BK Murli Hindi 8 July 2016

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 8 July 2016

    08-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    “मीठे बच्चे– जीते जी इस शरीर से अलग हो जाओ, अशरीरी बन बाप को याद करो, इसको ही कहा जाता है डेड साइलेन्स”   

    प्रश्न:

    तुम बच्चे अभी अपना फाउन्डेशन मजबूत कर रहे हो, मजबूती किस आधार से आती है?

    उत्तर:

    पवित्रता के आधार से। जितना-जितना आत्मा पवित्र अर्थात् सच्चा सोना बनती जाती, उतनी मजबूती आती। बाबा अभी स्वराज्य का फाउन्डेशन इतना मजबूत डालते हैं जो आधाकल्प उस फाउन्डेशन को कोई हिला नहीं सकता। तुम्हारे राज्य को कोई छीन नहीं सकता।

    गीत:-

    ओम् नमो शिवाए...   

    ओम् शान्ति।

    बाबा कहते हैं- मुझे याद करो अर्थात् अशरीरी बनो अर्थात् डेड साइलेन्स। जैसे मनुष्य मरते हैं तो डेड साइलेन्स हो जाती है। कहते हैं इनका शरीर शान्त हो गया। शरीर और आत्मा अलग हो गई, खत्म हो गया। यहाँ भी तुम बच्चे जब बैठते हो तो इसको डेड साइलेन्स कहा जाता है। जीते जी अशरीरी बन जाओ। अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। तुम जानते हो यह सच्ची शान्ति है। वो लोग शान्ति को नहीं जानते। डेड साइलेन्स का अर्थ तो जानते ही नहीं। डेड साइलेन्स क्यों कहते हैं? याद दिलाते हैं- वह मर गया, शान्त हो गया। तुम भी मर जाओ, तुम भी शान्त हो जाओ। बड़े-बड़े लोग गांधी की समाधि पर जाते हैं। वहाँ जाकर कहेंगे डेड साइलेन्स अर्थात् शान्ति में बैठो। तुमको भी मालूम है हम आत्मा शान्त स्वरूप हैं, दुनिया को पता ही नहीं। हम अपने स्वरूप में टिक जाते हैं, हमारा स्वधर्म है शान्त। हमारी आत्मा शान्त स्वरूप है। उनको यह पता ही नहीं इसलिए शान्ति माँगते हैं। आत्मा कहती है– शान्ति चाहिए। आत्मा अपने स्वधर्म को भूली हुई है। वास्तव में आत्मा का धर्म ही शान्त है। फिर आत्मा क्यों कहती है– अशान्ति है। अशरीरी हो बैठ जाओ। वह तो हठ से प्राणायाम चढ़ा देते हैं तो जैसे मर जाते हैं, उसको कहा जाता है आर्टाफिशल शान्ति। तुम बच्चों को तो पता है हमारा स्वधर्म शान्त है। तुम आत्मा स्वराज्य ले रही हो। आत्मा ही सब कुछ बनती है। आत्मा बैरिस्टर बनती है। आत्मा कहती है हमको राज्य चाहिए। 

