BK Murli Hindi 16 December 2017

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 16 December 2017

    16/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


    “मीठे बच्चे - तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष बाद भोलानाथ बाप द्वारा हम यह ज्ञान सुनकर मनुष्य से देवता बनते हैं”

    प्रश्न:

    ज्ञान की धारणा न होने का मुख्य कारण क्या है?

    उत्तर:

    बुद्धि भटकती है, एक के साथ पूरा योग नहीं है। देही-अभिमानी नहीं बने हैं इसलिए धारणा नहीं होती है। बाबा कहते बच्चे, फैमिलियरटी में नहीं आओ। एक दो के नाम-रूप को मत याद करो। एक बाप दूसरा न कोई - यह पाठ पक्का कर लो, दूसरों के पिछाड़ी न पड़ो। बाप से राय लेते रहो, इससे तुम दु:ख से लिबरेट हो जायेंगे। धारणा भी अच्छी होगी।

    गीत:-

    भोलेनाथ से निराला....  

    ओम् शान्ति।

    भोलानाथ है देने वाला। भोलानाथ शिवबाबा को तो कहते ही हैं। भोलानाथ होकर गया है और बरोबर बिगड़ी बनाकर गया है। आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताकर गया है, इसलिए भगत गाते हैं। तुम बच्चे जानते हो जिस भोलानाथ का गायन है, जो बिगड़ी को बनाने वाला है, वह हमारे सम्मुख बैठा है। भगत भगवान को याद करते हैं, उनकी महिमा गाते हैं और बाप अपना पार्ट बजा रहे हैं। बाप ने ही आकर अपना परिचय दिया है, बच्चों को। बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि बाबा जो समझाते हैं वह बरोबर कल्प-कल्प समझाते हैं। कल्प-कल्प आकर पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं। अभी बना रहे हैं। बहुतों को अभी पता पड़ा है। अभी बहुत हैं जिन्हों को पता नहीं है - वर्सा लेने वाले होंगे तो कल्प पहले मुआफिक आकर वर्सा लेंगे। तुमको पहले थोड़ेही यह मालूम था कि बाबा आकर वर्सा देंगे। अभी मालूम पड़ा है। बरोबर भक्तों का रक्षक है। आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है। दिल से लगता है बरोबर यह वही हैं जो भारत में आकर जन्म लेते हैं। इनका अलौकिक जन्म गाया हुआ है। भारतवासियों को आकर पतित से पावन बनाते हैं। पतित मनुष्य जो बुलाते हैं वह जरूर समझते होंगे हम पावन थे, अब पतित बने हैं, फिर पावन बनना है।

    अभी बाप द्वारा तीसरा नेत्र मिलने से तुमने यह सब कुछ समझा है। तुम बच्चों का सारा दिन विचार सागर मंथन चलता रहेगा। सतयुग में पावन कौन थे? बरोबर देवी-देवता ही थे। उस समय और कोई धर्म नहीं था। देवताओं के चित्र भी हैं और कोई नाम नहीं लेंगे। ऐसे नहीं कहेंगे चित्र हैं। श्री लक्ष्मी देवी, श्री नारायण देवता। अभी वह नहीं हैं। जब वह थे तो और कोई धर्म नहीं था। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बाबा हमको सत्य कथा सुनाते हैं। तो लोग कहते हैं यह ज्ञान तो हमने सुना नहीं है क्योंकि उनको ड्रामा के राज़ का तो पता नहीं हैं। तुम कहेंगे यह तो कल्प-कल्प तुम सुनते आये हो। क्या 5 हजार वर्ष पहले नहीं सुनाया था? फिर यह क्यों कहते हो आगे कभी नहीं सुना है। कल्प पहले जिसने सुनाया था उस द्वारा तुम अभी भी सुन रहे हो। अच्छी रीति समझाना चाहिए। तुमने तो 5 हजार वर्ष पहले भी यह ज्ञान सुना था। देवताओं को 5 हजार वर्ष हुए हैं। उन्हों को मनुष्य से देवता किसने बनाया? अभी भी वही बाप फिर से बनायेगा। 5 हजार वर्ष बाद फिर से बाप को आना पड़ता है। रावण द्वारा पतित बने हुए को पावन बनाने। हिस्ट्री-जॉग्राफी मस्ट रिपीट। यह भी समझ में आता है हिस्ट्री रिपीट होती है। सतयुग के बाद त्रेता... चक्र लगाते हैं। अभी कलियुग का अन्त है। एक तरफ विनाश ज्वाला खड़ी है - दूसरी तरफ बाबा यहाँ आये हैं, नई दुनिया स्थापन करने अर्थ। यह वही महाभारत लड़ाई है। समझते हैं इससे विनाश हो जायेगा - मनुष्यों की दुनिया का। यह सबको समझ में आता है। पुरानी दुनिया का विनाश देखने में आता है। यह महाभारी महाभारत लड़ाई 5 हज़ार वर्ष पहले भी लगी थी। कोई लाखों वर्ष की बात नहीं है। यह भारत ही स्वर्ग था। इन देवताओं का राज्य था। यह सतयुग के मालिक थे। चित्रों पर भी अच्छी रीति समझाना पड़ता है इसलिए ही यह लक्ष्मी-नारायण आदि के चित्र बनाये हैं। 

