BK Murli Hindi 12 September 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 September 2016

    12-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

    “मीठे बच्चे– मनमनाभव का मन्त्र पक्का कराओ, एक बाप को सदा फॉलो करो– यही है बाप का सहयोगी बनना”

    प्रश्न:

    पुरूषोत्तम बनने का सहज और श्रेष्ठ पुरूषार्थ क्या है?

    उत्तर:

    हे पुरूषोत्तम बनने वाले बच्चे– तुम सदा श्रीमत पर चलते रहो। एक बाप को याद करो और कोई भी बात में इन्टरफियर न करो। खाओ पियो सब कुछ करो लेकिन बाप को याद करते रहो तो पुरूषोत्तम बन जायेंगे। पुरूषोत्तम वही बनते जिन पर ब्रहस्पति की दशा है। वह कभी श्रीमत की अवज्ञा नहीं करते। उनसे कोई उल्टा कर्म नहीं होता।

    गीत:-

    ओम् नमो शिवाए.....   

    ओम् शान्ति।

    यह महिमा किसकी है? एक परमपिता परमात्मा की, जो अच्छा काम करते हैं उनकी महिमा जरूर होती है। जो बुरा कर्तव्य करते हैं उनकी निंदा होती है। जैसे अकबर था तो उसकी महिमा थी, औरंगजेब की निंदा थी। राम की महिमा करेंगे, रावण की निंदा करेंगे। भारत में ही रामराज्य, रावणराज्य मशहूर है। रामराज्य को कहेंगे पुरूषोत्तम राज्य और रावण राज्य को कहेंगे आसुरी राज्य। बच्चों को तो अभी संगमयुग का पता पड़ा है। यह है ही पुरूषोत्तम युग। इस भारत को पुरूषोत्तम बनाकर ही छोड़ना है। रहने वालों को भी पुरूषोत्तम बनाना है और रहने की जगह को भी पुरूषोत्तम बनाना है। भारत को ही स्वर्ग कहते हैं, रहने वालों को देवी-देवता, स्वर्गवासी कहते हैं। तो दोनों उत्तम बनते हैं। सबको पता है कि नई दुनिया उत्तम होती है और पुरानी दुनिया कनिष्ट होती है। जैसी दुनिया, वैसे रहने वाले। गाया भी जाता है, भारत नया, भारत पुराना और कोई खण्ड को नया खण्ड नहीं कहेंगे। ऐसे नहीं कि नई दुनिया में नई अमेरिका, नई चाईना होती है। नहीं, नई दुनिया में तो नया भारत गाया जाता है इसलिए न्यु इन्डिया कहा जाता है। नया भारत तो नाम रखते हैं, परन्तु है सब बिगर अर्थ। न्यु इन्डिया फिर इस समय कहाँ से आई! न्यु इन्डिया में तो देहली परिस्तान है। अब परिस्तान कहाँ है। तुम बच्चे यहाँ आते हो पुरूषोत्तम बनने। ऊंच ते ऊंच ब्रहस्पति की दशा है। पुरूषोत्तम बनने से ब्रहस्पति की दशा बैठती है। 

