Brahma Kumaris Murli In Hindi 31 May 2015
31-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:10-12-79 मधुबन
पुण्य आत्माओं के लक्षण
आज बापदादा अपने सर्वश्रेष्ठ महान पुण्य-आत्माओं को देख रहे हैं –
1. पुण्यात्मा अर्थात् हर संकल्प और हर सेकेण्ड अपने और अन्य आत्माओं के प्रति पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले।
2. पुण्य आत्मा अर्थात् सदा कोई-न-कोई खजाने का महादान कर पुण्य कमाने वाले।
3. पुण्य आत्मा अर्थात् सदा उनके नयनों में बाप-दादा की मूर्त और सूरत में बाप-दादा की सीरत, स्मृति में बाप- समान समर्थ, मुख में सदा ज्ञान रत्न अर्थात् सदा अमूल्य बोल, हर कर्म में बाप-समान चरित्र, सदा बाप-समान विश्व-कल्याणकारी वृत्ति, हर सेकेण्ड हर संकल्प के कल्याणकारी, रहमदिल किरणों द्वारा चारों ओर के दु:ख अशान्ति के अन्धकार को दूर करने वाले।
4. पुण्य आत्मा अपनी पुण्य की पूंजी से अनेक गरीबों को साहूकार बनाने वाले। ज्ञान-स्वरूप पुण्य आत्मा के एक पुण्य में भी बहुत ताकत है क्योंकि डायरेक्ट परमात्म-पावर के आधार पर पुण्य आत्मा हैं।
जैसे द्वापर के इनडायरेक्ट दान-पुण्य करने वाले सकामी अल्पकाल के राजायें देखे व सुने होंगे, उन राजाओं में भी राज्य सत्ता की फुल पावर थी। जो आर्डर करें, कोई उसको बदल नहीं सकता। चाहे किसी को क्या भी बना दें। किसी को मालामाल बना दें, किसी को फाँसी पर चढ़ा दें, दोनों अथॉरिटी थी। यह है इनडायरेक्ट दान-पुण्य की सत्ता जो द्वापर के आदि में यथार्थ रूप में यूज करते थे। पीछे धीरे-धीरे वही राज्य सत्ता अयथार्थ रूप में हो गई। इस कारण आखिर अन्त में समाप्त हो गई। लेकिन जैसे इनडायरेक्ट राज्य सत्ता में भी इतनी शक्ति थी जो अपनी प्रजा को, परिवार को अल्पकाल के लिए सुखी वा शान्त बना देते थे। ऐसे ही आप पुण्य आत्माओं व महादानियों को भी डायरेक्ट बाप द्वारा प्रकृति-जीत, मायाजीत की विशेष सत्ता मिली हुई है तो आप ऑलमाइटी सत्ता वाले हो। अपनी ऑलमाइटी सत्ता के आधार पर अर्थात् पुण्य की पूंजी के आधार पर, शुद्ध संकल्प के आधार से, किसी भी आत्मा के प्रति जो चाहो, वह उसको बना सकते हो। आपके एक संकल्प में इतनी शक्ति है जो बाप से सम्बन्ध जोड़ मालामाल बना सकते हो। उनका हुक्म और आपका संकल्प। वह अपने हुक्म के आधार से जो चाहें वह कर सकते हैं - ऐसे आप एक संकल्प के आधार से आत्माओं को जितना चाहे उतना ऊंचा उठा सकते हो क्योंकि डायरेक्ट परमात्म-अधिकार प्राप्त हुआ है - ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो? लेकिन अब प्रैक्टिकल में क्यों नहीं होता? अधिकार है, आलमाइटी सत्ता भी है फिर उसको यूज क्यों नहीं कर पाते? कारण क्या है? यह श्रेष्ठ सेवा अब तक शुरू क्यों नहीं हुई है? संकल्प शक्ति का मिस यूज नहीं करो, यूज करो सारी हिस्ट्री में कोई ने अगर अपनी सत्ता को यथार्थ यूज नहीं किया है तो जरूर मिसयूज किया है। राजाओं ने राजाई गँवाई, नेताओं ने अपनी कुर्सा