते हैं, जिस बात को कोई नहीं जानते हैं। सब अपनी-अपनी बड़ाई में मस्त हैं। तुम्हारी मस्ती देखो कैसी है? तुम जैसे मास्टर नॉलेजफुल बन गये हो। अब तुमको सारी नॉलेज मिली है। जानते हो टीचर पढ़ाते हैं तो साथ में आशीर्वाद भी होती है। मांगने की दरकार नहीं रहती। टीचर का काम है पढ़ाना, पढ़ना तुम्हारा काम है। तुम्हारी बुद्धि में यह नॉलेज ही फुल होनी चाहिए। नाटक में सभी एक्टर्स बुद्धि में रहते हैं ना। इस बेहद के नाटक के भी मुख्य एक्टर्स देखो। 

    बाप भी कैसे आते हैं, कैसे नॉलेज सुनाते हैं। कितने विघ्न पड़ते हैं। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। कोई पति अपनी स्त्री के लिए धन छोड़ कर जाते हैं, परन्तु बच्चा नालायक निकल पड़ता है जो माँ को भी दु:खी करता है। बाबा तो अनुभवी है। बाबा ने रथ भी अनुभवी लिया है। गांवड़े का छोरा कहते हैं। कृष्ण तो विश्व का मालिक था। उनको थोड़ेही गांवड़े का छोरा कहेंगे। वह तो गोरा था, वैकुण्ठ का मालिक था। जब सांवरा बनता है तब गांव में रहता है। तो कृष्ण ही अन्तिम जन्म में गांव का छोरा कैसे बना है, यह तुम जानते हो। बाबा खुद भी वन्डर खाते हैं हम क्या थे। अभी बाबा को मालूम पड़ा है श्रीमत द्वारा, तुमको भी मालूम पड़ा है। वन्डर है ना। कितना बड़ा मालिक और फिर कितना नीचे आ जाते हैं। काम चिता पर चढ़ने के बाद फिर गिरते आये हैं। अभी तुम समझते हो कि कृष्ण को गांवड़े को छोरा क्यों कहते हैं। खुद बाबा बतलाते हैं पहले क्या थे, अब क्या बने हैं, ततत्वम्। अब तुम समझते हो कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं। श्याम सुन्दर का अर्थ भी अब समझा है। हम भी ऐसे थे। हमने भी 84 जन्मों का चक्र लगाया है। अब नाटक पूरा होता है। अब जाते हैं अपने घर। बड़ी सहज बात है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करते रहो और वर्से को याद करो, सबको रास्ता बताओ। ज्ञान-अजंन सतगुरू दिया। अज्ञान अन्धेर विनाश। गायन भी कितना अच्छा है। अन्धेरे के बाद फिर सोझरा होता है। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। तुम्हारी बुद्धि में अब सारा राज आ गया है। जानते हो अभी हम संगमयुग पर बैठे हैं। सब अभी गये कि गये अपने घर। बाबा सम्मुख बैठ बच्चे-बच्चे कहते हैं, ब्रह्मा मुख द्वारा। इस रथ में बैठे हैं। वही ज्ञान का सागर है। यह ब्रह्मा फिर हो जाता है मास्टर ज्ञान का सागर। ज्ञान सागर पतित-पावन इस तन में है। खुद भी कहते हैं कि मैं इस तन में आता हूँ। नहीं तो किसके तन में आऊं, जो ब्राह्मण भी बनाऊं और नॉलेज भी दूँ। क्या बैल में आऊंगा! आजकल बैल के मस्तक पर भी शिवलिंग बनाते हैं। तो ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। तो ब्राह्मण कहाँ से आये? जरूर एडाप्ट करना पड़े ब्राह्मणों को। अभी तुम ब्राह्मण बने हो फिर देवता क्षत्रिय बनेंगे। 