    आगे भी राज्य लिया था बाप से, अब फिर लेने आये हैं। मनुष्य देह-अभिमान में हैं तो दु:ख में हैं। अभी तुम समझते हो कि हम आत्मा हैं, अपने परमपिता परमात्मा से स्वराज्य लेने आये हैं। तुम आत्मा को राजाई चाहिए। इस समय आत्मा स्वराज्य माँगती है– बेहद के बाप से। श्रीकृष्ण को तो स्वराज्य था फिर गुम हो गया। अब बाप आकर तुम आत्माओं को राज्य देते हैं, इसको राजयोग कहा जाता है। परमपिता परमात्मा राजयोग सिखलाते हैं। मनुष्य देह- अभिमानी होने के कारण कहते हैं– मैं फलाना हूँ। “मैं” देह को ही समझ लेते हैं। वास्तव में “मैं” “मैं” आत्मा करती है। आत्मा कहती है मैं यह चीज उठाता हूँ। फीमेल कहेगी मैं उठाती हूँ। वास्तव में आत्मा तो मेल है। मैं आत्मा बाप का बच्चा हूँ। आत्मा कहती है– बाबा हम आपसे स्वराज्य ले रहे हैं। आत्मा को स्वराज्य देते हैं परमात्मा। भक्ति और ज्ञान में देखो कितना फर्क है। शिव का मन्दिर भी होता है। सबसे जास्ती घण्टे भी शिव के मन्दिर में बजते हैं। उनको जगाते हैं। जगाते तो सबको हैं। सवेरे-सवेरे बैण्ड बाजे बजते हैं। यहाँ बाप बच्चों को जगाकर देवता बनाते हैं। घण्टे आदि बजाने की कोई बात नहीं। बाप कहते हैं– तुमको स्वराज्य चाहिए तो पहले पवित्र बनो। एम आब्जेक्ट बुद्धि में रहती है। स्टूडेन्ट कहेंगे– हम यह मैट्रिक पास करेंगे फिर यह करेंगे। सन्यासी चाहेंगे हमको शान्ति मिले। एक कहानी भी है ना– रानी के गले में हार पड़ा था, ढूँढती थी बाहर। तो वह भी शान्ति को बाहर ढूँढते हैं। परन्तु आत्मा तो स्वयं शान्त स्वरूप है। आत्मा अपने स्वधर्म को भूल अपने को शरीर समझ बैठी है। 

    बाप फिर स्मृति दिलाते हैं कि तुम आत्मा हो। तुम आत्मा ने 84 जन्म भोगे हैं। यह बातें दूसरा कोई समझा न सके। बाप कहते हैं-तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं बताता हूँ। तुम हो ब्रह्माकुमार-कुमारियां। बाप ने समझाया है– सिवाए पवित्रता के ज्ञान की धारणा हो नहीं सकती। कहते हैं ना– शेरनी के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए। तो इसमें भी सोने का बर्तन चाहिए। आत्मा बाप को याद करने से सोना बन जाती है। बाप भी सच्चा सोना है। आत्मा बाप को याद करती है तो ज्ञान आ जाता है। तुम सच्चा सोना पवित्र थे– यह ज्ञान का असर किसको होता नहीं। बाप कहते हैं– मैं तुम आत्मा को स्वराज्य देता हूँ। यह स्वराज्य मिलेगा तब जब पुरानी सृष्टि का अन्त और नई सृष्टि की आदि होगी। मनुष्यों को हद की राजाई है। बेहद की राजाई मनुष्यों को कभी मिलती नहीं। विश्व का मालिक बन न सकें। तुम बनते हो, बाप द्वारा। भगवान बाप को ही तुम्हारे 84 जन्मों का मालूम है। देवतायें अपने जन्मों को जान नहीं सकते। अगर जान जायें तो दु:खी हो जायें, क्या सीढ़ी उतरते जायेंगे! राजाई का सुख ही गुम हो जाये। यहाँ तुमको पता है। जानते हैं कि हम आत्मा हैं, इसमें संशय की बात नहीं। एक दो से सुनकर वृद्धि होती जाती है। यह दैवी धर्म का झाड़ स्थापन हो रहा है। तुम समझ सकते हो– यह हमारे ब्राह्मण कुल का आया हुआ है। इसने पूरी भक्ति की है फिर बाप से वर्सा लेने आया है। ज्ञान पूरा होता है फिर भक्ति शुरू होती है। यह किसको पता ही नहीं है। मकान भी नया और पुराना होता है ना। कच्चे मकानों की आयु जरूर कम होगी। 