गँवाई, डिक्टेटर्स अपनी सत्ता खो बैठे - कारण? अपने निजी कार्य को छोड़ ऐश-आराम में व्यस्त हो जाते हैं। कोई-न-कोई बात की तरफ स्वयं अधीन होते हैं, इसलिए अधिकार छूट जाता है। वशीभूत होते हैं, इसलिए अपना अधिकार मिसयू॰ज कर लेते। ऐसे बाप द्वारा आप पुण्य आत्माओं को जो हर सेकेण्ड और हर संकल्प में सत्ता मिली हुई है, अथॉरिटी मिली हुई है, सर्व अधिकार मिले हुए हैं उसको यथार्थ रीति से सत्ता की वैल्यू को जानते हुए उसी प्रमाण यूज नहीं करते। छोटी-छोटी बातों में अपने अलबेलेपन के ऐश-आराम में या व्यर्थ सोचने और बोलने में मिस यूज करने से जमा हुई पुण्य की पूंजी व प्राप्त हुई ईश्वरीय सत्ता को जैसे यूज करना चाहिए वैसे नहीं कर पाते। नहीं तो आपका एक संकल्प ही बहुत शक्तिशाली है। श्रेष्ठ ब्राह्मणों का संकल्प आत्मा के तकदीर की लकीर खींचने वाला साधन है। आपका एक संकल्प एक स्विच है जिसको ऑन कर सेकेण्ड में अन्धकार मिटा सकते हो।
5. पुण्य आत्माओं का संकल्प एक रूहानी चुम्बक है जो आत्मा को रूहानियत की तरफ आकर्षित करने वाला है।
6. पुण्य आत्मा का संकल्प लाइट हाउस है जो भटके हुए को सही मंजल दिखाने वाला है।
7. पुण्य आत्मा का संकल्प अति शीतल स्वरूप है, जो विकारों की आग में जली हुई आत्मा को शीतल बनाने वाला है।
8. पुण्य आत्मा का संकल्प ऐसा श्रेष्ठ शास्त्र है जो अनेक बन्धनों की परतन्त्र आत्मा को स्वतन्त्र बनाने वाला है।
9. पुण्य आत्मा के संकल्प में ऐसी विशेष शक्ति है जैसे जन्त्र-मन्त्र द्वारा असम्भव बात को सम्भव कर लेते हैं वैसे संकल्प की शक्ति द्वारा असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। वशीकरण महामन्त्र द्वारा वशीभूत आत्मा को फायरफलाई मुआफिक उड़ा सकते हो।
10. जैसे आजकल के यन्त्रों द्वारा रेगिस्तान को भी हराभरा कर देते हैं, पहाड़ियों पर भी फूल उगा देते हैं। क्या आप पुण्य आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा ना-उम्मींदवार, उम्मीदवार नहीं बन सकता?
ऐसे हर सेकेण्ड पुण्य की पूंजी जमा करो। हर सेकेण्ड हर संकल्प की वैल्यू को जान, संकल्प और सेकेण्ड को यूज करो। जो कार्य आज के अनेक पदमपति नहीं कर सकते वह आपका एक संकल्प आत्मा को पदमापदमपति बना सकता है। तो आपके संकल्प की शक्ति कितनी श्रेष्ठ है। चाहे जमा करो और कराओ, चाहे व्यर्थ गँवाओ, यह आपके ऊपर है। गँवाने वाले को पश्चाताप करना पड़ेगा। जमा करने वाले सर्व प्राप्तियों के झूले में झूलेंगे। कभी सुख के झूले में, कभी शान्ति के झूले में, कभी आनन्द के झूले में। और गँवाने वाले झूले में झूलने वालों को देख अपनी झोली को देखते रहेंगे। आप सब तो झूलने वाले हो ना।
