BK Murli Hindi 31 May 2016

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 31 May 2016

    31-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    "मीठे बच्चे– रावण ने तुम्हें बहुत पीडि़त किया है, अभी तुम भक्तों का रक्षक भगवान आया है तुम्हारी पीड़ा को दूर करने"  

    प्रश्न:

    सपूत बच्चों की मुख्य दो निशानियाँ सुनाओ?

    उत्तर:

    सपूत बच्चे सदा मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनेंगे। खूब पुरूषार्थ में लगे रहेंगे। 2- उनकी बाप से दिल बहुत सच्ची होगी। सच्ची दिल वाले सदा श्रीमत पर चलेंगे। अगर अन्दर में सच्चाई नहीं तो याद में रह नहीं सकते।

    गीत:-

    भोलेनाथ से निराला...

    ओम् शान्ति।

    मीठे-मीठे बच्चों ने यह भक्ति मार्ग का गीत सुना। भक्त इस गीत के अर्थ को नहीं जानते। तुम भगवान के बच्चे बने हो। भगवान रक्षक है, भक्तों का। तुम भी रक्षक हो भक्तों के। भक्तों की रक्षा करते हो। कौनसी आफत है जो भगत रक्षा करने के लिए भगवान को बुलाते हैं? भक्तों को रावण का बहुत दु:ख है। रावण सम्प्रदाय पीडि़त है– दु:खों से। तो भोलानाथ को याद करते हैं। वह है रावण सम्पद्राय, यह है राम सम्प्रदाय। भक्तों को यह पता ही नहीं है कि हमारा रक्षक कौन है? भल गाते हैं, भोलानाथ रक्षक है। परन्तु क्या रक्षा करते हैं, यह नहीं जानते। तुम बच्चे अब समझते हो कि भोलानाथ शिवबाबा ही बिगड़ी को बनाने वाला है। दुनिया को तो पता नहीं है कि भगवान किसको कहा जाता है। भगवान का पता हो तो फिर भगवान की रचना के आदि-मध्य-अन्त का भी पता हो। न भगवान को जानते, न रचना का पता है इसलिए ऐसे मनुष्य सम्प्रदाय को ब्लाइन्ड भी कहा जाता है। दूसरे तरफ तुम हो, जिनको दिव्य दृष्टि मिली है। अब तुम्हारा नाम ही है ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। बोर्ड पर भी नाम लगा हुआ है– ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय। सिर्फ ब्रह्माकुमारियाँ हो नहीं सकती। प्रजापिता ब्रह्मा है ना। पिता के पास बच्चे और बच्चियाँ दोनों होते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को ही इतने ढेर बच्चे हो सकते हैं। तो समझना चाहिए यह बेहद का पिता है। 

    यह भी जानते हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को रचने वाला बाप ही है, जिसको निराकार कहा जाता है। यह हो गया बेहद का बाप। यह भी जानते हो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। इनकी सारी रचना है– सब मनुष्य मात्र वास्तव में शिववंशी हैं। अभी तुम आकर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान बने हो। यह है नई रचना। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं तो तुमको ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहा जाता है। इतने बेहद के बच्चे हैं जरूर बेहद का वर्सा लेते होंगे। बच्चे जानते हैं, हम ब्रह्माकुमार-कुमारियों को शिवबाबा ने एडाप्ट किया है। शिवबाबा कहते हैं– तुम हमारे बच्चे हो। तुम आत्मायें भी निराकार थी। परन्तु ज्ञान तो साकार में चाहिए। तुम जानते हो हम आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे, ब्रह्मा द्वारा रचना यहाँ होती है। शिव जयन्ती भी यहाँ मनाई जाती है। यहाँ मगध देश में ही जन्म लिया है। बाप कहते हैं यह देश बहुत पवित्र स्वर्ग था। अभी इनको नर्क, मगध देश कहा जाता है। फिर स्वर्ग बनना है। तुम बच्चों की बुद्धि में है शिवबाबा हमको फिर से राजयोग सिखाए पवित्र बनाते हैं। गाते भी हैं पतित-पावन भक्तों के रक्षक भगवान। भक्त ही पुकारते हैं। पतित होते हुए भी अपने को पतित नहीं समझते हैं। बाप समझाते हैं– तुम सभी पतित हो। पावन दुनिया सतयुग को, पतित दुनिया कलियुग को कहा जाता है। बाप तुम्हें सब राइट बताते हैं। लाखों वर्ष की तो कोई चीज होती नहीं। मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं, समझते हैं– कलियुग तो अभी छोटा बच्चा है। और तुम जानते हो मौत सामने खड़ा है। अन्धियारे और रोशनी का वर्णन संगम पर ही किया जाता है। अब तुम घोर प्रकाश में आये हो। सतयुग में तुम यह वर्णन नहीं कर सकेंगे। वहाँ यह नॉलेज ही नहीं रहती। 

