BK Murli Hindi 21 November 2016

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 21 November 2016

    21-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

    “मीठे बच्चे - संगदोष बहुत नुकसान करता, इसलिए संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करते रहो, यह बहुत खराब है”

    प्रश्न:

    तीन प्रकार का बचपन कौन सा है? किस बचपन को कभी भी नहीं भूलना?

    उत्तर:

    एक बचपन - लौकिक माँ बाप के पास जन्मते ही मिला। दूसरा बचपन - गुरू के शिष्य बनने पर हुआ और तीसरा बचपन लौकिक माँ बाप को छोड़ अलौकिक माँ बाप के बने। अलौकिक बचपन अर्थात् ईश्वर की गोद के बच्चे। ईश्वर के बच्चे बने अर्थात् मरजीवा बन गये। इस अलौकिक बचपन को कभी भी भूलना नहीं। अगर भूल गये तो बहुत रोना पड़ेगा। रोना अर्थात् माया की चोट खाना।

    गीत:-

    बचपन के दिन भुला न देना...

    ओम् शान्ति।

    मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत का अर्थ समझा। बचपन 3 प्रकार का है। एक लौकिक बचपन, दूसरा है निवृत्ति मार्ग का, वह भी घरबार छोड़ जीते जी मरकर गुरू के अथवा सन्यासियों के बनते हैं। वह उनका बाप नहीं है। वह गुरू के बनते हैं, उनके साथ रहते हैं। वह भी जीते जी मरकर जाए गुरू के बनते हैं, जंगल में चले जाते हैं। तीसरा है -तुम्हारा यह वन्डरफुल मरजीवा जन्म। एक मात-पिता को छोड़ दूसरे मात-पिता के बनते हो। यह है रूहानी मात-पिता। तुम्हारा यह मरजीवा जन्म है। ईश्वरीय गोद में रूहानी जन्म। तुम्हारे से अब रूहानी बाप बात कर रहे हैं। वह सब हैं जिस्मानी बाप। यह है रूहानी बाप इसलिए गाते हैं बाप का बनकर, मरजीवा बनकर फिर यह भूल न जाना। शिवबाबा है ऊंचे ते ऊंचा भगवान। जब कोई गीता आदि पर डिबेट करते हैं तो पहले-पहले यह बात पूछनी है तो ऊंचे ते ऊंचा भगवान कौन है? ब्रह्मा देवता नम:, विष्णु देवता नम: कहते हैं फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: ... वह सभी धर्म वालों का बाप है। पहले-पहले यह बात समझानी है - वह ऊंचे ते ऊंचा बाप एक है। ब्रह्मा, विष्णु को कोई गॉड फादर नहीं कहेंगे। पहले यह पक्का कराओ कि गॉड फादर एक है, वह निराकार है, जिसको क्रियेटर भी कहते हैं। पतित-पावन भी कहते हैं। बाप से तो जरूर वर्सा मिलेगा। यह ख्याल करो, बेहद के बाप से वर्सा किसको मिला। बाप है नई दुनिया का रचने वाला। उनका नाम है शिव। शिव परमात्मा नम: कहते हैं, उनकी जयन्ती भी मनाते हैं। वही पतित-पावन, रचयिता, नॉलेजफुल है फिर सर्वव्यापी की बात उड़ जाती है। उनकी महिमा है कर्तव्य पर। पास्ट में जो कर्तव्य करके जाते हैं, उनकी महिमा गाई जाती है। ऊंचे ते ऊंचा है बाप। उनको लिबरेटर भी कहते हैं, रहमदिल, दु:ख हर्ता सुख कर्ता भी कहते हैं, गाइड भी कहते हैं। कोई नये स्थान पर जाते हैं तो गाइड को साथ ले जाते हैं। विलायत से आते हैं तो उनको गाइड यहाँ का देते हैं। सब कुछ दिखलाने के लिए। तीर्थ यात्रा पर ले जाने वाले पण्डे होते हैं। अब बाप को गाइड कहते हैं तो जरूर गाइड किया होगा। सर्वव्यापी कहने से सारी बात खत्म हो जाती है। पहले-पहले समझाओ कि सबका बाप एक है। सर्वशास्त्रीमई शिरोमणी है गीता, वह है भगवान की गाई हुई। उनको सिद्ध कर लिया तो उनके बाल बच्चे सब झूठे सिद्ध हो जायेंगे। पहले-पहले सच्ची गीता का सार सुनाना चाहिए। शिव भगवानुवाच। 

