BK Murli Hindi 13 November 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 13 November 2016

    *13-11-16  प्रात:मुरली         ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“    रिवाइज:30-11-99  मधुबन*


    *"पास विद आनर बनने के लिए सर्व खजानों के खाते को जमा कर सम्पन्न बनो''*


    *आज बापदादा किस सभा को देख रहे हैं? आज की सभा में हर एक बच्चा हाइएस्ट और अविनाशी खजानों से रिचेस्ट है। दुनिया वाले कितने भी रिचेस्ट हो लेकिन एक जन्म के लिए रिचेस्ट हैं। एक जन्म भी रिचेस्ट रहेगा या नहीं, यह भी निश्चित नहीं है। चाहे कितना भी रिचेस्ट इन वर्ल्ड हो परन्तु एक जन्म के लिए, और आप हो जो निश्चय और नशे से कहते हो कि हम अनेक जन्म रिचेस्ट हैं क्योंकि आप सभी अविनाशी खजानों से सम्पन्न हो। आप सभी जानते हो कि हम इस समय के पुरूषार्थ से एक दिन में भी बहुत कमाई करने वाले हैं। जानते हो कि एक दिन में आप कितनी कमाई करते हो? हिसाब जानते हो ना! गाया हुआ है, अनुभव है - एक कदम में पदम। तो एक दिन में बाप द्वारा, बाप की नॉलेज द्वारा, याद द्वारा हर कदम में पदम जमा होते हैं। तो सारे दिन में जितने भी कदम याद में उठाते हो उतने पदम जमा करते हो। तो ऐसा कमाई करने वाला, खजाना जमा करने वाला विश्व में कोई होगा! वा है? विश्व में चक्कर लगाकर आओ, सिवाए आपके इतना जमा कोई कर नहीं सकता इसलिए बाप कहते हैं इस श्रेष्ठ स्मृति में रहो कि हम आत्माओं का भाग्य परम आत्मा द्वारा ऐसा श्रेष्ठ बना है।*

    *अपने खजाने तो जानते हो ना!* *समय के खजाने को भी जानते हो कि इस संगमयुग का समय कितना श्रेष्ठ है, जो प्राप्ति चाहिए वह अधिकारी बन बाप से ले रहे हो। सर्व अधिकार प्राप्त कर लिया है ना? एक-एक श्रेष्ठ संकल्प कितना बड़ा खजाना है, समय भी बड़ा खजाना है, संकल्प भी बड़ा खजाना है। सर्व शक्तियां बड़े से बड़ा खजाना है। एक-एक ज्ञान रत्न कितना बड़ा खजाना है। हर एक गुण कितना बड़ा खजाना है। दुनिया वाले भी मानते हैं कि श्वांसों श्वांस याद से श्वांस सफल होते हैं। तो आप सबके श्वांस सफलता स्वरूप हैं, व्यर्थ नहीं। हर श्वांस में सफलता का अधिकार समाया हुआ है। बापदादा ने सभी बच्चों को सर्व खजाने एक जैसे ही दिये हैं। सर्व भी दिये हैं और समान दिये हैं। कोई को एक गुणा, कोई को दस गुणा, कोई को 100 गुणा... ऐसे नहीं दिया है। देने वाले दाता ने एक-एक बच्चे को सर्व खजाने ब्राह्मण बनते ही समान रूप में दिया है।*

    *लेकिन खजाने को कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं, यह हर एक के ऊपर है। हर एक को चेक करना है कि हम सारे दिन में कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं? चेक करते हो? चेक जरूर करना है क्योंकि एक जन्म के लिए नहीं है लेकिन हर जन्म के लिए है। अनेक जन्म के लिए जमा चाहिए। जमा करने की विधि जानते हो? बहुत सहज है। सिर्फ बिन्दी लगाते जाओ। बिन्दी याद है तो जमा होता है। जैसे स्थूल खजाने में भी एक के साथ बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना! ऐसे ही आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो बीत चुका वह भी फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी। अगर हर खजाने को बिन्दी रूप से याद करो तो जमा होता जाता।* *अनुभव है ना! बिन्दी लगाई और व्यर्थ से जमा होता जाता है। बिन्दी लगाने आती है? कई बार ऐसे होता है जो कोशिश करते हो बिन्दी लगाने की लेकिन बिन्दी के बजाए लम्बी लाइन हो जाती है, बिन्दी के बजाए क्वेश्चनमार्क हो जाता है, आश्चर्य की लाइन लग जाती है। तो जमा का खाता बढ़ाने की विधि है बिन्दी और गँवाने का रास्ता है लम्बी लाइन लगाना, क्वेश्चनमार्क लगाना, आश्चर्य की मात्रा लगाना। सहज क्या है? बिन्दी है ना! तो विधि बहुत सहज है - स्वमान और बाप की याद तथा व्यर्थ को फुलस्टॉप लगाना।*

