Brahma Kumaris BK Murli Today in Hindi 1 January 2016
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Brahma Kumaris BK Murli Today in Hindi 1 January 2016
01-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलने चाहिए, तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित रहना चाहिए”
प्रश्न:
जिन बच्चों ने ब्राह्मण जीवन में ज्ञान की धारणा की है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
1- उनकी चलन देवताओं मिसल होगी, उनमें दैवीगुणों की धारणा होगी। 2- उन्हें ज्ञान का विचार सागर मंथन करने का अभ्यास होगा। वे कभी आसुरी बातों का अर्थात् किचड़े का मंथन नहीं करेंगे। 3- उनके जीवन से गाली देना और ग्लानी करना बन्द हो जाता है। 4- उनका मुखड़ा सदा हर्षित रहता है।
Brahma Kumaris BK Murli Today in Hindi 1 January 2016
ओम् शान्ति।
Brahma Kumaris BK Murli Today in Hindi 1 January 2016बाप बैठ समझाते हैं ज्ञान और भक्ति के ऊपर। यह तो बच्चे समझ गये हैं भक्ति से सद्गति नहीं होती है और सतयुग में भक्ति होती नहीं। ज्ञान भी सतयुग में मिलता नहीं। कृष्ण न भक्ति करते हैं, न ज्ञान की मुरली बजाते हैं। मुरली माना ही ज्ञान देना। गायन भी है ना मुरली में जादू। तो जरूर कोई जादू होगा ना! सिर्फ मुरली बजाना, वह तो कॉमन फकीर लोग भी बजाते रहते हैं। इस मुरली में ज्ञान का जादू है। अज्ञान को जादू तो नहीं कहेंगे। मुरली को जादू कहते हैं। मनुष्य से देवता बनते हैं ज्ञान से। जब सतयुग है तो इस ज्ञान का वर्सा है। वहाँ भक्ति होती नहीं। भक्ति होती है द्वापर से, जबकि देवता से मनुष्य बन जाते हैं। मनुष्यों को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है। देवताओं की सृष्टि को पवित्र दुनिया कहा जाता है। अभी तुम देवता बन रहे हो। ज्ञान किसको कहा जाता है? एक तो स्वयं की वा बाप की पहचान और फिर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज को ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान से होती है सद्गति। फिर भक्ति शुरू होती है तो उतरती कला कहा जाता है क्योंकि भक्ति को रात, ज्ञान को दिन कहा जाता है। यह तो कोई की भी बुद्धि में बैठ सकता है परन्तु दैवीगुण धारण नहीं करते हैं। दैवीगुण हों तो समझा जाए ज्ञान की धारणा है। ज्ञान की धारणा वालों की चलन देवता मिसल होती है। कम धारणा वाले की चलन मिक्स रहती है। धारणा नहीं तो गोया वह बच्चे ही नहीं। मनुष्य बाप की कितनी ग्लानि करते हैं। ब्राह्मण कुल में आते हैं तो गाली देना, ग्लानि करना बन्द हो जाता है। तुमको ज्ञान मिलता है, उस पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत मिलेगा। विचार सागर मंथन ही नहीं करते तो बाकी क्या मंथन होगा? आसुरी विचार। उनसे किचड़ा ही निकलेगा। अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेन्ट हो। जानते हो मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ रहे हैं। देवताएं यह पढ़ाई नहीं पढ़ायेंगे। देवताओं को कभी ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता है। ज्ञान का सागर तो एक को ही कहा जाता है। दैवीगुण भी ज्ञान से धारण होते हैं। यह ज्ञान जो तुम बच्चों को अभी मिलता है, यह सतयुग में नहीं होता। इन देवताओं में दैवीगुण हैं। तुम महिमा भी करते हो सर्वगुण सम्पन्न.... तो अभी तुमको ऐसा बनना है। अपने से पूछना चाहिए हमारे में सब दैवीगुण हैं या कोई आसुरी अवगुण हैं? अगर आसुरी अवगुण हैं तो उनको निकाल देना चाहिए तब ही देवता कहेंगे। नहीं तो कम दर्जा पा लेंगे।
