BK Murli In Hindi 21 August 2016

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli In Hindi 21 August 2016


    *21-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:06-11-81 मधुबन*


    *“ विशेष युग का विशेष फल”*

    *आज विश्व कल्याणकारी बाप अपने विश्व कल्याण के कार्य के आधारमूर्त बच्चों को देख रहे हैं। यही आधारमूर्त विश्व के परिवर्तन करने में विशेष आत्मायें हैं। ऐसी विशेष आत्माओं को बापदादा भी सदा विशेष नजर से देखते हैं। हरेक विशेष आत्मा की विशेषता सदा बापदादा के पास स्पष्ट सामने है। हर बच्चा महान् है, पुण्य आत्मा है। पुरूषोत्तम अर्थात् देव आत्मा है। विश्व परिवर्तन के निमित्त आत्मायें हैं। ऐसे हरेक अपने को समझकर चलते हो? क्या थे और क्या बन गये हैं? यह महान् अन्तर सदा सामने रहता है? यह अन्तर महामन्त्र स्वरूप स्वत: बना देता है।
    ऐसा अनुभव करते हो? जैसे बाप के सामने सदा हरेक बच्चा विशेष आत्मा के रूप में सामने रहता है, वैसे आप सब भी अपनी विशेषता और सर्व की विशेषता यही सदा देखते हो? सदा कीचड़ में रहने वाले कमल को देखते हो? वा कीचड़ और कमल दोनों को देखते हो? संगमयुग विशेष युग है और इसी विशेष युग में आप सर्व विशेष आत्माओं का विशेष पार्ट है क्योंकि बापदादा के सहयोगी हो। विशेष आत्माओं का कर्तव्य क्या है? स्व की विशेषता द्वारा विशेष कार्य में रहना अर्थात् अपनी विशेषता का सिर्फ मन में वा मुख से वर्णन नहीं करना लेकिन विशेषता द्वारा कोई विशेष कार्य कर दिखाना। जितना अपनी विशेषता को मंसा या वाणी और कर्म की सेवा में लगायेंगे तो वही विशेषता विस्तार को पाती जायेगी। सेवा में लगाना अर्थात् एक बीज से अनेक फल प्रगट करना। ऐसे स्व की चेकिंग करो कि बाप द्वारा इस श्रेष्ठ जीवन में जो जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में विशेषता मिली है उसको सिर्फ बीज रूप में ही रखा है वा बीज को सेवा की धरनी में डाल विस्तार को पाया है? अर्थात् अपने स्वरूप वा सेवा के सिद्धि स्वरूप के अनुभव किये हैं? बापदादा ने सर्व बच्चों की विशेषता के तकदीर की लकीर जन्म से ही खींच ली है।

    जन्म से हर बच्चे के मस्तक पर विशेषता के तकदीर का सितारा चमका हुआ ही है। कोई भी बच्चा इस तकदीर से वंचित नहीं है। यह तकदीर जगा करके ही आये हो। फिर अन्तर क्या हो जाता? जो सुनाया कि कोई इस वरदान के बीज को, तकदीर के बीज को वा जन्म सिद्ध अधिकार के बीज को विस्तार में लाते, कोई बीज को कार्य में न लाने के कारण शक्तिहीन बीज कर देते हैं। जैसे बीज को समय पर कार्य में नहीं लगाओ तो फलदायक बीज नहीं रहता। कोई फिर क्या करते? बीज को सेवा की धरनी में डालते भी हैं लेकिन फल निकलने से पहले वृक्ष को देख उसी में ही खुश हो जाते हैं कि मैंने बीज को कार्य में लगाया। इसकी रिजल्ट क्या होती? वृक्ष बढ़ जाता, डाल-डालियाँ, शाखायें उपशाखायें निकलती रहती, लेकिन वृक्ष बढ़ता, फल नहीं आता। देखने में वृक्ष बड़ा सुन्दर होता लेकिन फल नहीं निकलता अर्थात् जो जन्म सिद्ध अधिकार रूप में विशेषता मिली उससे न स्वयं सफलता रूपी फल पायेगा, न औरों को उस विशेषता द्वारा सफलता स्वरूप बना सकेगा। विशेषता के बीज का सबसे श्रेष्ठ फल है “सन्तुष्टता”। इसीलिए आजकल के भक्त सन्तोषी माँ की पूजा ज्यादा करते हैं। तो सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट रखना, यह है विशेष युग का विशेष फल। कई बच्चे ऐसे फलदायक नहीं बनते। वृक्ष का विस्तार अर्थात् सेवा का विस्तार कर लेंगे लेकिन बिना सन्तुष्टता के फल के वृक्ष क्या काम का? तो विशेषता के वरदान वा बीज को सर्वशक्तियों के जल से सींचो तो फलदायक हो जायेंगे। नहीं तो विस्तार हुआ वृक्ष भी समय प्रति समय आये हुए तूफान से हिलते-हिलते कब कोई डाली, कब कोई डाली टूटती रहेगी। फिर क्या होगा? वृक्ष होगा लेकिन सूखा हुआ वृक्ष। कहाँ एक तरफ सूखा वृक्ष– जिसमें आगे बढ़ने का उमंग, उत्साह, खुशी, रूहानी नशा कोई भी हरियाली नहीं, न बीज में हरियाली न वृक्ष में। और साथ-साथ दूसरे तरफ सदा हराभरा फलदायक वृक्ष।

