BK Murli Hindi 31 January 2018

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 31 January 2018

    31-01-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


    ''मीठे बच्चे - बाप तुम्हें ऐसा बेहद का सुख देने आये हैं जो फिर कुछ भी मांगने की दरकार नहीं रहेगी सिर्फ 5 भूतों को जीतो तो विश्व का मालिक बन जायेंगे''

    प्रश्न:

    सहज मार्ग होते हुए भी धारणा न होने का कारण क्या है?

    उत्तर:

    अवज्ञायें। बाप तो सभी बच्चों में विश्वास रखते हैं कि बच्चे ब्राह्मण कुल का नाम बाला करें। भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार बनें। परन्तु बच्चों से बार-बार अवज्ञायें हो जाती हैं, जिस कारण धारणा नहीं होती, फिर पद कम हो जाता है। बाबा कहते बच्चे सीढ़ी लम्बी है इसलिए हर कदम श्रीमत लेते रहो।

    गीत:-

    बड़ा खुशनसीब हूँ...  

    ओम् शान्ति।

    बच्चों को बेहद का बाप एक ही बार मिलता है, बेहद का सुख देने के लिए। फिर और कोई चीज़ मांग नहीं सकते। भक्ति मार्ग में तो भक्त भगवान से, देवताओं से, साधू सन्यासियों से मांगते रहते हैं। जब बेहद का बाप मिल जाता है तो फिर सब कुछ मिल जाता है। बाप स्वर्ग का मालिक बना देता है और क्या चाहिए। बुद्धि से काम लेना है। इस मनुष्य सृष्टि में सबसे ऊंचे ते ऊंचा पद मिलता है सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण को, इससे और कोई पद ऊंच है ही नहीं। तो मांगना बन्द हो जाता है। लक्ष्मी-नारायण के साथ प्रजा भी तो होगी। यथा राजा रानी तथा प्रजा... अब स्वर्ग में इतना ऊंच पद उन्हों को किसने दिया? बाप ने। कब? संगम पर। और कोई दे न सके। इस ड्रामा चक्र पर अच्छी रीति समझाना चाहिए। अब है कलियुग। इसके बाद सतयुग आना है तो सिवाए बाप के कौन बता सकता है। बाप बैठ सृष्टि चक्र का राज़ समझाते हैं। हरेक वस्तु पहले नई फिर पुरानी होती है। वैसे सृष्टि की भी स्टेजेस हैं। अब तमोप्रधान पुरानी दुनिया है। अनेक धर्मो के कितने झगड़े हैं। बाप कहते हैं सभी झगड़े मिटाकर एक धर्म की स्थापना करना मेरा काम है। मैं खुद अपना परिचय देने तुम बच्चों को ब्रह्मा तन से बैठ समझाता हूँ। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का तो आकार है। मनुष्य का भी साकार रूप है। बाकी ऊंचे ते ऊंचे परमात्मा का न आकार है, न साकार है। उनको निराकार कहा जाता है। जैसे आत्मा निराकार है तो निराकार आत्मा कहती है मेरा बाप भी निराकार है। वही एक सभी का बाप ठहरा, बाकी सबके ऊपर शारीरिक नाम है। लक्ष्मी-नारायण का भी नाम है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी सूक्ष्म शरीर का नाम है। सिर्फ एक ही निराकार परमात्मा है जिसका नाम शिव है। कहते हैं मैं परम आत्मा तुम बच्चों को भी आप समान बनाता हूँ। मुझ ज्ञान सागर से तुम भी सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज जान जाते हो। प्यार का सागर भी बनाता हूँ। देवतायें प्यार के सागर हैं ना। उन्हों को सभी कितना प्यार करते