Brahma Kumaris BK Murli Today in Hindi 1 January 2016
अभी तुम बच्चे दैवीगुण धारण करते हो। बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हो। इनको ही कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग जबकि तुम पुरूषोत्तम बन रहे हो, तो वातावरण भी बहुत अच्छा होना चाहिए। मुख से कोई भी छी-छी बात न निकले, नहीं तो कहा जायेगा यह कम दर्जे का है। बोलचाल और वातावरण से झट पता पड़ जाता है। तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित होना चाहिए। नहीं तो उनमें ज्ञान नहीं कहा जायेगा। मुख से सदैव रत्न निकलें। यह लक्ष्मी-नारायण देखो कितने हर्षितमुख हैं। इन्हों की आत्मा ने ज्ञान रत्न धारण किये थे। मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलते हैं। रत्न ही सुनते-सुनाते कितनी खुशी रहती है। ज्ञान रत्न जो अभी तुम लेते हो, फिर ये सभी हीरे-जवाहरात बन जाते हैं। 9 रत्नों की माला कोई हीरों-जवाहरातों की नहीं है। इन ज्ञान रत्नों की माला है। मनुष्य लोग फिर वह रत्न समझ अंगूठियां आदि पहन लेते हैं। इन ज्ञान रत्नों की माला पुरूषोत्तम संगमयुग पर पड़ती है। यह रत्न ही तुमको भविष्य 21 जन्मों के लिए मालामाल बनाते हैं। इनको कोई लूट न सके। यहाँ तुम यह हीरे जवाहरात पहनों तो झट कोई लूट ले जाए। तो अपने को बहुत-बहुत समझदार बनाना है। आसुरी अवगुणों को निकालना है। आसुरी अवगुणों से शक्ल ही ऐसी हो जाती है। क्रोध में लाल-लाल ताम्बे जैसी शक्ल हो जाती है। काम विकार वाले तो काले बन जाते हैं। तो बच्चों को हर बात में विचार सागर मंथन करना चाहिए। यह पढ़ाई है ही बहुत धन पाने की। वह पढ़ाई कोई रत्न थोड़ेही है। हाँ, नॉलेज पढ़कर बड़ा पोजीशन पा लेते हैं। तो पढ़ाई काम आई, न कि पैसा। पढ़ाई ही धन है। वह है हद का धन, फिर यह है बेहद का धन। हैं दोनों पढ़ाई। अभी तुम समझते हो बाप हमको पढ़ाकर विश्व का मालिक बना देते हैं। वह अल्पकाल क्षण भंगुर की पढ़ाई है एक जन्म के लिए। फिर दूसरे जन्म में नये सिर पढ़ना पड़े। वहाँ धन के लिए पढ़ाई की दरकार नहीं। वहाँ तो अभी के पुरूषार्थ से अकीचार (अथाह) धन मिल जाता है। धन अविनाशी बन जाता है। देवताओं के पास धन बहुत था फिर जब भक्ति मार्ग अर्थात् रावणराज्य में आये तो कितना था, कितने मन्दिर बनाये हुए हैं। फिर आकर मुसलमानों आदि ने धन लूटा। कितने धनवान थे! आज की पढ़ाई से इतना धनवान कोई बन नहीं सकेंगे। तुम अभी जानते हो हम इतनी ऊंची पढ़ाई पढ़ते हैं जिससे यह (देवी-देवता) बनते हैं। तो पढ़ाई से देखो मनुष्य क्या बन जाते हैं! गरीब से साहूकार। अभी भारत भी कितना गरीब है। साहूकारों को तो फुर्सत ही नहीं है। अपना अहंकार रहता है - मैं फलाना हूँ। इसमें अहंकार आदि मिट जाना चाहिए। हम आत्मा हैं, आत्मा के पास तो धन-दौलत, हीरे-जवाहरात आदि कुछ भी नहीं हैं। बाप भी कहते हैं देह सहित सब संबंध छोड़ो। आत्मा शरीर छोड़ती है तो साहूकारी आदि सब खत्म हो जाती है। जब