    यूँ लक्ष्मी-नारायण के चित्र तो भारत में ढेर हैं, फिर हम बनाते हैं, क्यों? हम अर्थ सहित बनाते हैं। इनमें पूरा ज्ञान है। मनुष्य तो मूँझे हुए हैं इसलिए समझाया जाता है - सतयुग में इन्हों का राज्य था। बहुत थोड़े मनुष्य थे जो होकर गये हैं वही फिर पुनर्जन्म ले पावन से पतित बनेंगे। यह दुनिया ही तमोप्रधान है फिर पावन बनना है। समझानी तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं मैं तुमको 5 हजार वर्ष पहले की कहानी सुनाता हूँ। लाँग-लाँग एगो... यहाँ इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था अथवा क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले सतयुग था। हेविनली गॉड फादर ने हेविन स्थापन किया था। भारत को कहते भी हैं प्राचीन देश है, इसमें गॉड गॉडेज राज्य करते थे। गॉड कृष्ण, गॉडेज राधे कहते हैं। राधे-कृष्ण लक्ष्मी नारायण सतयुग में थे, फिर राम-सीता त्रेता में 5 हजार वर्ष का हिसाब-किताब क्लीयर है। जब उन्हों का राज्य था तो बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में थी। आत्मा तो अविनाशी है। आत्मा का कभी विनाश नहीं होता। ड्रामा भी अविनाशी है। आत्मा को 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। इतनी छोटी सी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है। यह कितनी वन्डरफुल बात है, इसको ही कुदरत कहा जाता है। इतनी छोटी बिन्दी कितना 84 जन्मों का पार्ट, 5 हजार वर्ष का पार्ट उसमें भरा हुआ है। वह भी अविनाशी, जो रिपीट जरूर करना है। यह बड़े ते बड़ी कुदरत है। परमात्मा भी बिन्दी, आत्मा भी बिन्दी। परन्तु परमात्मा सुप्रीम है। आत्मायें तो सब एक जैसी नहीं हैं, नम्बरवार हैं। पहले सुप्रीम शिवबाबा फिर कहेंगे लक्ष्मी-नारायण। ब्रह्मा-सरस्वती को सुप्रीम नहीं कहेंगे। सम्पूर्ण तो लक्ष्मी-नारायण है फिर नम्बरवार एक दो के पिछाड़ी आते हैं। मुख्य गायन है देवताओं का। सबसे सुप्रीम आत्मा शिवबाबा की है फिर सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता सब नम्बरवार हैं। नाटक में भी एक्टर नम्बरवार होते हैं। सब एक जैसे नहीं होते हैं। कहेंगे इनकी आत्मा सुप्रीम एक्टर है, यह पाई पैसे का एक्टर है। 