    इस समय बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, तुम सतयुग में सूर्यवंशी घराने के थे फिर अन्त में आकर शूद्रवंशी घराने के बने हो। अब फिर ब्राह्मण वंशी बने हो। अभी तुम हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल के, तुम हो ऊंच ते ऊंच। यह ईश्वरीय कुल है ना। बाप के पास आते हैं तो बाबा पूछते हैं– किसके पास आये हो? तो कहते हैं बाप के पास। बाप दो हैं– एक है लौकिक, दूसरा पारलौकिक। सभी सालिग्रामों का बाप एक ही शिव है। तुम्हारी बुद्धि में यह टपकता है। हम एक बाप के बच्चे हैं, जिससे वर्सा लेते हैं। निराकार वर्सा तो साकार द्वारा ही देंगे ना। बाप खुद कहते हैं– मैं साधारण तन में आकर प्रवेश करता हूँ। अब बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे, देही-अभिमानी भव। अपने को आत्मा समझो। यह देह विनाशी है, आत्मा अविनाशी है। आत्मा को ही 84 जन्म लेने पड़ते हैं, न कि देह को। देह तो बदलती रहती है, फिर दूसरे मित्र-सम्बन्धी मिलते हैं। अभी आत्मा को बेहद के बाप से वर्सा लेना है– परमपिता परमात्मा द्वारा। तुम ही सुनकर फिर धारण करते हो। संस्कार तुम्हारी आत्मा में हैं। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। ऐसे नहीं कि शरीर के संस्कार कहेंगे। नहीं, तुम्हारी आत्मा के संस्कार तमोप्रधान हैं। उनको अब चेन्ज करना है। काया कल्पतरू कहा जाता है। काया कल्प वृक्ष समान बनती है। आयु भी बड़ी रहती है। तुम जानते हो– यहाँ तो आयु बहुत छोटी रहती है। छोटी आयु में ही बैठे-बैठे अकाले मृत्यु हो जाती है। अभी तुम काल पर विजय पाते हो। वहाँ काल कभी खाता नहीं। 

    अकाले कब शरीर नहीं छूटता। तुम जानते हो– अब यह शरीर बूढ़ा हुआ है, इनको छोड़कर नया लेना है। शरीर छोड़ने समय भी बाजे बजते हैं, जन्म लेने समय भी बजते हैं। वहाँ रोने की बात ही नहीं होती। तुमको भ्रमरी का मिसाल भी समझाया है। तुम हो ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ। ब्राह्मणी और भ्रमरी राशि मिलती है। जो काम भ्रमरी करती है, वही तुम भी करते हो। वन्डर है ना। भ्रमरी का दृष्टान्त, कछुओं का, सर्प का यह सब शास्त्रों में हैं। सन्यासी आदि भी यह मिसाल देते हैं। अभी तुम बच्चे बाप द्वारा यह सब समझ रहे हो। वह तो हुआ भक्ति मार्ग। पास्ट का गायन करना, इसका फिर बाद में गायन होगा। इस समय ही बाप इस तन में आते हैं, इनको (ब्रह्मा को) भगवान नहीं कहा जाता है। वह तो फिर अन्धश्रद्धा हो जाती है। ऐसे भी मनुष्य हैं जो राम को, कृष्ण को भगवान समझते हैं। कृष्ण के लिए, राम के लिए भी कह देते वह तो सर्वव्यापी है। कोई कृष्णपंथी, कोई राधे पंथी होते हैं। राधे पंथी वाले कहेंगे, सर्वत्र राधे ही राधे हैं। कृष्ण पंथी कहेंगे, जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है। राम पंथी राम ही राम कहेंगे। समझते हैं राम, कृष्ण से बड़ा है क्योंकि राम को त्रेता में और कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। कितना अज्ञान है। अब बाप तुम बच्चों को समझा रहे हैं, कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं, जरूर बेहद का बाप होगा। तुम कोई से भी पूछ सकते हो, कभी नाम सुना है प्रजापिता ब्रह्मा का? बाप ने स्वर्ग की नई रचना रची है। गाया भी जाता है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण। जब तक तुम सब ब्राह्मण ब्रह्मा की मुख वंशावली नहीं बने हो तब तक दादे से वर्सा ले नहीं सकते। 