    कौन-सा अच्छा लगेगा? इसलिए बापदादा ने विशेषता के वरदान का शक्तिशाली बीज सब बच्चों को दिया है। सिर्फ विधिपूर्वक फलदायक बनाओ। यह रही स्व के विशेषता की बात। अब विशेष आत्माओं के सम्बन्ध सम्पर्क में सदा रहते हो क्योंकि ब्राह्मण परिवार अर्थात् विशेष आत्माओं का परिवार। तो परिवार के सम्पर्क में आते हरेक की विशेषता को देखो। विशेषता देखने की ही दृष्टि धारण करो अर्थात् विशेष चश्मा पहन लो। आजकल फैशन और मजबूरी चश्में की है। तो विशेषता देखने वाला चश्मा पहनो तो दूसरा कुछ दिखाई नहीं देगा। जब साइंस के साधनों द्वारा लाल चश्मा पहनो तो हरा भी लाल दिखाई दे सकता है। तो इस विशेषता की दृष्टि द्वारा विशेषता ही देखेंगे। कीचड़ को नहीं देख कमल को देखेंगे और हरेक की विशेषता द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य में विशेष कार्य के निमित्त बन जायेंगे। तो एक बात– अपनी विशेषता को कार्य में लगाओ, विस्तार कर फलदायक बनाओ, दूसरी बात सर्व में विशेषता देखो। तीसरी बात– सर्व की विशेषताओं को कार्य में लगाओ। चौथी बात– विशेष युग की विशेष आत्मा हो इसलिए सदा विशेष संकल्प, बोल और कर्म करना है। तो क्या हो जायेगा? विशेष समय मिल जायेगा क्योंकि विशेष न समझने के कारण स्वयं द्वारा स्वयं के विघ्न और साथ-साथ सम्पर्क में आने से भी आये हुए विघ्नों में समय बहुत जाता है क्योंकि स्वयं की कमजोरी वा औरों की कमजोरी, इसकी कथा और कीर्तन दोनों बड़े लम्बे होते हैं। जैसे आपके यादगार “रामायण” को देखो– तो कथा और कीर्तन दोनों ही बड़े दिलचस्प और लम्बे हैं।