    सबसे फर्स्टक्लास क्रियेटर, डायरेक्टर कौन है? करनकरावनहार एक ही परमपिता परमात्मा है। अब तुमको सारे ड्रामा का पता पड़ा है। यह है बेहद का ड्रामा, नटशेल में तुमको बताया जाता है। झाड़ का यह देवी-देवता धर्म है फ़ाउन्डेशन। फिर उनसे टालियाँ इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन निकले हैं। यह फ्लावरवाज़ होगा। झाड़ शोभता है ना। बाकी एक-एक धर्म के पत्ते बैठ गिनती करो तो कितने होंगे। इस्लामी, बौद्धी सबके मठ पंथ गिने जाते हैं। शिव भोलानाथ यह ज्ञान सुनाते हैं। बाकी कोई डमरू आदि बजाने की बात नहीं है। शास्त्रों में जो आया सो लिख दिया है। वास्तव में है ज्ञान की डमरू, इनको शंखध्वनि भी कहा जाता है। शंखध्वनि मुख से की जाती है। यह है ज्ञान की मुरली। ड्रामा के आदि-मध्य अन्त का राज़ बैठ सुनाते हैं। आत्मा बिन्दी मिसल है, जिसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है। वह क्रियेटर है। वो एक्ट भी करते हैं। अच्छा पार्ट वह लेते हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। यह है ही एक बाप क्रियेटर और सब पुनर्जन्म में आने वाले हैं। यह कभी पुनर्जन्म नहीं लेते हैं, इनका अलौकिक जन्म है। तुम जानते हो कैसे आकर प्रवेश किया है। दूसरी आत्मायें भी प्रवेश करती हैं ना। समझो किसके स्त्री की आत्मा आती है। बोल सकेगी कि मैं सुखी हूँ। बाकी उनके शरीर को भाकी नहीं पहन सकेंगे क्योंकि शरीर तो दूसरा है ना। भावना है कि यह हमारे स्त्री की आत्मा है, इनको बुलाया गया है। ऐसे बहुतों को बुलाते हैं। अभी तमोगुणी हो गये हैं इसलिए एक्यूरेट बताते नहीं हैं। आत्मा क्या चीज़ है, कैसे आती-जाती है। यह ड्रामा में पहले से ही नूँध है। ऐसे नहीं आत्मा निकलकर यहाँ आती है। वह मर जाती है, नहीं। बाप कहते हैं यह मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ, जो ड्रामा में नूँध है। सो होता है। सेकण्ड पास हुआ, ड्रामा में नूँध है। यह बेहद का नाटक है। बाप बिन्दी है। बिन्दी को भोलानाथ कहते हैं। कितना वन्डर है। बाप भी कहते हैं मुझ बिन्दी में कितना पार्ट है। यह बातें नये कोई की बुद्धि में बैठ न सकें। पुरानों से भी कितनों की समझ में नहीं आता है। तो किसको समझाने में मूँझते हैं, जैसे रेडियों में कोई बात करने में मूँझते हैं। इसमें मुरली बड़ी फुर्ती से चलानी है। वह पढ़कर सुनाते हैं। यह है ओरली। 