    तुम जानते हो कि नई दुनिया की स्थापना करने वाले बेहद के बाप द्वारा हम बेहद का सुख लेने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। सतयुग में पुरूषोत्तम होते हैं। फिर नीचे आते हैं तो मध्यम फिर कनिष्ट बन जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो-कि अभी बाप हमको सतोप्रधान सतयुगी स्वर्गवासी, पुरूषोत्तम बना रहे हैं। यह है बहुत-बहुत सहज। न कोई खाने की दवा है, न कोई करने की बात। सिर्फ याद करना है, इसलिए कहा जाता है सहज याद। याद से ही पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनना है। यह तो जरूर है सबको मुक्ति मिलनी है। बाप कहते हैं कि मैं सर्व का सद्गति दाता हूँ तो जरूर मनुष्यों के शरीर खत्म हो जायेंगे। बाकी आत्माओं को पवित्र बनाकर ले जाऊंगा। वापिस जाने के लिए तैयारी करनी पड़े। बाप तैयारी करा रहे हैं क्योंकि आत्मा के पंख टूट चुके हैं अर्थात् तमोप्रधान आत्मा है। तुम योगबल से पवित्र बनने की मेहनत करते हो। जो नहीं करते उनको हिसाब-किताब देना पड़ेगा, इसमें कोई विचार करने की बात नहीं। बच्चों का काम है बाप से पूरा वर्सा लेना, बाप का मददगार बन सहयोग देना पड़ता है। बाप का भी सहयोग, बच्चों का भी सहयोग। कैसे सहयोग देवें, वह बाप को देख फालो करो। सभी को मेरा मन्त्र देते जाओ– पुरूषोत्तम बनने के लिए। बाप कल्प-कल्प आकर कहते हैं– पतित से पावन मुझे याद करने बिगर नहीं बनेंगे। मैं कोई गंगा स्नान कराता हूँ क्या? सिर्फ महामन्त्र याद करना है “मनमनाभव”। इसका अर्थ है मुझे याद करो तो तुम पावन बन, पुरूषोत्तम बन स्वर्ग का मालिक बनेंगे। स्त्री पुरूष दोनों ही पवित्र प्रवृत्ति वाले मालिक बनेंगे। 

    बाप यह सभी बातें डिटेल में समझाते हैं। तुम प्रैक्टिकल में बनते हो। तुम जानते हो भगवान ने आकर बच्चों को पुरूषोत्तम बनाया है तब तो कहते हैं कि पतितों को पावन बनाने वाले पतित-पावन आओ। पुरूषोत्तम मास की बड़ी महिमा सुनाते हैं ना। तो इस पुरूषोत्तम युग की बड़ी महिमा है। कलियुग अर्थात् रात के बाद दिन जरूर आना है। दु:ख के बाद सुख आता है। यह अक्षर भी क्लीयर है। स्त्री पुरूष दोनों उत्तम से उत्तम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनते हैं क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है। सतयुग तो नामीग्रामी है, उनको ही सुखधाम कहा जाता है। वह तो द्वापर में आते हैं। सन्यास धारण कर उत्तम बनते हैं इसलिए पतित मनुष्य जाकर उन्हों को माथा टेकते हैं। पवित्र के आगे अपवित्र माथा टेकते हैं, यह तो कामन बात है। पतित-पावन बाप को न जानने के कारण पतित-पावनी गंगा को पावन समझ जाकर माथा टेकते हैं। गंगा और सागर का भी मेला लगता है। तुम बच्चों को बाप बहुत क्लीयर कर समझाते हैं फिर भी बाप कहते हैं- कोटों में कोई, कोई में भी कोई समझते हैं। उसमें भी आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, फारकती देवन्ती और भागन्ती, डिससर्विस करन्ती बन जाते हैं। सर्विस और डिससर्विस दोनों होती रहती हैं। भागन्ती भी बहुत होते हैं, जो बाप को नहीं जानते। तुम पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनते हो। 

    फिर बच्चे ही बैठ विघ्न डालते हैं, डिससर्विस करते हैं तो कितना महान पाप है। रावण सबको महापापी बन्ते हैं लेकिन जो बच्चे बन डिससर्विस करे उनके लिए ट्रिब्युनल बैठती है। भक्ति मार्ग में इतनी कड़ी सजा नहीं मिलती, परन्तु यहाँ बाप का बनकर फिर डिससर्विस करते तो बाप का राइटहैण्ड है धर्मराज इसलिए बाप कहते हैं- बच्चे मेरी सर्विस में मददगार बन फिर और ही उल्टा काम नहीं करना, डिससर्विस करेंगे तो फिर अबलाओं पर विघ्न पड़ेगा। माताओं पर बाबा को तरस आता है। द्रोपदी के भी भगवान ने पांव दबाये हैं ना। द्रोपदी ने पुकारा कि हमको नगन करते हैं। बाबा माताओं के सिर पर कलष रखते हैं। पहले है माता, पीछे है पुरूष। परन्तु आजकल पुरूषों में मगरूरी बहुत है कि मैं स्त्र का गुरू हूँ, पति ईश्वर हूँ, स्त्र मेरी दासी है। यहाँ बाप निरंहकारी बन माताओं के पांव भी दबाते हैं। तुम थक गई हो। मैं तुम्हारी थकान दूर करने के लिए आया हूँ। तुम माताओं का सभी ने तिरस्कार किया। सन्यासी स्त्र को छोड़ चले जाते हैं। कोई को 5-7 बच्चे होते हैं, सम्भाल नहीं सकते तो तंग होकर भाग जाते हैं। रचना कर फिर उनको भटका कर जाते हैं। बाप कहते हैं- मैं किसको भटकाता नहीं हूँ। मैं तो सभी का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता हूँ। माया आकर दु:खी करती है। यह भी खेल है। अज्ञानकाल में मनुष्य समझते हैं कि भगवान ही दु:ख सुख देते हैं परन्तु बाप ईश्वर यह धन्धा नहीं करते हैं। यह तो कर्मो के अनुसार बना हुआ ड्रामा है, जो जैसा कर्म करता वैसा फल पाता है। इस समय श्रेष्ठ कर्म करने की बात है। 