    लेकिन है क्या? विशेषता न देख ईर्ष्या में आये तो कितना लम्बा कीर्तन और कहानी हो गई। ऐसे विशेषता को न देखने से लक्ष्मी-नारायण की कथा के बजाए राम कथा बन जाती है और इसी कथा कीर्तन में स्वयं का, सेवा का समय व्यर्थ गंवाते हो। और भी मजे की बात करते हो, सिर्फ अकेला कीर्तन कथा नहीं करते लेकिन कीर्तन मण्डली भी तैयार करते हैं– इसीलिए सुनाया इस व्यर्थ कीर्तन कथा से समय बचने के कारण विशेष समय भी मिल जाता है। तो समझा क्या करना है, क्या नहीं करना है? जैसे आजकल की दुनिया में किसी को कहते हो– भक्ति का फल प्राप्त करो, सहज राजयोगी बनो तो ज्यादा किसमें रूचि रखते हैं? भक्ति के कथा कीर्तन में ज्यादा रूचि रखते हैं ना। मनोरंजन समझते हैं। ऐसे कई विशेष आत्मायें भी व्यर्थ की रामकथा की मण्डली में वा कीर्तनमण्ड ली में बड़ा मनोरंजन समझती हैं। ऐसे समय पर उन आत्माओं को कहो-छोड़ो इस कीर्तन को, शान्ति में रहो तो मानेंगे नहीं क्योंकि संस्कार पड़े हुए हैं ना। अब इस कीर्तन मण्डली को समाप्त करो। समझा? विशेष आत्माओं की सभा में बैठे हो ना और ग्रुप भी विशेष है। दोनों ही गद्दी वाले हैं। एक प्रवेशता की गद्दी दूसरी राजगद्दी। वह राज्य की चाबी मिलने की गद्दी (कलकत्ता) और वह है राज्य करने की गद्दी (दिल्ली) तो दोनों ही गद्दी हो गई ना। तो दोनों की विशेषता हुई ना। चाबी नहीं मिलती तो राज्य भी नहीं करते, इसलिए विशेषता को नहीं भूलना। अच्छा। *

    *ऐसे सदा विशेषता को देखने वाले, विशेषता को कार्य में लगाने वाले, विशेष समय सेवा में लगाए सेवा का प्रत्यक्ष फल खाने वाले, सदा सन्तुष्ट आत्मा, सदा सन्तुष्टता की किरणों द्वारा सर्व को सन्तुष्ट करने वाले, ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। *

    *पार्टियों के साथ:- *

    *1. आवाज से परे जाने की युक्ति जानते हो? अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस। साइलेंस की शक्ति कितनी महान है इसके अनुभवी हो ना? साइलेंस की शक्ति द्वारा सृष्टि की स्थापना कर रहे हो। साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना। तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित्त हैं तो स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे। अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता। विश्व में सबसे प्यारे से प्यारी चीज है शान्ति अर्थात् साइलेंस। इसके लिए ही बड़ी-बड़ी कानफ्रेन्स करते हैं। शान्ति प्राप्त करना ही सबका लक्ष्य है। यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। और आप समझते हो साइलेंस तो हमारा स्वधर्म है। जितना आवाज में आना सहज लगता है उतना सेकेण्ड में आवाज से परे जाना– यह अभ्यास है? साइलेंस की शक्ति के अनुभवी हो? कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जाए। शान्ति स्वरूप रहना अर्थात् शान्ति की किरणें सबको देना। यही काम है। विशेष शान्ति की शक्ति को बढ़ाओ। स्वयं के लिए भी और औरों के लिए भी शान्ति के दाता बनो। भक्त लोग शान्ति देवा कहकर याद करते हैं ना? देव यानी देने वाले। जैसे बाप की महिमा है शान्ति दाता, वैसे आप भी शान्तिदेवा हो। यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है।

    जहाँ शान्ति होगी वहाँ सब बातें होंगी। तो सभी शान्ति देवा हो, अशान्त के वातावरण में रहते स्वयं भी शान्त स्वरूप और सबको शान्त बनाने वाले, जो बापदादा का काम है, वही बच्चों का काम है। बापदादा अशान्त आत्माओं को शान्ति देते हैं तो बच्चों को भी फालो फादर करना है। ब्राह्मणों का धन्धा ही यह है। अच्छा। *

    *2-ब्राह्मणों का विशेष कर्तव्य है– ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना: सभी विश्व कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दे रहे हो? मास्टर ज्ञान सूर्य हो ना। तो सूर्य क्या करता है? अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है। तो आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों की किरणें विश्व में देते रहते हो? सारे दिन में कितना समय इस सेवा में देते हो? ब्राह्मण जीवन का विशेष कर्तव्य ही यह है। बाकी निमित्त मात्र। ब्राह्मण जीवन वा जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए। तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहते हो? जो इस कार्य में तत्पर होंगे। वह सदा निर्विघ्न होंगे। विघ्न तब आते हैं जब बुद्धि फ्री होती है। सदा बिजी रहो तो स्वयं भी निर्विघ्न और सर्व के प्रति भी विघ्न विनाशक। विघ्न विनाशक के पास विघ्न कभी भी आ नहीं सकता। अच्छा। *