    जिस्मानी ब्राह्मणों की बात नहीं है। वह हैं कुख वंशावली। तुम ब्राह्मण हो मुख वंशावली, तुम अच्छी रीति समझा सकते हो– ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना। वह ब्राह्मण तो यह जानते ही नहीं। वह यह ज्ञान कहाँ से लायें। बाप अच्छी रीति समझाते हैं– बच्चे जितना हो सके और झरमुई झगमुई छोड़ दो। शरीर निर्वाह अर्थ तो धन्धा आदि भी करना ही है। बाकी जो समय मिले मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। वह भी बच्चों को इतना प्यार करते हैं। मित्र सम्बन्धी आदि ढेर थे। परन्तु उन सबसे बुद्धियोग हटाए नये सम्बन्ध में कितना लव रहता है। सर्विसएबुल बच्चों को छाती से लगा लें। बहुत बच्चे सपूत हैं, बहुत अच्छी सर्विस करते हैं। अन्धों की लाठी बनते हैं। दु:खियों को सुखधाम का मालिक बना रहे हैं। तो बाप ऐसे बच्चों पर बलिहार जाते हैं। खुद सुख नहीं लेते हैं। कहते हैं तुम ही सुख लो। हम तो मुक्तिधाम में जाते हैं। ड्रामा में पार्ट तुम्हारा ही है। बैकुण्ठ का मालिक हमको नहीं बनना है। बैकुण्ठ के मालिक तुम बनते हो। उस समय तुम गोरे हो फिर राज्य गंवाते हो तो सांवरे बनते हो। सांवरे और गोरे का अर्थ कितना अच्छा है। बाबा ने चित्र भी ऐसा बनवाया है– श्याम और सुन्दर। 84 जन्म कैसे लेते हैं, फिर बाप द्वारा राजयोग कैसे सीखते हैं? लोग तो कृष्ण को जन्म-मरण रहित कह देते हैं। तुम कृष्ण के 84 जन्मों को सिद्ध कर बताते हो इसलिए वह काटकर सिर्फ चित्र रख देते हैं। वन्डरफुल है मनुष्यों की बुद्धि। कितना पलटाना पड़ता है बुद्धि को। अब तुम्हारी बुद्धि पलटी हुई है। यह भी तुम बच्चे जानते हो इस दुनिया की इन्ड है। तुम बोल सकते हो– इन बाम्ब्स आदि से सृष्टि का विनाश हुआ था। तुम यह क्या कर रहे हो। वेस्ट ऑफ टाइम कर रहे हो। बचने का कितना भी प्रबन्ध करेंगे परन्तु मरना तो जरूर है ही। बाम्बस आदि कितने खौफनाक बनाये हैं। दुनिया की हालत देखो क्या है? बाकी थोड़ा समय है, मौत आया कि आया। कल्प पहले मुआिफक सबके शरीर धन-दौलत आदि सब मिट्टी में मिल जायेंगे। बाकी हम सब आत्मायें बाबा के पास जाकर पहुँचेंगी, फिर अपनी राजधानी में आकर डांस करेंगे। अच्छा। 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) अपनी बुद्धि को नॉलेज से सदा फुल रखना है। बाप से आशीर्वाद वा कृपा मांगने के बजाए पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे अपने ऊपर आपे ही कृपा करनी है।

    2) दु:खियों को सुखधाम का मालिक बनाने की सेवा करनी है। ऐसा सपूत, सर्विसएबुल बनना है जो बाप भी बलिहार जाये।

    वरदान:

    कम्पेनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करने वाले स्मृति स्वरूप भव

    कई बच्चों ने बाप को अपना कम्पैनियन तो बनाया है लेकिन कम्पैनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करो, अलग हो ही नहीं सकते, किसकी ताकत नहीं जो मुझ कम्बाइन्ड रूप को अलग कर सके, ऐसा अनुभव बार-बार स्मृति में लाते-लाते स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। जितना कम्बाइन्ड रूप का अनुभव बढ़ाते जायेंगे उतना ब्राह्मण जीवन बहुत प्यारी, मनोरंजक अनुभव होगी।

    स्लोगन:

    दृढ़ संकल्प की बेल्ट बांधी हुई हो तो सीट से अपसेट नहीं हो सकते।



    ***OM SHANTI***