    *बापदादा ने पहले भी कहा है - रो॰ज अमृतवेले अपने आपको तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाओ तो एक खजाना भी व्यर्थ नहीं जायेगा। हर समय, हर खजाना जमा होता जायेगा। बापदादा ने सभी बच्चों के हर खजाने के जमा का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा? अभी तक भी जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना नहीं है। समय, संकल्प, बोल व्यर्थ भी जाता है। चलते-चलते कभी समय का महत्व इमर्ज रूप में कम होता है। अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो। सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण। ऐसे ही संकल्प भी बुरे नहीं चलते लेकिन व्यर्थ चले जाते हैं। एक घण्टे की चेकिंग करो, हर घण्टे में समय या संकल्प कितने साधारण जाते हैं? जमा नहीं होते हैं। फिर बापदादा इशारा भी देता है, तो बापदादा को भी दिलासे बहुत देते हैं। बाबा, ऐसे थोड़ा सा संकल्प है बस। बाकी नहीं, संकल्प में थोड़ा चलता है। सम्पूर्ण हो जायेंगे। ठीक हो जायेंगे। अभी अन्त थोड़ेही आया है, थोड़ा समय तो पड़ा है। समय पर सम्पन्न हो जायेंगे। लेकिन बापदादा ने बार-बार कह दिया है कि जमा बहुत समय का चाहिए। ऐसे नहीं जमा का खाता अन्त में सम्पन्न करेंगे, समय आने पर बन जायेंगे! बहुत समय का जमा हुआ बहुत समय चलता है। वर्सा लेने में तो सभी कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। अगर हाथ उठवायेंगे कि त्रेतायुगी बनेंगे? तो कोई नहीं हाथ उठाता। और लक्ष्मी-नारायण बनेंगे? तो सभी हाथ उठाते। अगर बहुत समय का जमा का खाता होगा तो पूरा वर्सा मिलेगा।

    अगर थोड़ा सा जमा होगा तो फुल वर्सा कैसे मिलेगा? इसलिए सर्व खजाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो। हो जायेगा, आ जायेंगे....गे गे नहीं करो। ``करना ही है'' - यह है दृढ़ता। अमृतवेले जब बैठते हैं, अच्छी स्थिति में बैठते हैं तो दिल ही दिल में बहुत वायदे करते हैं - यह करेंगे, यह करेंगे। कमाल करके दिखायेंगे... यह तो अच्छी बात है। श्रेष्ठ संकल्प करते हैं लेकिन बापदादा कहते हैं इन सब वायदों को कर्म में लाओ। सिर्फ वायदा नहीं करो लेकिन जो भी वायदे करते हो वह मन-वचन और कर्म में लाओ। बच्चे संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं, बापदादा उस समय खुश होते हैं क्योंकि हिम्मत तो रखते हैं ना। यह बनेंगे, यह करेंगे... हिम्मत बहुत अच्छी रखते हैं। तो हिम्मत पर बापदादा खुश होते हैं। परन्तु जब कर्म में आना होता है तो कभी-कभी हो जाता है। वायदा करना बहुत सहज है। लेकिन कर्म में करना माना वायदा निभाना। वायदे करने वाले तो बहुत हैं लेकिन निभाने में नम्बरवार हो जाते हैं। तो संकल्प और कर्म को, प्लैन और प्रैक्टिकल दोनों को समान बनाओ। बना सकते हो ना? बिजनेस वाले आये हैं। बिजनेस वाले तो बिजनेस करना जानते हैं ना! जमा करना जानते हैं ना! और इन्जीनियर व वैज्ञानिक भी प्रैक्टिकल में काम करते हैं। और जो रूरल (ग्रामीण प्रभाग) है, बापदादा उन्हों को रूलर कहते हैं, क्योंकि अगर यह सेवा नहीं करते तो कोई नहीं चल पाते। तो तीनों ही ाविंग जो आये हैं वह कर्म करने वाले हैं।

