BK Murli Hindi 25 February 2018

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 February 2018

    25-02-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 04-05-83 मधुबन

    “सदा एक मत, एक ही रास्ते से एकरस स्थिति”


    आज बापदादा वतन में सर्व बच्चों के प्रति रूह-रिहान करते मुस्करा रहे थे। किस बात पर? सभी बच्चे विश्व में चैलेन्ज करते हैं मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा सेकेण्ड में प्राप्त कर सकते हैं। यह चैलेन्ज करते हो ना! वैसे अनुभव से देखो दिव्य बुद्धि जो हर ब्राह्मण को बर्थ डे की गिफ्ट मिली है, ब्राह्मण, नाम-संस्कार हुआ और दिव्य बुद्धि की गाडली गिफ्ट बापदादा द्वारा मिली। उस दिव्य बुद्धि के आधार पर सोचो ज्ञान भी सेकेण्ड का है। रचयिता और रचना। अल्फ और बे, और योग भी सेकण्ड का है - मैं बाप का, बाप मेरा। दिव्यगुणधारी बनना, यह भी सेकेण्ड की बात है क्योंकि जैसा जन्म, जैसा कुल वैसी धारणा स्वत: और सहज होती है! ईश्वरीय कुल है तो गुण अर्थात् धारणायें भी ईश्वरीय होंगी ना। ब्राह्मण जन्म ऊंचे ते ऊंचा जन्म तो धारणा भी ऊंची होगी ना। तो धारणा भी सेकेण्ड की है। जैसा बाप वैसे बच्चे। और सेवा भी सेकेण्ड की बात है। अनुभवी बन खज़ानों के अधिकारी बन बाप का परिचय देना है! जो अपने पास है वह दूसरों को देना सेकेण्ड की और सहज बात है। तो बापदादा देख रहे थे कि सेकेण्ड की बात में इतना समय चलते हुए, चाहे दो मास के ब्राह्मण हैं वा बहुत समय के ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण अर्थात् सेकेण्ड में वर्से के अधिकारी। तो सेकेण्ड के अधिकारी फिर अधीन क्यों बन जाते। क्या अपने अधिकार के स्थिति रूपी सीट पर सेट होना नहीं आता। आराम की सीट को छोड़ हलचल की बे आरामी में क्यों आते! सीट छोड़ते क्यों जो बार-बार सेट होने की मेहनत करते। सीट से उतरे और सर्वशक्तियों की प्राप्ति गई। श्रेष्ठ सीट अर्थात् स्थिति पर सेट होने से अधिकारी-पन की अथॉरिटी है। जब सीट छोड़ दी तो अथॉरिटी कहाँ से आई! सीट से उतर अपनी शक्तियों को आर्डर करते इसलिए वह आर्डर मानती नहीं। फिर सोचते हैं, हूँ तो मास्टर सर्वशक्तिवान लेकिन शक्तियाँ काम नहीं करती। क्या दास का आर्डर दास मानेगा वा मालिक का आर्डर दास मानेगा? और फिर चेहरा क्या बन जाता? जैसे कमजोर शरीर वाले का चेहरा पीला हो जाता है क्योंकि वह खून की शक्ति नहीं, ऐसे कमजोर आत्मा उदास बन जाती। 