राजस्थान और यू.पी.वाले आये हैं। राजस्थान वाले तो राज्य सत्ता अर्थात् अधिकार की सत्ता, ईश्वरीय सत्ता द्वारा सदा अपने राजस्थान को रेगिस्तान से सब्ज बनाने में, रेगिस्तान को गुलिस्तान बनाने में, जंगल को फूलों का बगीचा बनाने में होशियार हैं। राजस्थान में मुख्य स्थान मुख्य केन्द्र है। तो जहाँ मुख्य केन्द्र है वह सबमें मुख्य है ना। राजस्थान को तो नाज होना चाहिए, नशा होना चाहिए। राजस्थान से नये-नये सेवा के प्लैन्स निकलने चाहिए। राजस्थान को कोई नई इन्वेन्शन करनी चाहिए। अभी की नहीं है। राजस्थान की धरती को परिवर्तन करना पड़ेगा। उसके लिए बार-बार मेहनत का जल डालना पड़ेगा। लगातार का खाद डालना पड़ेगा। अभी हल्का खाद डाला है। अच्छा, दूसरे दिन फिर यू.पी. की महानता सुनायेंगे। फॉरेन तो अब भी फौरन करने वाले हैं। सोचा और किया। यू.पी. की महानता की माला भी वर्णन करेंगे। अभी तैयार करना फिर दूसरे दिन माला पहनायेंगे।
ऐसे श्रेष्ठ संकल्प की विधि द्वारा आत्माओं की सद्गति करने वाले, ईश्वरीय सत्ता द्वारा आत्माओं को हर विपदा से छुड़ाने वाले, सदा पुण्य की पूंजी जमा करने और कराने वाले, सदा विश्व-कल्याण के दृढ़ संकल्प धारण करने वाले, ऐसे सर्व श्रेष्ठ पुण्य आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के साथ -
टीचर्स तो सदा चढ़ती कला का अनुभव करती चल रही हो ना? टीचर्स की विशेषता - अनुभवी मूर्त बनना। टीचर अर्थात् सुनाने वाली नहीं लेकिन टीचर अर्थात् कहने के साथ अनुभव कराने वाली। तो सुनाना और स्वरूप में अनुभव कराना - यह है टीचर्स की विशेषता। सुनाने वाले या भाषण करने वाले, क्लासेज कराने वाले तो द्वापर से बहुत बड़े-बड़े नामीग्रामी बने लेकिन यहाँ ज्ञान-मार्ग में नामीग्रामी कौन बनता है? भाषण वाले? जो सुनाने के साथ-साथ अनुभव करायें। टीचर्स को विशेष अटेन्शन में यही सेवा हो कि मुझे, सदा जहाँ भी हैं वहाँ का और उसके साथ बेहद का वायुमण्डल वायब्रेशन्स सदा शुद्ध बनाना है। जैसे कोई हद की खुशबू वातावरण को कितना बदल लेती है, ऐसे टीचर्स के गुणों की धारणा की खुशबु, शक्ति की खुशबु, वायुमण्डल व वायब्रेशन्स को सदा शक्तिशाली बनाये। टीचर कभी यह नहीं कह सकती कि वायुमण्डल ऐसा है, इनके वायब्रेशन्स के कारण मेरा पुरूषार्थ भी ऐसा हो गया। टीचर्स अर्थात् परिवर्तन करने वाली, न कि स्वयं परिवर्तन होने वाली। जो परिवर्तन करने वाला होता है वह कभी किसी के प्रभाव में स्वयं परिवार्तित नहीं होता है। तो टीचर्स की विशेषता है - वायुमण्डल को पावरफुल बनाना, स्वयं शक्तिशाली बन कमजोरों को शक्ति का सहयोग देना। दिलशिकस्त का उमंग-उल्लास बढ़ाना। तो ऐसी टीचर्स हो ना? यह है टीचर्स का कर्तव्य वा ड्युटी। ऐसे स्वयं सम्पन्न हो जो औरों को भी सम्पन्न बना सकें। अगर कोई भी शक्ति की कमी होगी तो दूसरे भी उसी बात में कमजोर होंगे क्योंकि निमित्त हैं ना। टीचर्स को सदा अलर्ट और एवररेडी होना चाहिए। स्थूल वा सूक्ष्म आलस्य का नाम-मात्र भी न हो। पुरूषार्थ का भी आलस्य होता है और स्थूल कर्म में भी आलस्य होता है। पुरूषार्थ में दिलशिकस्त होते हैं तो आलस्य आ जाता है। क्या करें, इतना ही हो सकता है, ज्यादा नहीं हो सकता। हिम्मत नहीं है, चल तो रहे हैं, कर तो रहे हैं। पुरूषार्थ की थकावट भी आलस्य की निशानी है। आलस्य वाले जल्दी थकते हैं, उमंग वाले अथक होते हैं। तो टीचर्स अर्थात् न स्वयं पुरूषार्थ में थकने वाली न औरों को पुरूषार्थ में थकने दें। तो ऑलराउन्डर भी हों और अलर्ट भी हों।