हैं। सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान ही मुख्य है। बाकी तो है मूलवतन, सूक्ष्मवतन, चक्र सृष्टि का गिना जाता है, जो चार युगों में घूमता है। सतयुग में 16 कला फिर त्रेता में 14 कला में आते हैं। जैसे-जैसे जन्म लेते जाते हैं, कलायें कम होती जाती हैं। अब तो देवी-देवता धर्म ही प्राय:लोप है। एक भी मनुष्य नहीं जिसके मुख से निकले कि हम सूर्यवंशी कुल के हैं। और सभी धर्म वाले अपने-अपने धर्म को जानते हैं। अभी फिर से बाप तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। इस समय कलियुग है पतित दुनिया, इसको पावन तो बाप ही बनायेंगे। यह झाड़, गोला तो अंधों के लिए आइना है। आगे चल तुम्हारे पास जब बहुत आने लगेंगे तो उन्हों को देख और भी आयेंगे। कोई दुकान पर बहुत ग्राहक होते हैं तो उन्हों को देख और भी आते हैं कि यहाँ अवश्य अच्छा माल होगा। वह मशहूर हो जाता है। अभी तुम इतने नामीग्रामी नहीं हुए हो क्योंकि यह नई चीज़ है। बाम्बे में चिमिन्यानंद के पास बहुत जाते हैं। उनका अखबार में भी पड़ता है। यहाँ तो सिर्फ सुनते हैं पवित्र रहना होगा तो वायरे (कन्फ्यूज़) हो जाते हैं। स्त्री पुरुष इकट्ठे रहकर पवित्र रहें, इम्पासिबुल। आग और कपूस है। स्त्री तो नर्क का द्वार है, उनके साथ रहने से नर्क में चले जाते हैं। परन्तु अपने को नर्क का द्वार नहीं समझते। तो मनुष्यों को मुश्किल लगता है परन्तु यहाँ तो तुमको भीती मिलती है - अगर 5 भूतों को जीतेंगे तो स्वर्ग का मालिक बनेंगे। बाम्बे में एक बच्चा आता था, उसने पवित्रता की प्रतिज्ञा की थी तो उनके घर में बहुत झगड़ा चलता था। एक बच्ची जाती थी क्लास करने तो उनका भाई कहता था वहाँ जायेंगे तो मार डालेंगे। वह बच्ची कहती थी मुझे परमपिता परमात्मा का फरमान है - नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाओ। तो मैं अपना धन्धा तुम्हारे कहने से थोड़ेही छोडूँगी। तुमको जो करना है सो करो। ऐसी बहादुर बच्चियां कम हैं। कहाँ-कहाँ विकार के लिए मातायें भी हंगामा करती हैं। परन्तु जो महावीर हैं वह जीत पाते हैं। ऐसे बहादुर मेल्स भी हैं तो फीमेल्स भी हैं। गृहस्थ व्यवहार में रह पवित्र रहना यह और ही अच्छा है। उनको ही महारथी कहा जाता है। भल कोई इस जन्म में ब्रह्मचारी रहते हैं परन्तु अगले जन्म के तो पाप सिर पर हैं। सिर्फ काम विकार नहीं है और भी बहुत पाप होते हैं। देह-अभिमान है तो पाप अवश्य होते हैं। जो मनुष्य खुद ही मांस, शराब आदि खाते हैं वह दूसरों की सद्गति कैसे करेंगे। सद्गति माना शान्ति और सुख में जाना। यहाँ तुम दु:ख में हो, पतित हो तब गुरू चाहते हो। शान्ति है निर्वाणधाम में। स्वर्ग में है सुख, नर्क में है दु:ख। यह बातें बाप ही समझाते हैं। तो इनका सपूत बच्चा बन वर्सा लेना चाहिए। अब तुमको वापिस जाना है तो पवित्र भी जरूर बनना पड़े। मरने समय भी कहते हैं भगवान को याद करो तो ऊपर चले जायेंगे, फिर वापिस आयेंगे नहीं। परन्तु ऐसे तो है नहीं। कोई को पता ही नहीं है कि ऊपर जाने का मंत्र कौन दे सकता है।