    ज्ञान भी सुनेगा, सेवा भी करेगा लेकिन उदास रूप में। खुशी की शक्ति, सर्व प्राप्तियों की शक्ति खत्म हो जाती है। दास सदा उदास ही रहेगा। दास आत्मा की और क्या विशेष हँसाने वाली बातें होती हैं? छोटी सी बातों में बोलते कनफ्यूज़ हो गये हैं, मूँझ गये हैं। जैसे ऑखों की नज़र कम हो जाती है ना, तो एक चीज़ के बजाए दो दो, तीन तीन चीज़ें दिखाई देती हैं और उसी में कनफ्यूज़ हो जाते हैं कि यह सही है या वह सही है। ऐसे कमजोर आत्मायें एक रास्ते के बजाए दूसरे रास्ते भी देखते हैं। एक श्रीमत के साथ-साथ और मतें भी दिखाई देती हैं। फिर सोचते कि यह करें वा वह करें। यह यथार्थ है वा वह यथार्थ है! जब है ही एक रास्ता, एक श्रेष्ठ मत तो यह करें, क्या करें, यह क्वेश्चन ही नहीं। कनफ्यूज़ क्यों नहीं होंगे, स्वयं ही दो बनाए दुविधा में आते हैं। तो यह विचित्र चाल देख बापदादा मुस्करा रहे थे। बापदादा कहते सीट पर स्थित रहो तो एकरस रहेंगे लेकिन चंचल बच्चे के समान बार-बार चक्कर लगाने के अभ्यासी फिर कहते माया का चक्र आ गया। कनफ्यूज़ होने का कोई आधार ही नहीं है। लेकिन व्यर्थ, कमजोर संकल्पों के आधार ले लेते हैं। जब है ही व्यर्थ और कमज़ोर आधार तो फिर रिज़ल्ट क्या होगी! यह अटकेंगे, यह लटकेंगे यह नीचे गिरेंगे। फिर चिल्लायेंगे बाबा मैं आपका हूँ, आप शक्ति दे दो। सीट पर सेट रहो तो ज्ञान सूर्य के शक्तियों की किरणें आपके सीट की छत्रछाया स्वत: ही, सदा ही प्राप्त है। सीट से नीचे उतर व्यर्थ वा कमजोरी के संकल्पों की दीवार खड़ी कर देते। व्यर्थ संकल्प एक नहीं आता। एक सेकेण्ड में एक से अनेक संकल्प पैदा हो जाते और उसी से अनेक ईटों की दीवार बन जाती है इसलिए ज्ञान सूर्य के शक्तियों की किरणें पहुँच नहीं सकती और फिर कहते मदद नहीं मिलती, शक्ति नहीं आती। खुशी नहीं आती वा याद रहती नहीं। आ ही कैसे सकती! तो बापदादा पुराने नये जो ऐसा खेल करते हैं उन्हों का खेल देख मुस्करा रहे थे। सेकेण्ड की बात को इतना मुश्किल क्यों बना दिया है। एक रास्ता, एक मत उसको छोड़ मनमत, परमत उसको मिक्स क्यों करते हो! अपने कमजोरी के बनाये हुए रास्ते, ऐसे तो होता ही है, ऐसा तो चलता ही है - इन रास्तों को स्वयं ही बनाए फिर स्वयं ही भूल भूलैया के खेल में आ जाते हैं। मंजिल से दूर हो जाते हैं। ऐसे करते क्यों हैं? या सोच रहे हो, हो जाता है, करते नहीं लेकिन हो जाता है। होता भी क्यों है? बीमारी क्यों आती हैं? बदपरहेज़ वा कमज़ोरी से, वा यह कहेंगे कि बीमारी आ जाती है? न कमजोर बनो, न मर्यादाओं की परहेज से वा मर्यादाओं की लकीर से बाहर आओ। क्या अभी तक यही खेल करने है? विश्व-कल्याण के ठेकेदार इतने बड़े आक्यूपेशन वाले और यह बच्चों के खेल खेलते, यह कब तक? विश्व आपका इन्तजार कर रहा है कि शान्ति के दूत आये की आये। हमारे देव, हमारे ऊपर शान्ति की आशीर्वाद वा कृपा करने के लिए आये कि आये। ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला के घण्टियां बजाते। कभी तो चिमटे भी बजाते हैं, नगाड़े बजाते हैं। आओ, आओ करके पुकारते हैं। ऐसी देव आत्मायें अगर अपने बचपन के खेल में रहेंगी तो उन्हों की पुकार सुनेंगी कैसे इसलिए पुकार सुनो और उपकार करो। समझा क्या करना है। अच्छा - बाप भी समय का ख्याल रखता, आप लोग नहीं रखते।