    बाबा भी सब कुछ ओरली सुनाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में धारणा हो रही है। कल्प पहले भी तुमने धारणा कर बहुतों को सुनाया है। फिर वह ज्ञान खत्म हो गया। अब फिर रिपीट होना है। यह ज्ञान कोई साधू-सन्त की बुद्धि में नहीं है। वह परमात्मा को नहीं जानते। वह कह देते हैं - आत्मा परमात्मा में मिल जायेगी। मिलेगी फिर कैसे? अभी तुम्हारी आत्मा जानती है कि हमारा बाप आया है। हमको नॉलेज दे रहा है। फिर हम बाबा के साथ घर जायेंगे। यह तुम बच्चों को रूहानी नशा है। यह है तुम्हारा प्रवृत्ति मार्ग। बहुत तुमको कहते हैं कि तुम तो कुमार अथवा कुमारी हो। तुमको विकारों का अनुभव ही नहीं। हम तो विकारी गृहस्थ में रहने वाले हैं। तुम हमको यह ज्ञान कैसे दे सकते हो? हम हैं युगल, हमको बैचलर कैसे समझा सकेगा? हमको तो युगल समझाये, जो अनुभवी हो? विकार में गया हुआ हो, वही हमको समझा सकते हैं कि हमने ऐसे जीत पाई। ऐसे-ऐसे बाबा के पास पत्र आते हैं। बात तो ठीक है अब ऐसे अनुभवी से पत्र लिखाना चाहिए, जिसने भल शादी की हो परन्तु पवित्र हो। कोई को बाल-बच्चे थे, फिर पवित्र बने हैं। ऐसे-ऐसे हमको समझायें। ज्ञान तो बहुत अच्छा है। परन्तु कोई तीखा समझाने वाला नहीं है तो मैं मूँझ जाता हूँ। बहुत बातें सामने आती हैं। तो अनुभवी समझाने वाला हो। अब पत्रों द्वारा तो किसको इतना समझा नहीं सकते। सम्मुख आकर मिलें तो बाबा भी समझाये। ऐसे-ऐसे बहुत युगल हैं जो अपना अनुभव सुना सकते हैं कि हम ऐसे प्रवृत्ति में रह श्रीमत का पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं। खान-पान की भी पूरी परहेज रखते हैं। कोई समझाने वाला ठीक नहीं है तो मूँझ पड़ते हैं। सर्विस के लिए बुद्धि चलनी चाहिए। देही-अभिमानी भी बनना है। कोई भी फैमिलियरटी में नहीं आना चाहिए। मेहनत लगती है। माया घड़ी-घड़ी फँसा लेती है। कर्मातीत अवस्था अभी हो नहीं सकती। बहुत एक दो के नाम-रूप में फँस पड़ते हैं। 

    फिर बाबा को लिखते भी नहीं कि बाबा यह-यह तूफान आते हैं। सच नहीं बताते हैं। बाबा को लिखें तो बाबा युक्ति भी बतायें। कोई-कोई सच लिखते हैं। शिवबाबा तो सब कुछ जानते हैं। समझाते हैं अगर ऐसी कोई चलन चली तो धर्मराज द्वारा बहुत दण्ड भोगना पड़ेगा। सारा दिन ख्यालात चलते रहते हैं। सेन्टर पर आते हैं। कहते हैं फलानी बहुत अच्छा समझाती है। परन्तु अन्दर शैतानी भरी पड़ी होगी। यहाँ तो एक के साथ योग चाहिए। बाप के सिवाए दूसरा न कोई। क्यों दूसरे के पीछे पड़े। धारणा नहीं होती है तो जरूर कहाँ बुद्धि भटकती है फिर राय भी नहीं पूछते हैं। डरते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। इस याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। दु:ख से तुम लिबरेट हो जायेंगे। मुक्ति तो सब माँगते हैं। मुक्त होते हैं दु:ख से फिर सुख में आयेंगे। जीवनमुक्ति सबके लिए है। परन्तु पहले मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) बाप समान ज्ञान की शंख ध्वनि करनी है। सिर्फ पढ़ करके नहीं सुनाना है। धारणा करके फिर समझाना है।

    2) खान-पान की बहुत परहेज रखनी है। श्रीमत का पालन कर प्रवृत्ति में रहते हुए कैसे पवित्र रहते हैं, यह अनुभव दूसरों को सुनाना है।

    वरदान:

    संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाने वाले सम्पूर्ण ज्ञानी योगी भव!

    संगमयुग परमात्म स्नेह का युग है। इस युग के महत्व को जानकर स्नेह की अनुभूतियों में समा जाओ। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों की थालियां भरकर दे रहे हैं, तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ, सम्पन्न बनो। ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, इससे सदा सजे सजाये रहो क्योंकि यह स्नेह ही योग है और स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है। ऐसे रूहानी स्नेह का सदा अनुभव करने वाले ही सम्पूर्ण ज्ञानी-योगी हैं।

    स्लोगन:

    जो व्यर्थ की फीलिंग से परे रहता है वही मायाजीत बनता है।



    ***OM SHANTI***