    बाबा कहते हैं मैं आकर तुमको इस माया से छुड़ाता हूँ। तुम तो जितना छूटने की करेंगे, उतना फँसते जायेंगे इसलिए मेरी श्रीमत पर चलो। अपनी आसुरी मत बन्द कर दो। अपनी मत पर चला गोया वह दुर्गति को पाने का पुरुषार्थ करते हैं। आखिर अधोगति को पा लेते हैं। वह सारा बाप को हरेक की चलन से पता पड़ जाता है। जैसे तीर्थो पर जाते हैं तो झट मालूम पड़ जाता है - यह बीमार है, ठण्डी सहन नहीं कर सकेगा। खुद भी कहते हैं मैं थक गया हूँ। कमर टूट गई है, तो इससे समझ लेते हैं कि इनकी तकदीर में शायद है नहीं। अब यह है बेहद की बात, जब श्रीमत छोड़ अपनी मत पर चलते हैं तो चाल चलन उनकी बदल जाती है। फिर मुख से रत्न के बदले पत्थर निकलने लगते हैं। तो जो जमा किया था उसका घाटा हो पड़ता है। बाबा कहेंगे ऐसा बच्चा शल (कभी) कोई न निकले। महारथियों को भी माया ऐसा पकड़ती है जो बात मत पूछो। समाचार तो बाबा के पास आता है। लिखते हैं फलाना बहुत अच्छा चल रहा था, अब माया बिल्ली ने पकड़ लिया है। नहीं आते हैं तो उनको अपना फोटो भेज दो कि देखो तुमने प्रतिज्ञा की थी, अब आइने में अपना मुँह देखो। बोलो, लक्ष्मी-नारायण को वरने लायक हो? माया ऐसी है जो सपूत के बदले कपूत बना देती है। गिरते हैं तो तकदीर को लकीर लगा देते हैं। देह-अभिमान बड़ा प्रबल है। धनवान हूँ, ऐसा हूँ, झट देह-अभिमान आ जाता है। तो बेहद के बाप की भी नहीं मानते हैं। यह भी ड्रामा कहेंगे। फिर बच्चों को लिखना पड़ता है कि इनको संजीवनी बूटी सुँघाओ। मुरली सुनाओ तो ग्रहण हट जाये। हम सभी शिवबाबा की सर्विस में हैं। मकान बनाना भी बाबा की सर्विस है। बाप बच्चों की सर्विस करने आये हैं। बादशाही देते हैं तो बच्चों को भी बाप की सर्विस का फुरना रखना चाहिए। गॉडली सर्विस करना तो बहुत सहज है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कुछ न कुछ टाइम निकाल सर्विस करनी चाहिए। कोई न कोई अन्धे को रास्ता बता आना चाहिए। फिर कोई न कोई निकल पड़ेगा। अच्छा।

    जैसी सर्विस वैसा उजूरा बाप देते हैं। बाप बच्चों पर विश्वास रखते हैं कि बच्चे ब्राह्मण कुल का नाम बाला करेंगे। भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार जरूर बनना है। बाप तो सबका कल्याणकारी, क्षमा का सागर है। कोई भागन्ती हो फिर आ जाते हैं तो भी बाप कहेंगे अच्छा फिर से ज्ञान उठाओ। सीढ़ी जरा लम्बी है। मार्ग सहज है परन्तु अवज्ञायें करने कारण धारणा नहीं होती। नतीजा क्या होता है? पद कम मिल जाता है। तुम ब्राह्मण बच्चों जैसा महान भाग्यशाली इस समय का पदमपति भी नहीं होगा। तुम्हारे हर कदम में पदम हैं। अच्छा।