    ऐसे सदा श्रेष्ठ समझदार, सदा एक मत, एक रास्ता पर चलने वाले, एकरस स्थिति में स्थित होने वाले, सदा सेकेण्ड के अधिकार को स्मृति में रख समर्थ आत्मा रहने वाले, व्यर्थ संकल्पों के खेल को समाप्त कर विश्व-कल्याण के श्रेष्ठ सेवाधारी - ऐसी महान आत्माओं सो देव आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

    कुमारियों के साथ:- 

    सभी कुमारियाँ अपने को शिव शक्तियाँ समझती हो? शक्तियाँ सदा कहाँ रहती हैं? शिव के साथ रहती हो ना! जो जिसके साथ रहते उसके संग का रंग तो उन पर जरूर लगेगा ना! तो जो बाप का गुण, जो बाप का कर्तव्य वही आपका है ना! बाप का कर्तव्य है सेवा, तो आप सभी सेवाधारी हो ना! सेवा करती हो या करनी है, सदा यह लक्ष्य रखो कि बाप समान बनना है। हर बात में चेक करो कि यह बाप का कर्म वा बाप का संकल्प, बोल है। अगर है तो करो। नहीं तो परिवर्तन कर दो क्योंकि साधारण कर्म आधाकल्प किया, अभी तो बाप समान बनना है। सभी बाप समान विश्व सेवाधारी हो ना? हद के नहीं। हिम्मत अच्छी है। हिम्मत और उमंग में आगे बढ़ रही हो। उमंग उल्लास ही सदा आगे बढ़ाता रहेगा।

    सदा उमंग और उल्लास में रहने वाले हर बात में नम्बरवन होंगे। याद में भी नम्बरवन, ज्ञान, धारणा सेवा सबमें नम्बरवन। ऐसे हो? नम्बरवन उमंग-उल्लास वाले घरों में कैसे रहेंगे! निर्बन्धन होंगे ना! सभी कौन हो? पिंजरे के पंछी हो या स्वतंत्र पंछी? पढ़ाई का पिंजरा है? मॉ बाप का पिंजरा है? ऐसे पिंजरों में बंधने वाली को नम्बरवन कैसे कहेंगे! अभी निर्बन्धन हो जाओ। जो शक्तिशाली आत्मायें होंगी उनके आगे कोई भी कुछ कर नहीं सकता। जैसे तेज़ आग जल रही हो तो उसके आगे कोई भी आयेगा नहीं, दूर भागेगा। आप भी योग अग्नि को ऐसा जगाओ जो कोई बन्धन डालने वाला सामने आ ही न सके। जैसे कोई जानवर को भगाना होता है तो आग जला देते हैं, आग के सामने कोई जानवर नहीं आ सकता। ऐसे लगन की अग्नि को तेज़ करो। अगर अभी तक बन्धन हैं तो लगन है लेकिन अग्नि नहीं बनी है। लगन है तब यहाँ पहुँची लेकिन लगन अग्नि बन जाए तो निर्बन्धन हो जाओ। लगन फुल फोर्स में हो। शक्तियाँ मैदान पर आओ। इतना बड़ा ग्रुप जो आया है तो जरूर कमाल करेगा ना! इतने हैन्डस निकल आवे तो वाह-वाह हो जाए। अच्छा!

    अव्यक्त महावाक्य

    “मन को कन्ट्रोल कर एकाग्रता की शक्ति बढ़ाओ”