    अब शिवबाबा के चरित्र क्या होंगे? वह तो सिर्फ कहते हैं, मैं इस शरीर का आधार ले तुमको पतित से पावन बनाने का रास्ता बताता हूँ। बच्चों को राजयोग सिखलाने आता हूँ, इसमें चरित्र क्या करेंगे। यह तो बुजुर्ग है। सिर्फ आकर बच्चों को पढ़ाते हैं। पतित को पावन बनाने राजयोग सिखलाते हैं। तुम सतयुग में जाकर राज्य करेंगे। तुमको वर्सा मिलता है, बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम, निराकारी दुनिया में होंगी। यह बिल्कुल सहज बात है। भारत में देवी-देवताओं का राज्य था। एक ही धर्म था। अभी कलियुग में कितने ढेर मनुष्य हैं, वहाँ बहुत थोड़े होते हैं। परमपिता परमात्मा एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश कराने आते हैं। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। वहाँ अपवित्र आत्मा कोई रह नहीं सकती। उनका नाम ही है पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता। यह है पुरानी दुनिया, आइरन एज। सतयुग को कहा जाता है गोल्डन एज। जो देवताओं के पुजारी हैं, वह सहज सब कुछ समझ जायेंगे। जो पूज्य हैं वही पुजारी बनते हैं। तो पहले बाबा का परिचय देना है, हम उनके बच्चे हैं, यह भूलो नहीं। भूलेंगे तो रोना पड़ेगा। कुछ-कुछ माया की चोट लग जायेगी। देही-अभिमानी बनना है। हम आत्माओं को वापिस बाप के पास जाना है। इतने ढेर मनुष्य मरेंगे फिर कौन किसके लिए रोयेगा? भारत में सबसे जास्ती रोते हैं। पहले 12 मास या हुसैन, या हुसैन... करते हैं। छाती पीटते रहते हैं। यह है मृत्युलोक की रसम-रिवाज, तुमको अब सारी अमरलोक की रसम-रिवाज सिखला रहे हैं। तुमको अब सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है। बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो। यह सब खत्म हो जाने वाले हैं। अब हम जा रहे हैं वापिस, नाटक पूरा होता है। नाटक में सभी एक्टर्स हैं फिर मोह किसमें रखेंगे। समझते हैं इनको जाकर दूसरा पार्ट बजाना है। रोने की क्या दरकार है। हर एक का पार्ट नूँधा हुआ है। जैसे बाप ज्ञान का सागर, आनंद का सागर, प्यार का सागर है तो बाप को फालो कर ऐसा बनना है। सागर से नदियां निकलती हैं। सब नम्बरवार हैं। कोई अच्छी वर्षा करते हैं, खूब आप समान बनाते हैं। अन्धों की लाठी बनते हैं। बाप को तो बहुत मददगार चाहिए। बाप कहते हैं - तुम अन्धों की लाठी बनो। सबको रास्ता बताओ। सिर्फ एक ब्राह्मणी को थोड़ेही अन्धों की लाठी बनना है। तुम सबको बनना है। तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, इसको कहा जाता है तीसरा नेत्र मिलने की कथा। दिव्य नेत्र है आत्मा के लिए। मनुष्य तो कुछ भी समझते नहीं। बिल्कुल तुच्छ बुद्धि हो गये हैं। भारतवासी यह नहीं जानते कि हमारा धर्म किसने स्थापन किया। बाप का जन्म भी यहाँ ही होता है। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। फिर सर्वव्यापी कैसे हो सकता।