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    रात्रि क्लास 17-6-68

    मीठे-मीठे बच्चे जब यहाँ आते हैं तो समझते हैं हम बाबा के पास जाते हैं। बाबा से सुनते हैं। जब अपने अपने सेन्टर पर जाते हैं तो सामने बापदादा नहीं बैठते हैं। कहाँ-कहाँ गोप भी क्लास चलाते हैं। मुरली तो सहज है। कोई भी धारण कर क्लास करा सकते हैं। ब्राह्मणियाँ बैठी तो हैं। बाबा पूछते हैं कोई मुरली पढ़कर फिर मुरली का सार सुनाते हैं? जो मुरली हाथ में उठाकर सुनाते हैं वह हाथ उठावे। जो मुरली हाथ में नहीं लेते लेकिन मुरली का सार ऐसे ही सुनाते हैं, वह भी हाथ उठावें। मुरली हाथ में तो होनी चाहिए ना! पढ़े हुए हैं फिर सारा बैठ सुनाते हैं। कोई मुरली पढ़कर सुनाते हैं नम्बरवार तो हैं ना। महारथी, घोड़ेसवार और प्यादे। सभी तो एक्यूरेट नहीं पढ़ते हैं। कोई तो पढ़ते भी रहते हैं, एडीशन कर रहस्य भी सुनाते रहते हैं। सभी ऐसे नहीं समझा सकते। यहाँ तो बाप बैठे हैं। बाप बच्चों को कहते हैं कोई बात में संशय नहीं होना चाहिए। एक बाप ही सभी कुछ सुनाते हैं। उन स्कूलों में तो अनेक पढ़ाने वाले हैं। अलग अलग पढ़ाते। यहाँ तो एक ही पढ़ाते हैं। एक ही एम आब्जेक्ट है। इसमें प्रश्न पूछने का रहता नहीं। सुबह को यहाँ बैठ बच्चों को याद की यात्रा में मदद करता हूँ। ऐसे नहीं सिर्फ तुमको याद करता हूँ। सारे बेहद के बच्चे याद रहते हैं। तुमको इस याद से सारे विश्व को पावन बनाना है। अंगुली तुम किसमें देते हो? पवित्र तो सारी दुनिया को बनाना होता है ना। तो बाप सभी बच्चों पर नज़र रखते हैं। सभी शान्ति में चले जायें। सभी को अटेन्शन खिंचवाते हैं। जिनका योग है वह उठाते हैं। बाप तो बेहद में ही बैठेंगे। मैं आया हूँ सारी दुनिया को पावन बनाने। सारी दुनिया को करेन्ट दे रहा हूँ तो पवित्र हो जायें। जिनका योग होगा समझेंगे बाबा अभी बैठ याद की यात्रा सिखला रहे हैं जिससे विश्व में शान्ति होती है। बच्चों को भी याद किया जाता है। वह भी याद में रहते हैं तो मदद मिलती है। अच्छी रीति याद करते हैं वह थोड़े हैं। मददगार बच्चे भी चाहिए ना। खुदाई खिदमतगार। निश्चयबुद्धि से याद करेंगे ना। तुम्हारी पहली सबजेक्ट है यह पावन बनने की। गोया तुम बच्चे निमित्त बनते हो बाप के साथ। बाप को बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ। अभी वह अकेला क्या करेगा? खिदमतगार चाहिए ना? तुम जानते हो विश्व को शान्त बनाकर उस पर राज्य करेंगे। ऐसी बुद्धि होगी तब नशा चढ़ा हुआ होगा। तुम बच्चों को भारत को हेविन बनाना है। तुम जानते हो बाप की श्रीमत से, हम अपने योगबल से अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। नशा रहना चाहिए। स्थूल जैसी बात तो नहीं है। यह है रूहानी। बच्चे समझते हैं हर कल्प बाप इस रूहानी बल से हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। यह भी समझते हैं शिव बाबा ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। दुनिया को यह भी पता नहीं है परमपिता परमात्मा नई दुनिया की स्थापना करते हैं; कब, कैसे, बिल्कुल ही नहीं जानते हैं। गीता में भी आटे में लून है। बाकी तो सभी झूठ ही झूठ है। बाप आकर सत्य बताते हैं। भारत का योगबल तो नामी-ग्रामी है। बहुत जाते हैं भारत का सिखलाने। बाप कहते हैं हठयोगी राजयोग सिखा न सके। परन्तु आजकल तो झूठ बहुत है ना। सच के आगे इमीटेशन बहुत होती है इसलिए सच को कोई मुश्किल जान सकते हैं। अच्छा। गुडनाईट। रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:

    1) श्रीमत को छोड़ कभी भी मनमत पर नहीं चलना है। मुख से रत्न के बजाए पत्थर नहीं निकालने हैं।

    2) बाप की सर्विस का फुरना रखना है। समय निकाल ईश्वरीय सेवा जरूर करनी है। अन्धों को रास्ता बताना है। सपूत बनना है।

    वरदान:

    मन को श्रेष्ठ पोजीशन में स्थित कर पोज़ बदलने के खेल को समाप्त करने वाले सहजयोगी भव!

    जैसी मन की पोजीशन होती है वह चेहरे के पोज़ से दिखाई देती है। कई बच्चे कभी-कभी बोझ उठाकर मोटे बन जाते हैं, कभी बहुत सोचने के संस्कार के कारण अन्दाज से भी लम्बे हो जाते हैं और कभी दिलशिकस्त होने के कारण अपने को बहुत छोटा देखते हैं। तो अपने ऐसे पोज़ साक्षी होकर देखो और मन की श्रेष्ठ पोज़ीशन में स्थित हो ऐसे भिन्न-भिन्न पोज़ परिवर्तन करो तब कहेंगे सहजयोगी।

    स्लोगन:

    खुशियों के खान की अधिकारी आत्मा सदा खुशी में रहती और खुशी बांटती है।



    ***OM SHANTI***

    No comments

    Say Om Shanti to all BKs