नयेसिर पढ़कर फिर धन कमावे या तो दान-पुण्य अच्छा किया हो तो साहूकार के घर जन्म लेंगे। कहते हैं ना पास्ट के कर्मों का फल है। नॉलेज का दान किया होगा वा कॉलेज-धर्मशाला आदि बनाई है तो उसका फल मिलता है परन्तु अल्पकाल के लिए। यह दान-पुण्य भी यहाँ किया जाता है। सतयुग में नहीं किया जाता है। सतयुग में अच्छे ही कर्म होते हैं क्योंकि अभी का वर्सा मिला हुआ है। वहाँ कोई का भी विकर्म होता नहीं क्योंकि रावण ही नहीं है। गरीबों का भी विकर्म नहीं बनेगा। यहाँ तो साहूकारों के भी विकर्म बनते हैं। तब तो यह बीमारियां आदि दु:ख होते हैं। वहाँ विकार में जाते ही नहीं तो विकर्म कैसे बनेंगे? सारा मदार है कर्मों पर। यह माया रावण का राज्य है, जो मनुष्य विकारी बन जाते हैं। बाप आकर पढ़ाते हैं निर्विकारी बनाने लिए। बाप निर्विकारी बनाते हैं, माया फिर विकारी बना देती है। रामवंशी और रावणवंशी की युद्ध चलती है। तुम बाप के बच्चे हो, वह रावण के बच्चे हैं। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे माया से हार खा लेते हैं। माया बड़ी प्रबल है। फिर भी उम्मींद रखते हैं। अधम से अधम (बिल्कुल पतित) का भी उद्धार करना होता है ना। बाप को तो सारे विश्व का उद्धार करना होता है। बहुत गिरते हैं। एकदम चट खाते में अधम से अधम बन जाते हैं। ऐसे का भी बाप उद्धार करते हैं। अधम तो सब हैं रावण राज्य में, परन्तु बाप बचाते हैं। फिर भी गिरते रहते हैं, तो बहुत अधम बन जाते हैं। उनका फिर इतना चढ़ना नहीं होता है। वह अधमपना अन्दर खाता रहता है। जैसे तुम कहते हो अन्तकाल जो.. उनकी बुद्धि में वह अधमपना ही आता रहेगा। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, कल्प-कल्प तुम ही देवता बनते हो। जानवर बनेंगे क्या? मनुष्य ही बनते हैं और समझते हैं। इन लक्ष्मीनारा यण को भी नाक कान आदि हैं, मनुष्य हैं ना! परन्तु दैवी गुणों वाले इसलिए इनको देवता कहा जाता है। यह ऐसा सुन्दर देवता कैसे बनते हैं, फिर कैसे गिरते हैं, इस चक्र का तुमको मालूम पड़ गया है। जो विचार सागर मंथन करते होंगे उनको धारणा भी अच्छी होगी। विचार सागर मंथन ही नहीं करते तो बुद्धू बन पड़ते, मुरली चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगा। इस टॉपिक पर यह-यह समझाना है। ऑटोमेटिकली विचार सागर मंथन चलता है। फलाने आने वाले हैं उन्हों को भी हुल्लास से समझायेंगे। हो सकता है कुछ समझ जाए। भाग्य पर है। कोई झट निश्चय करेंगे, कोई नहीं करेंगे। उम्मींद रखी जाती है। अभी नहीं तो आगे चलकर समझेंगे जरूर। उम्मीद रखनी चाहिए ना! उम्मीद रखना माना सर्विस का शौक है। थकना नहीं है। भल कोई पढ़कर फिर अधम बना है, आता है तो जरूर उनको विजिटिंग रूम में बिठायेंगे। वा कहेंगे चले जाओ? जरूर पूछेंगे इतने दिन क्यों नहीं आये? कहेंगे माया से हार खा ली। ऐसे ढेर आते हैं। समझते हैं ज्ञान बहुत अच्छा था परन्तु माया ने हरा दिया। स्मृति तो रहती है ना। भक्ति में तो हारने और जीतने की बात ही नहीं रहती। यह नॉलेज धारण करने की है। अभी तुम बाप द्वारा सच्ची गीता सुनते हो जिससे देवता बन जाते। बिगर ब्राह्मण बने देवता बन नहीं सकते। क्रिश्चियन, पारसी, मुसलमानों में ब्राह्मण होते ही नहीं। यह सब बातें अभी तुम समझते हो।