    बेहद के बच्चे बेहद का वर्सा बाप से ही लेते हैं। लिया था बरोबर। बरोबर स्वर्गवासी थे। अभी नर्कवासी बन गये हैं, अब फिर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा विष्णुपुरी स्वर्ग रच रहे हैं। कितना सहज है। शिवबाबा पूछते हैं– आगे तुमको यह ज्ञान था? इनकी आत्मा ही कहती है– मेरे में यह ज्ञान नहीं था। मैं भी विष्णु का पुजारी था, जो हम पूज्य थे सो अब पुजारी आकर बनें। अब फिर बाबा आकर पुजारी से पूज्य देवता बना रहे हैं। तुम बच्चों को अन्दर में खुशी रहनी चाहिए। परमपिता परमात्मा ने आकर हमको एडाप्ट किया है। मनुष्य, मनुष्य को एडाप्ट करते हैं ना। बहुत मनुष्य होते हैं, जिनको अपने बच्चे नहीं होते हैं तो एडाप्ट करते हैं। अब बाप जानते हैं– मेरे बच्चे सब रावण के बन गये हैं, इसलिए मुझे आकर फिर से एडाप्ट करना पड़े। ब्रह्मा द्वारा अपने बच्चों को एडाप्ट करते हैं। यह एडाप्शन कितनी वण्डरफुल है। तुम ही जानते हो शिवबाबा ने हमको ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है। शिवबाबा कहते हैं– मैंने तुम बच्चों को एडाप्ट किया है, तुमको बेहद सुख का वर्सा देने। यह ब्रह्मा तो दे नहीं सकते। यह भी मनुष्य है ना प्रजापिता ब्रह्मा। मनुष्य यह ज्ञान नहीं देते हैं। ज्ञान का सागर निराकार परमपिता परमात्मा ही बैठ यह ज्ञान देते हैं। ब्रह्मा को अथवा विष्णु को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता। इन तीनों की महिमा अलग है। ज्ञान सागर, पतित-पावन एक बाप है। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र उनको बुलाते हैं। अंग्रेजी में भी कहते हैं– वह लिब्रेटर है। जिससे दु:ख मिलता है, उससे लिबरेट किया जाता है। बाप भी यहाँ आकर रावण से लिबरेट करते हैं। रावणराज्य भी यहाँ हुआ है। यहाँ ही रावण को जलाते हैं। जलाकर फिर कहते हैं, सोने की लंका लूटने जाते हैं। 