    मन की एकाग्रता ही एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। एकाग्रता की शक्ति द्वारा अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव कर सकेंगे। एकाग्रता की शक्ति, मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देगी। एकाग्रता अर्थात् मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना समय एकाग्र कर लो। मन वश में हो। साकार रूप में फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए मन की एकाग्रता पर अटेन्शन दो, आर्डर से मन को चलाओ। मालिकपन के स्टेज की सीट पर, भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की सीट पर सेट रहो। मन में जब कोई कमजोर संकल्प उत्पन्न हो तो उसे वहाँ ही खत्म कर शक्तिशाली बनो। संकल्प रूपी फाउण्डेशन को मजबूत बनाओ तब अव्यक्ति कशिश आयेगी। मन की एकाग्रता के लिए सेकेण्ड बाई सेकेण्ड ड्रामा की पटरी पर चलते रहो। जिस रीति से, जैसा ड्रामा चल रहा है उसी के साथ-साथ मन की स्थिति चलती रहे। जरा भी हिले नहीं। मन अर्थात् संकल्प शक्ति को ब्रेक लगाने और मोड़ने की पॉवर हो। इससे बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं जायेगी, इनर्जी जमा होगी। जितना मन-बुद्धि की शक्ति जमा होगी उतना परखने वा निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी। मन को कन्ट्रोल करने के लिए मन को अर्पण कर पूरा सरेण्डर हो जाओ। फिर मन में अपने अनुसार संकल्प उठा नहीं सकते। जिसने मन भी बाप को दे दिया वह सहज मनमनाभव हो जायेंगे। मनमनाभव होने से सहज मोहजीत बन जायेंगे। मन को समर्पण करना अर्थात् व्यर्थ संकल्प, विकल्पों को समर्पण करना। जब मन में कोई संकल्प उत्पन्न होता है तो उसमें सच्चाई और सफाई हो। अन्दर में कोई भी विकर्म का, भाव-स्वभाव, पुराने संस्कारों का भी किचरा नहीं हो। जो ऐसा सच्चा होगा वह सबका प्रिय होगा। ऐसे सच्चे पर साहब भी राज़ी होता है। जब जैसी स्थिति बनाना चाहें वैसी स्थिति बनाने के लिए मन को ड्रिल करानी है। एक सेकेण्ड में आवाज में आयें, एक सेकेण्ड में आवाज से परे हो जाएं। एक सेकेण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आयें फिर एक सेकेण्ड में अशरीरी हो जायें। जब यह ड्रिल पक्की हो तब हर परिस्थिति का सामना कर सकेंगे।

    समय प्रमाण अब संकल्पों को समेटने की शक्ति धारण करो, संकल्पों के विस्तार का बिस्तर बन्द करते चलो तब औरों के संकल्पों को रीड कर सकेंगे। नयनों के इशारों से भी किसके मन के भाव को जान लेंगे। जैसे बापदादा के सामने आते हो तो बिना सुनाये हुए भी आप सभी के मन के संकल्प, मन के भावों को जान लेते हैं। वैसे ही आप बच्चों को भी यह अन्तिम कोर्स पढ़ना है। मन को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लगा रहे और कहाँ प्रयोग न हो। मन के संकल्प में भी माया से हार न हो, ऐसी स्थिति बनाने के लिए शुद्ध संकल्पों में पहले से ही मन को बिजी रखो। अगर मन शुद्ध संकल्पों से भरा हुआ है तो व्यर्थ संकल्प आ नहीं सकते, हार हो नहीं सकती। शुद्ध और एकाग्र संकल्पों की शक्ति से कैसे भी वायुमण्डल को बदल सकते हो। जैसे कई लोग अपने घर को सजाने के लिए अपने बचपन से लेकर, अपने भिन्न-भिन्न रूपों का यादगार रखते हैं। ऐसे आप अपने मन मन्दिर में अपने सम्पूर्ण स्वरूप की मूर्ति, भविष्य के अनेक जन्मों की मूर्तियां स्पष्ट रूप में सामने रखो फिर और कोई तरफ संकल्प नहीं जायेगा, स्वत: एकाग्र हो जायेगा। जैसे जब कोई ऐसा दिन होता है तो चलते-फिरते ट्रैफिक को भी रोक कर तीन मिनट साइलेन्स की प्रैक्टिस कराते हैं। सारे चलते हुए कार्य को स्टॉप कर लेते हैं। ऐसे आप भी कोई कार्य करते हो या बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करने का अभ्यास करो। एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को, चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करो तो संकल्प शक्तिशाली बन जायेंगे।