    आजकल मकान बहुत पक्के बनाते हैं। भल अर्थक्वेक आदि हो तो भी मकान गिरे नहीं, नुकसान न हो, बहुत मजबूत बनाते हैं। फाउन्डेशन जास्ती पक्का बनाते हैं। अब फाउन्डेशन पड़ रहा है– स्वराज्य का। आत्मा को 21 जन्म के लिए राज्य मिलता है। यहाँ की राजाई तो कुछ है नहीं। आज राजाई है कल किसी ने चढ़ाई की, खलास। फाउन्डेशन कोई का है नहीं। मनुष्य का भी फाउन्डेशन नहीं, आज है कल मर जाये। अभी तुम्हारा फाउन्डेशन बाबा पक्का डाल देते हैं, जो 21 जन्म तुम राज्य भाग्य पाते हो। तुम्हारी राजाई का पक्का फाउन्डेशन पड़ता है। तुमको कोई भी धरती का तूफान हिला न सके। गीता में भी कहते हैं बाबा हमको स्वराज्य देते हैं, जिसको कोई ले न सके, गिरा न सके। ऐसी बादशाही देते हैं जो जरा भी दु:ख की बात नहीं रहती। आत्मा को कितनी खुशी होनी चाहिए। निश्चय तो है ना। निश्चय नहीं है तो वो स्वर्ग में चलने के लायक नहीं। इतने ढेर ब्रह्माकुमारकुमारि यां वृद्धि को पाते रहते हैं। तुम जानते हो ज्ञान सागर, पतित-पावन हमको पढ़ाकर राजयोग सिखा रहे हैं। वह फिर कह देते हैं कृष्ण ने सिखाया। यह कैसे समझें शिवबाबा ने मनुष्य तन में आकर सिखाया। भारत ही पवित्र था, अब अपवित्र पतित है। देवताओं के आगे जाकर उन्हों की महिमा गाते हैं। शिव के आगे कभी ऐसा नहीं गायेंगे– तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हो। शिव की महिमा अलग है। वह ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सर्व का सद्गति करने वाला, सर्व की झोली भरने वाला भोलानाथ है। ऐसे बाप को सब भूले हुए हैं। परमपिता परमात्मा को बुलाते हैं कि आकर दु:ख हरो, सुख दो। सुख कर्ता दु:ख हर्ता तो एक ही है। 

    उनकी ही श्रेष्ठ मत है। वह है श्री श्री भगवान की मत, जिससे तुम बच्चे भी श्रेष्ठ बनते हो। गवर्मेन्ट भी कहती है कि भ्रष्टाचारी दुनिया है। अब श्रेष्ठ कौन बनाये, पता ही नहीं पड़ता है। समझते हैं साधू लोग बनायेंगे परन्तु वह तो श्रेष्ठ बना नहीं सकते। यह तो बाप का ही काम है ना। पहले एक राजा के हुक्म पर चलते थे। सतयुग में तुमको वजीर आदि कोई भी नहीं है। बादशाह में भी ताकत रहती है। वजीर का नाम गाया ही नहीं जाता। तुम समझते हो हमने विश्व का मालिक बन राज्य चलाया था। ऐसे ही जाकर चलाना है, जैसे चलाया था। बरोबर सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। हर एक को अपनी-अपनी राजधानी मिलेगी। कृष्ण को अपनी राजधानी होगी। दूसरे भी राजायें होते हैं ना। कम से कम 8 तो हैं ना, फिर 8 हैं वा 108 हैं, आगे चल पता पड़ जायेगा। ऐसे नहीं कि जो पिछाड़ी में ज्ञान देना है वह अभी देंगे। जो जियेंगे, बाप ज्ञान देते रहेंगे। देना ही है। ड्रामा में नूँध है। परमात्मा का अभी पार्ट है। यह ज्ञान देने का पार्ट अभी नूँधा हुआ है। बाप कहते हैं- आगे चल तुम बहुत समझने वाले हो। दिन-प्रतिदिन समझाते रहते हैं। यह भी पता चले कि हम वहाँ राजधानी कैसे करते हैं! स्वयंवर कैसे होता है! तुम ध्यान में जाते हो, वैकुण्ठ में जाकर देखते भी हो। कैसे वहाँ सोने के महल हैं। सोना ही सोना है। अपने को पारसपुरी में देखते हो। सोने की ईटों के मकान बन रहे हैं। समझते हैं– थोड़ी ईटें ले जायेंगे। फिर उतरते हो तो अपने को यहाँ देखते हो। मीरा भी ध्यान में अपने को रास करते कृष्ण के साथ देखती थी। तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, वहाँ हड्डी मास नहीं होता, फरिश्ते बन जाते हैं। ब्रह्मा का भी सूक्ष्म शरीर देखने में आता है। यही फरिश्ता बन जाते हैं। 

