Brahma Kumaris Murli Hindi 14 December 2022

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 14 December 2022

    Brahma Kumaris Murli Hindi 14 December 2022

    Brahma Kumaris Murli Hindi 14 December 2022

    14-12-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम त्रिकालदर्शी बने हो लेकिन यह अलंकार अभी तुम्हें नहीं दे सकते क्योंकि तुम पुरुषार्थी हो''

    प्रश्नः-

    गृहस्थ में रहते कर्म अवश्य करना है लेकिन किस एक बात की सम्भाल जरूर रखनी है?

    उत्तर:-

    कर्म करते, व्यवहार में आते अन्न की बहुत परहेज़ रखनी है। पतितों के हाथ का नहीं खाना है, अपने को बचाते रहना है। कर्म संन्यासी नहीं बनना है लेकिन परहेज़ जरूर रखनी है। तुम कर्मयोगी हो। कर्म करते बाप की याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे।

    ओम शान्ति। 

    बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। जब कोई गीता आदि सुनाते हैं तो कहते हैं यदा यदाहि... जब-जब धर्म की ग्लानि, अधर्म की वृद्धि होती है, तब भगवान आते हैं। बरोबर धर्म की ग्लानि होती है। ग्लानि माना निंदा... तो भारत में धर्म की ग्लानि और अधर्म की वृद्धि हो जाती है। मैं आता ही तब हूँ, जब यह हालत होती है। बहुत दु:ख है, मौत सामने खड़ा है। विनाश के लिए मूसल भी तैयार हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है, आदि सनातन धर्म की स्थापना करने। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना... बरोबर यह तीनों कर्तव्य अभी चल रहे हैं।

    अभी तुम ब्राह्मण हो और जानते हो अभी हम ब्राह्मण से फिर देवता बन रहे हैं। अभी शिवबाबा के पोत्रे हैं। शिवबाबा का एक बच्चा, एक से फिर तुम कितने बच्चे बनते जाते हो। पतितों को पावन बनाने की सेवा तुम कर रहे हो। यह है बेहद का यज्ञ। यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हुई थी। इस यज्ञ के बाद फिर कोई यज्ञ होगा ही नहीं। सतयुग त्रेता में कोई यज्ञ रचते ही नहीं। यज्ञ रचते ही हैं विघ्नों को हटाने के लिए। यह तो बहुत भारी विघ्न है, तो इसके लिए बड़ा यज्ञ चाहिए। यह है बेहद का यज्ञ। इसमें पुरानी दुनिया की सामग्री जो भी है सब स्वाहा होनी है। रुद्र अथवा शिवबाबा एक ही है। जैसे शिव का रूप है वैसे रुद्र का भी रूप है। श्रीकृष्ण तो साकारी है, इसका सच्चा-सच्चा नाम ही है शिव ज्ञान यज्ञ। शिवबाबा कहते हैं, रुद्र बाबा नहीं कहते हैं। भोला भण्डारी शिवबाबा को कहते हैं। यह है शिवबाबा का यज्ञ। उनसे हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिल रही है। तुम जानते हो हमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं ना। परन्तु यह है ज्ञान का तीसरा नेत्र जो तुम ब्राह्मणों को मिलता है, जिससे तुम देवता बनते हो। वहाँ तीसरे नेत्र की दरकार नहीं है। परन्तु तुमको तो दिखा नहीं सकते क्योंकि तुम पुरुषार्थी हो। चलते-चलते भाग जाते हो इसलिए जो फाइनल रिजल्ट वाले हैं उनको यह अलंकार दिये हैं। नहीं तो देवताओं के पास थोड़ेही शंख, चक्र आदि हैं। यह सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज तुमको सुना रहे हैं। उन्होंने फिर शास्त्रों में लिख दिया है कि स्वदर्शन चक्र से फलाने को मारा, यह किया। बाप कहते हैं मैं तो पतितों को पावन बनाने आता हूँ, इसमें हिंसा की तो बात ही नहीं है। देवताओं का है ही अहिंसा परमो धर्म। श्रीकृष्ण के लिए फिर हिंसा करना कैसे लिखा है। कैसे वन्डरफुल चित्र बनाये हैं। वहाँ ही गीता सुनाते, राजयोग सिखाते, वहाँ ही फिर किसको मारते हैं। बाप को तो याद करते ही इसलिए है कि आकर पतित दुनिया को पावन बनाओ, राजयोग सिखाओ। बाप कहते हैं ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल मैं हूँ। तुमको नॉलेज मिल रही है, इसको ही अमरकथा कहते हैं। वह तो शिवशंकर को एक कह देते हैं। शंकर सूक्ष्मवतनवासी, वह कैसे कथा सुनायेंगे। उनको तो नॉलेजफुल नहीं कहा जाता। शिवबाबा सारे सृष्टि चक्र का राज़ समझाते हैं। जो नॉलेज कोई के पास है नहीं। बाप धनी को न जानने के कारण ही आरफन बन पड़े हैं। लड़ते-झगड़ते रहते हैं। सतयुग में कोई झगड़ा होता ही नहीं। न रोना, न पीटना... इसलिए मोहजीत राजा की कथा सुनाते हैं। कथायें तो ढेर हैं। हर एक धर्म में किसम-किसम की कथायें हैं, जो सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। भक्ति करते हैं भगवान से मिलने लिए। आधाकल्प भक्ति करते आये हैं। भगवान तो किसको मिला ही नहीं। अब बाप ने तुम बच्चों को परिचय दिया है। तुम्हें फिर औरों को देना है। सन शोज़ फादर... तो बाप का परिचय दे सबको नॉलेज बताते रहते हो।