    पास विद आनर वही बनते हैं जो अपने संकल्पों की उलझन अथवा सजाओं से परे रहते हैं। धर्मराज के सजाओं की तो बात पीछे है। कई बच्चे अपनी गलती से स्वयं को स्वयं ही सजा देते हैं, व्यर्थ संकल्पों की रचना कर उसमें उलझ जाते हैं फिर पुकारते हैं, मूंझते हैं, अब इससे भी परे रहने की प्रतिज्ञा करो। मैजारिटी की कम्पलेन है कि कम्पलीट बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफान विघ्न डालते हैं। यह कम्पलेन समाप्त तब होगी जब रोज़ अमृतवेले सारे दिन के अपाइन्टमेंट की डायरी बनायेंगे। जब अपने मन को हर समय अपाइन्टमेंट में बिजी रखेंगे तो बीच में व्यर्थ संकल्प समय नहीं ले सकेंगे। तो समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो। जितना-जितना बाप की समानता के समीप आते जायेंगे तो सर्व आत्माओं के मन के संकल्पों को कैच कर सकेंगे। इसमें सिर्फ अपने संकल्पों की मिक्सचर्टी नहीं चाहिए। संकल्पों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। जैसे बाहर की कारोबार को कन्ट्रोल करते हो ऐसे मन के संकल्पों की कारोबार को कन्ट्रोल करो, इसके लिए सदैव स्मृति में रखो कि 1- मैं हर समय, हर सेकेण्ड, हर कर्म करते हुए स्टेज पर हूँ। 2- मेरा वर्तमान और भविष्य स्टेट्स क्या है!


    वर्तमान समय प्रमाण अब मन्सा महादानी बनो तब मन के संकल्पों पर सेकण्ड में विजयी बन सकेंगे। कोई कितना भी चंचल संकल्प वाला हो यानी एक सेकेण्ड भी उनका मन एक संकल्प में न टिक सके, ऐसे चंचल संकल्प वाले को भी अपनी विजय की शक्ति से टेप्रेरी टाइम के लिए भी उसे शान्त व चंचल से अचल बना दो। जब आपके संकल्पों में एकाग्रता आयेगी तब संकल्प से किसको बुला सकेंगे। किसको संकल्प से कार्य की प्रेरणा दे सकेंगे। जैसे बटन दबाने से टेलीवीज़न में सारा नज़ारा सामने आ जाता है वैसे ही आप जो संकल्प, जिसके लिए करेंगे उसकी बुद्धि में वही क्लियर चित्र खिंच जायेगा। इसके लिए श्रीमत की आज्ञा जो मिली हुई है वही संकल्पों में चलती रहे और कुछ भी मिक्स न हो। आप आलमाइटी गवर्मेन्ट के मैसेन्जर हो, कोई से भी डिस्कस में अपना माइन्ड डिस्टर्ब नहीं करना। किसी भी बात से अपने चेहरे पर वा मन की स्थिति में अन्तर नहीं लाना। मंत्र सदा याद रखना। जब कोई ऐसी बात सामने आये तो अपने आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मन्मनाभव का मंत्र प्रयोग करना तो वह बात समाप्त हो जायेगी।

    वरदान:

    बाबा शब्द की डायमण्ड ''की'' (चाबी) द्वारा सर्व खजाने प्राप्त करने वाले परमात्म स्नेही भव

    जो परमात्म स्नेही बच्चे हैं उन्हें बापदादा एक डायमण्ड शब्द की बहुत बढ़िया सौगात देते हैं - वह शब्द है ''बाबा''। इस चाबी को सदा साथ रखो तो सर्व खजानों की प्राप्ति हो जायेगी। इस चाबी की, की चेन है - सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप रहना। साथ-साथ प्रतिज्ञा के कंगन और सर्व गुणों के श्रृंगार से सजे सजाये रहो तब विश्व के आगे फरिश्ते रूप वा देव रूप में प्रख्यात होंगे।

    स्लोगन:

    बीती को पास करके, बापदादा के पास (समीप) रहो तो पास विद आनर बन जायेंगे।



    ***OM SHANTI***

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