    उनको तो कुछ पता नहीं है। रावण क्या चीज है, कब का यह दुश्मन है। समझते हैं राम की सीता चुराई गई। यह नहीं समझते कि हम सब सीतायें हैं। हम रावण की जेल में फँसी हुई हैं। यह ज्ञान किसमें भी नहीं है, कथायें बैठ सुनाते हैं। शिवबाबा कहते हैं– मैं दूरदेश का रहने वाला आया हूँ इस देश पराये। यह पतित दुनिया पुरानी है ना, यह है रावण की दुनिया। बुलाते भी हैं हे बाबा आओ हम पतित बन गये हैं। बाप कहते हैं हमको पावन बनाने इस पतित दुनिया में आना पड़ता है। और मुझे आना भी उस तन में है जो पहले नम्बर में पावन था, जो सुन्दर था वही अब श्याम बना है। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। कृष्ण को श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं, यह किसको पता नहीं है। क्या एक कृष्ण को ही सर्प ने डसा? सतयुग में थोड़ेही सर्प आदि होते हैं। बाप कहते हैं– यह अन्तिम जन्म मेरे कारण पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। सिर्फ मुझे याद करो और पवित्र बनो। अल्फ को याद करो– तो बे बादशाही तुम्हारी है। यह है सहज राजयोग, सहज राजाई। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बना। यहाँ भी बच्चे जानते हैं कि हम बाप के बने हैं तो स्वर्ग की राजाई के हम् हकदार हैं। अब बाप कहते हैं– सतोप्रधान से तुम तमोप्रधान बन गये हो। फिर सतोप्रधान बनना है। योग और ज्ञान सिखाने में एक सेकण्ड लगता है। बच्चा पैदा हुआ और वारिस निश्चय किया। तुम बाप के बने हो तो राजधानी का वर्सा तुम्हारा है। परन्तु राजा-रानी सब तो नहीं बनेंगे। यह है राजयोग। राजा-रानी, प्रजा, साहूकार, गरीब सब चाहिए इसलिए रूद्र माला भी बनी हुई है, जो भक्ति मार्ग में जपते हैं। 

    तुम जानते हो हम राजयोग सीखने आये हैं। मात-पिता को फालो कर पहले-पहले सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे। सपूत बच्चे वह जो मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनें। पुरूषार्थ खूब करना चाहिए। बाप कहते हैं– मुझे याद करो तो करते नहीं, श्रीमत पर चलते नहीं हैं। अन्दर सच्चाई नहीं है। दिल सच्ची हो तो श्रीमत पर चलते, बाप को याद करते रहें। श्रीमत पर ही तुमको दादे से वर्सा मिलता है। ब्रह्मा स्वर्ग का वर्सा दे नहीं सकते। दादे की कमाई पर पोत्रे का हक रहता है। बाप की कमाई के बच्चे भागीदार बनते हैं तो हकदार हैं। यहाँ तुमको शिवबाबा से वर्सा मिलता है। ज्ञान रत्न बाप से ही मिलते हैं। तुम जानते हो– हम ब्राह्मण ही सो फिर देवी-देवता बनेंगे। जगत अम्बा कौन है? बाप समझाते हैं– यह ब्राह्मणी थी, ज्ञान- ज्ञानेश्वरी थी फिर राज-राजेश्वरी बनती है। तुम भी ऐसे बनते हो। अच्छा। 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चो को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) आत्मा में जो तमोप्रधानता के संस्कार हैं, उन्हें याद के बल से चेंज करना है। सतोप्रधान बनना है।

    2) बाप से राजाई का वर्सा लेने के लिए सदा सपूत बच्चा बन श्रीमत पर चलना है। सच्चे बाप से सच्चा रहना है। मात-पिता को पूरा फालो करना है। ज्ञान रत्नों का दान करते रहना है।

    वरदान:

    अपने अव्यक्त शान्त स्वरूप द्वारा वातावरण को अव्यक्त बनाने वाले साक्षात मूर्त भव!  

    जैसे सेवाओं के और प्रोग्राम बनाते हो ऐसे सवेरे से रात तक याद की यात्रा में कैसे और कब रहेंगे यह भी प्रोग्राम बनाओ और बीच-बीच में दो तीन मिनट के लिए संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर लो, जब कोई व्यक्त भाव में ज्यादा दिखाई दे तो उनको बिना कहे अपना अव्यक्ति शान्त रूप ऐसा धारण करो जो वह भी इशारे से समझ जाये, इससे वातावरण अव्यक्त रहेगा। अनोखापन दिखाई देगा और आप साक्षात्कार कराने वाले साक्षात मूर्त बन जायेंगे।

    स्लोगन:

    सम्पूर्ण सत्यता ही पवित्रता का आधार है।  



    ***OM SHANTI***