    कर्म कूटने की बात नहीं। कोई बीमार होते हैं, देवाला मारते हैं तो कर्म कूटते हैं। तुम बच्चे कितने सौभाग्यशाली बनते हो, जो 21 जन्म कब कर्म नहीं कूटना पड़ेगा। कितना भारी फल है। तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। बाप और कोई भी बात में इन्टरफियर नहीं करते हैं। खाओ, पियो कुछ भी करो सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। तुम कहते हो हम पतित हैं तो बाप जो पावन बनने की युक्ति बताते हैं, उस पर चलो। सिर्फ याद की मेहनत है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। गुप्त मेहनत है। ज्ञान भी गुप्त है, मुरली चलाना तो प्रत्यक्ष है। परन्तु इस वाणी से तुम पावन नहीं बनेंगे। पावन याद से ही बनेंगे। तो बेहद के बाप को याद करो और मददगार भी बनना चाहिए। रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी खोलने का भी पुरूषार्थ करो। कोई अच्छी जगह हो तो जाकर भाषण करो। तुमको हाथ में पुस्तक नहीं लेना है। तुमको अन्दर सारा ज्ञान है, बाकी समझाने के लिए झाड़ त्रिमूर्ति, सृष्टि चक्र का सबको राज समझाना है। बाप कहते हैं-मैं ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचता हूँ। ब्राह्मणों की एम आब्जेक्ट, विष्णु खड़ा है। बनाने वाला टीचर वह है निराकार। गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना... कल्प पहले भी ऐसे ही चित्र बनवाये थे। देखो साइंस आदि से कितने मिसाइल्स बनाते हैं। तुम बच्चों को पुरूषोत्तम बनने में भी मेहनत लगती है क्योंकि जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर है। सेकण्ड में सगाई हुई फिर आत्माओं को बाप को याद करना है, जो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायें। बाप कहते हैं- मन्मनाभव, तुम कर्मयोगी हो। याद का चार्ट रखना चाहिए। तुम्हारी लड़ाई माया के साथ है। बहुत कड़ी लड़ाई है। तुम कोशिश करेंगे याद में रहने की, माया उड़ा देगी। 