     बाप और रचना को दुनिया में कोई नहीं जानते। ऋषि मुनि सब नेती-नेती करते गये। एक ही बड़ी भूल की है जो परमात्मा को सर्वव्यापी कह दिया है। तुम सिद्ध कर बताओ कि वह सर्व का बाप है, पतित-पावन, लिबरेटर है। पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले जाते हैं। वहाँ दु:ख की बात नहीं होती। शास्त्र में तो क्या-क्या लिख दिया है। लक्ष्मी-नारायण के लिए भी कहते हैं - क्या वहाँ उनको विकार बिना बच्चा पैदा होगा? अरे कहा ही जाता है सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, वाइसलेस वर्ल्ड। इनको कहा जाता है विशश वर्ल्ड, फिर कैसे कहते हो वहाँ भी विकार होगा। पहले-पहले जब तक बाप को नहीं जाना है तो कुछ समझ न सकें। सर्वव्यापी की बहुत भारी भूल है। उस भूल से निकलें तब जब बाप को जानें। निश्चय करें कि बाबा हम आपके फिर से बने हैं, आपसे राज्य-भाग्य लेने के लिए। शास्त्र में तो क्या-क्या लिख दिया है। लक्ष्मी-नारायण को दिखाते हैं सतयुग में और बचपन के राधे-कृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। अब कृष्ण तो था स्वर्ग का प्रिन्स। फिर कृष्ण के जन्म बाई जन्म फीचर्स तो बदलते जाते हैं। एक जैसे फीचर्स तो कभी हो न सकें। ऐसे थोड़ेही कृष्ण फिर उन्हीं फीचर्स से द्वापर में आ सकता है, इम्पासिबुल है।

    तुम जानते हो हम असुल में वहाँ के (मूलवतन के) रहवासी हैं, वह हमारा स्वीट साइलेन्स होम है, जिसके लिए भक्ति करते हैं। कहते हैं हमको शान्ति चाहिए। आत्मा को आरगन्स मिले हैं पार्ट बजाने के लिए, फिर शान्ति में कैसे रहेंगे। शान्ति के लिए ही हठयोग सीखते हैं, गुफाओं में जाते हैं। एक मास कोई गुफा में बैठा तो क्या उनके लिए वह शान्तिधाम है। तुम जानते हो अब हम शान्तिधाम में जाकर फिर सुखधाम में आयेंगे, पार्ट बजाने। वो लोग कहते हैं जो सुखी हैं उनके लिए स्वर्ग है, जो दु:खी हैं उनके लिये नर्क है। तुम जानते हो स्वर्ग नई दुनिया और नर्क पुरानी दुनिया को कहा जाता है। भगवानुवाच, यह भक्ति, यज्ञ-तप, दान-पुण्य आदि करना - यह सब है भक्ति मार्ग, इनमें कोई सार नहीं। सतयुग त्रेता को ब्रह्मा का दिन कहा जाता है। ब्रह्मा का दिन सो तुम ब्राह्मणों का दिन, फिर तुम्हारी रात शुरू होती है। तुम पहले-पहले सतयुग में जाते हो फिर तुम ही चक्र में आते हो। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तुम ही बनते हो। तुम कहते हो शिव भगवानुवाच और वह कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच। फर्क लम्बा है। वह पूरे 84 जन्म लेते हैं। उनके साथ सारी सूर्यवंशी सम्प्रदाय पुनर्जन्म लेते-लेते अब फिर अन्त में राज्य भाग्य ले रहे हैं। तुम बच्चे जो समझते हो, उनको ही मज़ा आता है। नये को मज़ा नहीं आयेगा। तुम किसकी निंदा नहीं करते हो, बाप तुम्हें कितना सहज समझाते हैं। यहाँ तुम बाबा के संग बैठे हो तो अच्छा समझते हो। बाहर जाने से संग में पता नहीं क्या हाल होगा। संगदोष बहुत खराब है। स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। उनका नाम ही है स्वर्ग, बैकुण्ठ, सुखधाम। शास्त्र में तो लिख दिया है कि वहाँ भी असुर थे। अब तुमको मालूम पड़ा है कि हम विश्व के मालिक थे, वहाँ जमीन आसमान कोई में भी पार्टाशन नहीं रहता। अभी तो कितने पार्टाशन हैं। अपनी-अपनी हदें डालते रहते हैं। दुनिया में कितने झगड़े होते हैं। तो जब कोई भी आये तो पहले-पहले उनको समझाओ कि बाप कौन है, भगवान किसको कहा जाता है? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं देवतायें। भगवान एक होता है, 10 नहीं होते। कृष्ण भगवान हो न सके। भगवान कैसे ाहिंसा सिखलायेंगे। भगवानुवाच - काम महाशत्रु है, उन पर जीत पाने के लिए प्रतिज्ञा करो। राखी बाँधो। यह अभी की बात है। जो कुछ पास्ट हो गया है वह फिर भक्ति मार्ग में होगा। दीपमाला पर महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। यह थोड़ेही किसको पता है कि लक्ष्मी-नारायण दोनों ही इकùे हैं। लक्ष्मी को धन कहाँ से मिलेगा?