    *3- संगमयुग पर ब्राह्मणों का विशेष स्थान है– बापदादा का दिलतख्त सभी अपने को बापदादा के दिलतख्त नशीन अनुभव करते हो? ऐसा श्रेष्ठ स्थान कभी भी नहीं मिलेगा। सतयुग में हीरे सोने का मिलेगा लेकिन दिलतख्त नहीं मिलेगा। तो सबसे श्रेष्ठ आप ब्राह्मण हो और आपका श्रेष्ठ स्थान है दिलतख्त इसलिए ब्राह्मण चोटी अर्थात् ऊंचे ते ऊंचे हैं। इतना नशा रहता है कि हम तख्तनशीन हैं? ताज भी है, तख्त भी है, तिलक भी है। तो सदा ताज, तख्त, तिलकधारी रहते हो? स्मृति भव का अविनाशी तिलक लगा हुआ है ना? सदा इसी नशे में रहो कि सारे कल्प में हमारे जैसा कोई भी नहीं। यही स्मृति सदा नशे में रखेगी और खुशी में झूमते रहेंगे। *

    *4- रूहानी सेवाधारी का कर्तव्य है– लाइट हाउस बन सबको लाइट देना। सदा अपने को लाइट हाउस समझते हो? लाइट हाउस अर्थात् ज्योति का घर। इतनी अथाह ज्योति अर्थात् लाइट जो विश्व को लाइट हाउस बन सदा लाइट देते रहें। तो लाइट हाउस में सदा लाइट रहती ही है तब वह लाइट दे सकते हैं। अगर लाइट हाउस खुद लाइट के बिना हो तो औरों को कैसे दें? हाउस में सब साधन इकठ्ठे होते हैं। तो यहाँ भी लाइट हाउस अर्थात् सदा लाइट जमा हो, लाइट हाउस बनकर लाइट देना– यह ब्राह्मणों का आक्यूपेशन है। सच्चे रूहानी सेवाधारी महादानी अर्थात् लाइट हाउस होंगे। दाता के बच्चे दाता होंगे। सिर्फ लेने वाले नहीं लेकिन देना भी है। जितना देंगे उतना स्वत: बढ़ता जायेगा। बढ़ाने का साधन है देना। *

    *5- सर्व वरदानों से सम्पन्न बनने का समय है– संगम युग इस श्रेष्ठ समय के महत्व को वा समय के वरदान को जानते हो ना? सारे कल्प में वरदानी समय कौन-सा है? (संगम) तो इस वरदानी समय पर स्वयं को वरदानों से सम्पन्न बनाया है? क्योंकि यह भी जानते हो कि विधाता द्वारा वरदानों का भण्डार भरपूर भी है और खुला भण्डार है, जो जितना चाहे उतना अपने को मालामाल बना सकते हैं। तो ऐसे मालामाल बनाया है? थोड़ा सा खजाना ले करके, थोड़े में सन्तुष्ट नहीं होना। लेना है तो पूरा ही लेना है, थोड़ा नहीं। जो अधिकारी आत्मायें होंगी वह थोड़े में खुश नहीं होगी। बनना है तो नम्बरवन बनना है, लेना है तो सम्पन्न ही लेना है। तो ऐसा ही लक्ष्य और लक्षण दोनों समान हों। सदा हर बात में बैलेंस से ही बाप द्वारा और सर्व द्वारा ब्लेसिंग मिलती रहेगी और ब्लिसफुल लाइफ बन जायेगी। बैलेंस रख ब्लेसिंग लेना और ब्लेसिंग देना, यही मुख्य सौगात मधुबन से लेकर जाना। यही है यहाँ की रिफ्रेशमेंट। अच्छा– ओम् शान्ति।*

    *वरदान:*

    *मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव!   *

    *जो बच्चे लोहे की जंजीरे और महीन धागों के बंधन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मुक्त हो जाते हैं। उन्हें देह-अभिमान वा देह के पुरानी दुनिया की कोई भी वस्तु जरा भी आकर्षित नहीं करती। जब कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो तब अलौकिक अतीन्द्रिय सुख वा मनरस स्थिति का अनुभव होता है। इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति चाहिए।*

    *स्लोगन:*

    *सच्ची सेवा वह है जिसमें सर्व की दुआओं के साथ खुशी की अनुभूति हो।   *


    ***Om Shanti***