    तुम बगीचा आदि देखते हो। यह बाप साक्षात्कार कराते हैं। तुम कहते हो बाबा हमको शूबीरस पिलाते हैं। अब सूक्ष्मवतन में तो पिला न सकें। फल-फूल वैकुण्ठ में बड़े फर्स्टक्लास होते हैं। सूक्ष्मवतन में तो बगीचा नहीं होगा। तुम बताते हो कि बगीचे में गये फिर वहाँ प्रिन्स था, वह तो वैकुण्ठ हो गया ना! वैकुण्ठ के वैभव यहाँ मिल न सके। वहाँ तो फर्स्टक्लास वैभव होते हैं। बाप कहते हैं- हम तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। कोई ऐसा मनुष्य नहीं जो ऐसा न कहे कि हे भगवान दु:ख से छुड़ाओ। दु:ख में ही याद करते हैं। कृष्ण के पुजारी कहेंगे– कृष्ण कहो, हनूमान के पुजारी हनूमान की जय बोलेंगे... यहाँ बाप कहते हैं निरन्तर मुझ बाप को याद करो। ऐसा याद करो जो अन्तकाल कोई की स्मृति न आये। काशी कलवट खाते थे, उसमें किये हुए पापों की ऐसी महसूसता आती है– जैसे जन्म-जन्मान्तर की सजायें भोगते हैं। बहुत पाप किये हैं। इसको कहा ही जाता है पाप आत्माओं की दुनिया। आत्मा पापी है। आत्मा ही बाप को बुलाती है– हे परमपिता परमात्मा, हे परमधाम के रहने वाले शिवबाबा, उनका असली नाम तो एक ही है। वह है आत्माओं का बाप। रूद्र के साथ सालिग्राम शब्द शोभता नहीं है। शिव और सालिग्राम शोभता है। शिव का मिट्टी का लिंग बनाते हैं तो सालिग्राम भी बनाते हैं। पतित-पावन तो वही है ना। यहाँ यज्ञ भी रचते हैं। भारत सबसे ऊंच है परन्तु देवता धर्म को भूल गये हैं। तुम्हारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। वह तो चला आना चाहिए। हिन्दू कोई धर्म थोड़ेही है। 

    देवता धर्म वाले ही सतो रजो तमो में आते हैं। जब तमो में आ जाते हैं तो अपने को देवता कह नहीं सकते। वास्तव में हिन्दू तो धर्म है नहीं। तो समझाया जाता है कि तुम देवी-देवता बन सकते हो, आकर समझो। तो कह देते फुर्सत कहाँ है! बाप कहते हैं- हम तुमको अपना बनाते हैं– शान्ति और सुख का वर्सा देने लिए। कोई परिवार आपस में इकट्ठे रहते हैं, बहुत प्यार से चलते हैं। सबकी कमाई इकट्ठी होती है। कोई हंगामा नहीं रहता है, परन्तु इनको स्वर्ग तो नहीं कहेंगे ना। सतयुग में एक भी घर में बीमार, दु:खी होते नहीं। नाम ही है स्वर्ग। वहाँ सब सुखी रहते हैं। बाप से तुम सदा सुख का वर्सा लेने आये हो। तुमको ज्ञान मिला है। कहते हैं बाबा आप पतित-पावन हो। हमको भी पावन बनाओ। बाप के साथ तुम बच्चे भी खुदाई खिदमगार हो। अच्छा! 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) स्वराज्य लेने के लिए पवित्रता का फाउन्डेशन अभी से मजबूत करना है। जैसे बाप पतित-पावन है ऐसे बाप समान पावन बनना है।

    2) अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है। जितना हो सके देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी रहना है। डेड साइलेन्स अर्थात् अशरीरी रहने का अभ्यास करना है।

    वरदान:

    एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघ्न बनने वाले निवारण स्वरूप भव!   

    सदा एक बाप की लगन, बाप के कर्तव्य की लगन में ऐसे मगन रहो जो संसार में कोई भी वस्तु या व्यक्ति है भी-यह अनुभव ही न हो। ऐसे एक लगन, एक भरोसे में, एकरस अवस्था में रहने वाले बच्चे सदा निर्विघ्न बन चढ़ती कला का अनुभव करते हैं। वे कारण को परिवर्तन कर निवारण रूप बना देते हैं। कारण को देख कमजोर नहीं बनते, निवारण स्वरूप बन जाते हैं।

    स्लोगन:

    प्रशन्सा के आधार पर प्रसन्नता अल्पकाल की रहती है।   



    ***OM SHANTI***