    कमाई करने वाला तो पुरूष होता है ना। नाम लक्ष्मी का गाया हुआ है। पहले लक्ष्मी पीछे नारायण। वह फिर महालक्ष्मी को अलग समझ लेते हैं। उनको 4 भुजा दिखाते हैं। दो स्त्री की, दो पुरूष की। परन्तु वह इन बातों को जानते नहीं हैं। तुम अब डीटेल में जानते हो।

    तो गीत सुना - बचपन के दिन भुला न देना। आत्मा कहती है - बाबा हमको अब स्मृति आई है। सवेरे-सवेरे उठकर बाप से बातें करनी चाहिए। अमृतवेले बाप को याद करना अच्छा है ना। शाम के टाइम एकान्त में जाकर बैठो। भल आपस में स्त्री-पुरूष इकट्ठे हो तो भी यह बातें करते रहो। शिवबाबा ब्रह्मा के तन से क्या कहते हैं। हम जब पूज्य बनते हैं तो बाबा को याद नहीं करते थे। जब पुजारी बनते हैं तो बाप को याद करते हैं। ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए, जो कोई सुने तो वन्डर खाये। आधाकल्प हम काम चिता पर बैठ जलकर भस्म हो गये थे, कब्रदाखिल हो गये थे। अब हमको ज्ञान चिता पर बैठना है, स्वर्ग में जाना है। यह पुरानी दुनिया है। भारतवासी समझते हैं यह स्वर्ग है। अरे स्वर्ग तो सतयुग में होता है। स्वर्ग में देवी-देवताओं का राज्य था। यहाँ तो माया का पाम्प है। अब बाबा कहते हैं संगदोष में आकर कहाँ मर नहीं जाना। नहीं तो बहुत पछतायेंगे। इम्तहान की रिजल्ट जब निकलती है तो सबको मालूम पड़ जाता है। आगे बच्चियां ध्यान में जाकर सब कुछ सुनाती थी कि यह रानी बनेंगी, यह दासी। फिर बाबा ने बन्द कराया। पिछाड़ी में सब कुछ मालूम पड़ जायेगा कि हमने बाप की कितनी सर्विस की! कितनों को आप समान बनाया! वह सब याद आयेगा, साक्षात्कार होगा, बिना साक्षात्कार के धर्मराज भी सजा दे न सके। बच्चों को बार-बार समझाया है मामेकम् याद करो। बाप आकर मीठे-मीठे झाड़ का सैपलिंग लगाते हैं। वो गवर्मेन्ट झाड़ों का सैपलिंग लगाती है। उत्सव मनाते हैं। यहाँ नई दुनिया का सैपलिंग लग रहा है। तो ऐसे बाप को भूलो मत। बाप की सर्विस में लग जाओ, नहीं तो अन्त में बहुत पछताना पड़ेगा। अभी वर्सा नहीं लिया तो कल्प-कल्पान्तर का हिसाब हो जायेगा, इसलिए पुरूषार्थ फुल करना है। अच्छा-

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) जैसे बाप ज्ञान का, आनंद का, प्यार का सागर है ऐसे बाप समान बनना है और आप समान बनाने की सेवा करनी है। सबको ज्ञान का तीसरा नेत्र देना है।

    2) ऐसा कोई भी संग नहीं करना है जो पछताना पड़े। संगदोष बहुत खराब है इसलिए अपनी सम्भाल करनी है। बाप से वर्सा लेने का पूरा पुरूषार्थ करना है।

    वरदान:

    कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से मुक्त रहने वाले सहजयोगी स्वत: योगी भव!

    जो महावीर बच्चे हैं उन्हें साकारी दुनिया की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकार्षित नहीं कर सकती। वे स्वयं को एक सेकण्ड में न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हैं। डायरेक्शन मिलते ही शरीर से परे अशरीरी, आत्म-अभिमानी, बन्धन-मुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले ही सहजयोगी, स्वत: योगी, सदा योगी, कर्मयोगी और श्रेष्ठ योगी हैं। वह जब चाहें, जितना समय चाहें अपने संकल्प, श्वांस को एक प्राणेश्वर बाप की याद में स्थित कर सकते हैं।

    स्लोगन:

    एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहना - यही तपस्वी आत्मा की निशानी है।



    ***OM SHANTI***