    ज्ञान में कोई अड़चन नहीं। आत्मा में 84 जन्मों के संस्कार भरे हुए हैं। ये अनादि बना-बनाया ड्रामा है। यह चक्र फिरता ही रहता है। बन्द होने का नहीं है। सृष्टि रची ही क्यों , यह सवाल नहीं उठता। आत्मा कैसे बदलेगी। नई आत्मा कहाँ से आती नहीं है। जो आत्माएं हैं वही हैं, कम जास्ती हो नहीं सकती। एक्टर सब पूरे हैं। तुम बेहद के एक्टर्स हो, तुम जो कुछ देखते हो उतने एक्टर ड्रामा में हैं, इतने फिर होंगे। मोक्ष कोई पाता नहीं। मनुष्य आवागमन के चक्र से छूटना चाहते हैं, परन्तु छूट नहीं सकते हैं। जो पार्ट बजाने आते हैं, उनको फिर आना है। बाप कहते हैं-मुझे भी इस पतित दुनिया में आना और जाना पड़ता है। कल्प-कल्प मैं आता हूँ। जब मुझे ही आना पड़ता है तो बच्चों का बन्द कैसे हो सकता है। तुम 84 बार शरीर में आते हो, मैं एक ही बार आता हूँ। मेरा आना जाना बड़ा वन्डरफुल है, तब गाते हैं तुम्हरी गत मत तुम ही जानो... सद्गति करने के लिए जो मत है वह तुम ही जानो और न जाने कोई। वह गाते हैं तुम प्रैक्टिकल में हो। मूल बात है याद की, फिर अन्धों की लाठी बनना है। ये है पुरूषोत्तम युग। यह 5000 वर्ष के बाद आता है। पुरूषोत्तम मास तीन वर्ष के बाद आता है। वह सब है भक्ति मार्ग। उनके जन्त्र-मन्त्र की ढेर पुस्तके हैं। यहाँ तो वह बात नहीं है। भक्ति न करने वालों को इरिलीजस कहते हैं। तो उन्हों को राजी करने के लिए निमित्त कुछ करना भी पड़ता है। बाप समझाते हैं मीठे बच्चे, कभी डिससर्विस करने का पुरूषार्थ नहीं करना। कोई ट्रेटर बन जाते हैं तो उनको कहेंगे अजामिल। 

    अजामिल, सूरदास आदि की कितनी कथायें हैं। यह सब है भक्ति मार्ग। उनसे भी जास्ती पाप आत्मा वह है जो यहाँ आकर, मेरा बनकर मुझे फारकती दे देते हैं। मेरी निंदा कराते हैं, उनके लिए फिर ट्रिब्युनल बैठती है। प्रतिज्ञा कर फिर डिससर्विस करेंगे तो कड़ी सजा मिलेगी। पद ऊंचा है तो फिर भूल की भी कड़ी सजा है इसलिए कोई भी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए। गाया हुआ है सतगुरू का निंदक ठौर न पाये अर्थात् एम आब्जेक्ट पा न सके, नर से नारायण बनने का। गुरूओं से तुम पूछ सकते हो कि तुम कहते हो गुरू का निंदक... वह कौन सा ठौर है? वह ठौर तो बता नहीं सकते। बाप की पाग उन्होंने अपने ऊपर रख दी है। टीचर कहते हैं अगर पूरा पढ़ेंगे नहीं तो पद भी ऊंचा नहीं पायेंगे। पावन सो देवी-देवता बनना है। यहाँ कोई पावन होते नहीं। अभी सबको पावन बनना है। राज्य भाग्य 21 जन्मों के लिए मिलता है तो यह सिर्फ अन्तिम जन्म पावन बनना है, कितनी बड़ी प्राप्ति है। प्राप्ति न होती तो ऐसा पुरूषार्थ करते क्या? परन्तु माया ऐसी है जो ऊंच प्राप्ति में भी विघ्न डालती है और गिरा देती है। अहो मम् माया... अच्छा– 

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 


    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) कोई भी डिस-सर्विस का कार्य नहीं करना है। कोई ऐसा भी कर्म न हो जिससे बाप की निंदा हो। अवज्ञाओं से बचना है, पुरूषोत्तम बनना है।

    2) माया के तूफानों से डरना नहीं पावन बनने के लिए याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।

    वरदान:

    स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले, देह-अभिमान मुक्त भव

    पढ़ाई का मूल लक्ष्य है-देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना। इस देह-अभिमान से न्यारे अथवा मुक्त होने की विधि ही है– सदा स्वमान में स्थित रहना। संगमयुग के और भविष्य के जो अनेक प्रकार के स्वमान हैं उनमें किसी एक भी स्वमान में स्थित रहने से देह-अभिमान मिटता जायेगा। जो स्वमान में स्थित रहता है उन्हें स्वत: मान प्राप्त होता है। सदा स्वमान में रहने वाले ही विश्व महाराजन बनते हैं और विश्व उन्हें सम्मान देती है।

    स्लोगन:

    जैसा समय वैसा अपने को मोल्ड कर लेना-यही है रीयल गोल्ड बनना।



    ***OM SHANTI***