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तुम जानते हो अल्फ को याद करना है। अल्फ को याद करने से ही बादशाही मिलती है। जब भी तुमको कोई मिले बोलो अल्फ अल्लाह को याद करो। अल्फ को ही ऊंच कहा जाता है। अंगुली से अल्फ का इशारा करते हैं ना! अल्फ को एक भी कहा जाता है। एक ही भगवान है। बाकी तो सब हैं बच्चे। बाप तो सदैव अल्फ ही रहते हैं। बादशाही करते नहीं। ज्ञान भी देते हैं, अपना बच्चा भी बनाते हैं तो बच्चों को कितनी खुशी में रहना चाहिए। बाबा हमारी कितनी सेवा करते हैं। हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। फिर खुद उस नई पवित्र दुनिया में आते ही नहीं। पावन दुनिया में उनको कोई बुलाते ही नहीं। पतित ही बुलाते हैं। पावन दुनिया में क्या आकर करेंगे। उनका नाम ही है पतित-पावन, तो पुरानी दुनिया को नया बनाने की उनकी ड्युटी है। बाप का नाम है शिव, और सालिग्राम बच्चों को कहा जाता है। उनकी पूजा होती है। शिवबाबा कह सब याद करते हैं। दूसरा ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा कहते तो बहुत हैं परन्तु उनको यथार्थ रीति जानते नहीं हैं। ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा शिव ने उनको एडाप्ट किया है। यह तो शरीरधारी है ना! ईश्वर की औलाद सब आत्मायें हैं। सब आत्माओं को अपना-अपना शरीर है। अपना-अपना पार्ट मिला है, जो बजाना ही है। यह परम्परा से चला आता है। अनादि अर्थात् उनका आदि-मध्य-अन्त नहीं। मनुष्य सुनते हैं, एण्ड होती है, तो फिर मूँझते हैं कि फिर बनेंगे कैसे? बाप समझाते हैं यह अनादि है। कब बने हैं, यह पूछने का नहीं रहता। प्रलय होती ही नहीं। यह भी गपोड़ा लगा दिया है। थोड़े मनुष्य हो जाते हैं इसलिए कहा जाता है जैसे प्रलय हो गई। बाबा में जो ज्ञान है वह अभी ही इमर्ज होता है। इनके लिए ही कहते हैं-सारा सागर स्याही (मस) बनाओ...... तो भी पूरा नहीं होगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
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धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपने हर्षितमुख मुखड़े से बाप का नाम बाला करना है। ज्ञान रत्न ही सुनने और सुनाने हैं। गले में ज्ञान रत्नों की माला पड़ी रहे। आसुरी अवगुणों को निकाल देना है।
2) सर्विस में कभी थकना नहीं है। उम्मीद रख शौक से सर्विस करनी है। विचार सागर मंथन कर उल्लास में रहना है।
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वरदान:
सर्व के गुण देखने वा सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाले गुणमूर्त भव!
सदा एकरस उमंग-उत्साह में रहने के लिए जो भी संबंध में आते हैं उन्हें सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा हो। जिसको भी देखो उससे हर समय गुण उठाते रहो। सर्व के गुणों का बल मिलने से उत्साह सदाकाल के लिए रहेगा। उत्साह कम तब होता है जब औरों के भिन्न-भिन्न स्वरूप, भिन्न-भिन्न बातें देखते, सुनते हो। लेकिन गुण देखने की उत्कण्ठा हो तो एकरस उत्साह रहेगा और सर्व के गुण देखने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:
बेहद के वैराग्य वृत्ति का फाउण्डेशन मजबूत हो तो सेकण्ड में अशरीरी बनना सहज है।
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