    सिर्फ कहने वाले नहीं, करने वाले हैं। तो सभी वायदे कर्म में निभाने वाली आत्माये हो ना! या सिर्फ वायदा करने वाले हो? वायदे के समय तो बापदादा को हिम्मत दिखाकर खुश कर देते हैं। बापदादा के पास हर एक बच्चे के वायदों का फाइल है। वहाँ (वतन में) वायदों का फाइल रखने के लिए अलमारी वा जगह की तो बात है नहीं। कभी-कभी बापदादा अपनी अलौकिक टी.वी. अचानक खोलते हैं। सदा नहीं खोलते हैं, कभी-कभी खोलते हैं तो सब सुनने में आता है। जो आपस में बोलचाल करते हैं, वह भी सुनते हैं। इसीलिए बापदादा कहते हैं - व्यर्थ को जमा के खाते में जमा करो।

    ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। ब्राह्मण जीवन का महत्व बहुत बड़ा है।प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े से बड़ा पदमगुणा भाग्य है इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खजाने का महत्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। अगर आपको कोई टापिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते हो? एक घण्टा कर सकते हो? टीचर्स बोलो।* *जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्व सुनाते हो, महत्व जानते बहुत अच्छा हो। बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे - वह कभी कम हो जाता है, कभी ज्यादा। तो अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो। हाँ मैं तो हो गई, हो गया... नहीं।* *प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो। निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है रूहानी नशा। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा।*

    *तो आज बापदादा ने जमा का खाता देखा इसलिए आज विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं कि समय की समाप्ति अचानक होनी है। यह नहीं सोचो कि मालूम तो पड़ता रहेगा, समय पर ठीक हो जायेंगे। जो समय का आधार लेता है, समय ठीक कर देगा, या समय पर हो जायेगा.... उनका टीचर कौन? समय या स्वयं परम आत्मा? परम आत्मा से सम्पन्न नहीं बन सके और समय सम्पन्न बनायेगा, तो इसको क्या कहेंगे? समय आपका मास्टर है या परमात्मा आपका शिक्षक है? तो ड्रामा अनुसार अगर समय आपको सिखायेगा या समय के आधार पर परिवर्तन होगा तो बापदादा जानते हैं कि प्रालब्ध भी समय पर मिलेगी क्योंकि समय टीचर है। समय आपका इन्तजार कर रहा है, आप समय का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप मास्टर रचता हो। तो रचता का इन्तजार रचना करे, आप मास्टर रचता समय का इन्तजार नहीं करो। और मुश्किल है भी क्या? सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो। वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है अपना सब बोझ बाप के हवाले करो। 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मजबूर हो जाते हैं और बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है। मास्टर सर्वशक्तिमान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज करो कि हम सहज योगी नहीं हैं। कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस याद करना है ना। और पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल ची॰ज को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है? कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब-किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं आप ब्राह्मणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है विश्व परिवर्तन करेंगे। तो जो विश्व परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?*

    *तो आज क्या करेंगे? जमा का खाता बढ़ाओ। तो जो कहते हो सहज योगी, वह अनुभव करेंगे। कभी मुश्किल कभी सहज, इसमें मजा नहीं है। ब्राह्मण जीवन है मजे की। संगमयुग है मजे का युग। बोझ उठाने का युग नहीं है। बोझ उतारने का युग है। तो चेक करो, अपने तकदीर की तस्वीर नॉलेज के आइने में अच्छी तरह से देखो। समझा। अच्छा।*

    *चारों ओर के सर्व खजानों के मालिक बच्चों को, सदा मुश्किल को सेकण्ड में परिवर्तन करने वाले सदा सहजयोगी, सदा संकल्प, समय, बोल, कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले, सदा बचत का खाता बढ़ाने वाले, सदा मन के मालिक, मन-बुद्धि- संस्कार को ऑर्डर में चलाने वाले, ऐसे स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, चाहे देश में हैं चाहे विदेश में हैं लेकिन दिल से दूर नहीं हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।*

    *वरदान:-  

    सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन ऊंची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बन्धन भव* 

    *जो बच्चे जितना निर्बन्धन हैं उतना ऊंची स्टेज पर स्थित रह सकते हैं, इसलिए चेक करो कि मन्सा- वाचा व कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी धागा जुटा हुआ तो नहीं है! एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये। अपनी देह भी याद आई तो देह के साथ देह के संबंध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। मैं निर्बन्धन हूँ-इस वरदान को स्मृति में रख सारी दुनिया को माया की जाल से मुक्त करने की सेवा करो।*

    *स्लोगन:-   

    देही-अभिमानी स्थिति द्वारा तन और मन की हलचल को समाप्त करने वाले ही अचल रहते हैं।*



    ***Om Shanti***