हर कार्य में सम्पन्न। कभी-कभी टीचर्स समझती हैं कि क्लास कराना, इन्टरनल कार्य करना हमारा काम है और स्थूल सेवा, वह दूसरों का काम है, लेकिन नहीं। स्थूल कार्य भी इन्टरनल कार्य की सबजेक्ट है। यह भी पढ़ाई की सबजेक्ट है, तो इसको हल्की बात नहीं समझो। अगर कर्मणा में मार्क्स कम होंगी तो भी पास विद ऑनर नहीं बन सकेंगी। बैलेन्स होना चाहिए। इसको सेवा न समझना - यह भी राँग है। इन्टरनल सेवा का यह भी एक भाग है। अगर प्यार से योगयुक्त होकर भोजन न बनाओ तो अन्न का मन पर प्रभाव कैसे होगा। स्थूल कार्य नहीं करेंगे तो कर्मणा की मार्क्स कैसे जमा होगी। तो टीचर्स अर्थात् स्पीकर नहीं, क्लास कराने वाली, कोर्स कराने वाली नहीं, जैसा समय जैसी सबजेक्ट उसमें ऐसे ही रूचि पूर्वक सेवा में सफलता प्राप्त करें, इसको कहा जाता है - ऑलराउन्डर। ऐसे हो ना कि इन्टरनल वाली और हैं, एक्सटर्नल वाली और हैं। दोनों का ही आपस में सम्बन्ध है।
टीचर्स को त्याग और तपस्या तो सदा ही याद है ना? किसी भी व्यक्ति या वैभव के आकर्षण में न आयें। नहीं तो यह भी एक बन्धन हो जाता है - कर्मातीत बनने में। तो टीचर्स अपने आपके पुरूषार्थ में सन्तुष्ट है? चढ़ती कला की महसूसता होती है? सबसे सन्तुष्ट हो सभी? अपने पुरूषार्थ से, सेवा से फिर साथियों में, सबसे सन्तुष्ट? सबके सर्टिफिकेट होने चाहिए ना? तो सभी सर्टिफिकेट हैं - क्या समझती हो? अगर आप सच्चाई से और सफाई से सन्तुष्ट हैं तो बाप भी सन्तुष्ट है। एक होता है वैसे ही कहना कि सन्तुष्ट हैं, एक होता है सच्चाई-सफाई से कहना कि सन्तुष्ट हैं। सदा सन्तुष्ट! यहाँ आई हो, कोई भी कमी हो तो अपने प्रति या सेवा के प्रति, तो जो निमित्त बने हुए हैं उनसे लेन-देन करना। आगे के लिए चढ़ती कला करके ही जाना। कमी को भरने और स्वयं को हल्का करने के लिए ही तो आते हो। कोई भी छोटी-सी बात भी हो जो पुरूषार्थ की स्पीड में रूकावट डालने के निमित्त हो तो उसको खत्म करके जाना। अच्छा।
वरदान:-
मन-बुद्धि को मनमत से फ्री कर सूक्ष्मवतन का अनुभव करने वाले डबल लाइट भव!
सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात् मन और बुद्धि को सदा मनमत से खाली रखो तो यहाँ रहते भी वतन की सभी सीन-सीनरियां ऐसे स्पष्ट अनुभव करेंगे जैसे दुनिया की कोई भी सीन स्पष्ट दिखाई देती है। इस अनुभूति के लिए कोई भी बोझ अपने ऊपर नहीं रखो, सब बोझ बाप को देकर डबल लाइट बनो। मन- बुद्धि से सदा शुद्ध संकल्प का भोजन करो। कभी भी व्यर्थ संकल्प व विकल्प का अशुद्ध भोजन न करो तो बोझ से हल्के होकर ऊंची स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।
स्लोगन:-
व्यर्थ को फुल स्टॉप दो और शुभ भावना का स्टॉक फुल करो।
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