    तुम हर एक बच्चे की बुद्धि में है कि शिवबाबा हमारा रूहानी बाप है। यह भी भक्ति मार्ग वालों को समझाना है कि तुम्हारे दो बाप हैं। एक लौकिक बाप, दूसरा पारलौकिक बाप, जिसको गॉड फादर कहते हैं जिसने यह बेहद की रचना रची है। बाप से तो जरूर वर्सा मिलता होगा। वह है ही स्वर्ग की रचना रचने वाला। भारत स्वर्ग था। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्हों को यह राज्य किसने दिया? कलियुग अन्त में कोई भी विश्व का मालिक है नहीं। यह है ही रावण का राज्य, खुद भी कहते हैं हमको रामराज्य, नई देहली में दैवी राज्य चाहिए। रामराज्य है सतयुग-त्रेता। रावण राज्य है द्वापर कलियुग। द्वापर से ही भक्ति मार्ग शुरू होता है। विकार भी शुरू होते हैं, जिसकी निशानियाँ भी हैं। जगन्नाथपुरी के मन्दिर में बाहर देवताओं के गन्दे चित्र बनाये हैं। ताज तख्त आदि वही है, सिर्फ चित्र विकारी दिखाते हैं। जब देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो फिर धरती की उथल पाथल भी होती है। सोने-हीरे के महल सब नीचे चले जाते हैं। पूजा के लिए कितना भारी मन्दिर बनाया है, भक्ति मार्ग में। आपे ही पूज्य आपेही पुजारी। बाप समझाते हैं - मैं तो पुजारी नहीं बनता हूँ। अगर मैं बनूँ तो मुझे फिर पूज्य कौन बनायेगा? मैं न पतित बनता हूँ, न बनाता हूँ। पतित तुमको रावण बनाते हैं, जिसको जलाते आते हैं। इस समय पाप आत्माओं की दुनिया है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर कह देते पतित-पावन सीताराम। झट त्रेता वाले राम की याद आ जाती है। अब वह तो पतित-पावन नहीं है। बाप यह सब बातें समझाते हैं। तुम सब सीतायें हो, द्रोपदियाँ हो। एक की बात नहीं है। द्रोपदी को 5 पति दिखाते हैं। ऐसी बात है नहीं। भारत ही प्राचीन पवित्र खण्ड था क्योंकि पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है। उसने यहाँ आकर पतित नर्कवासियों का उद्धार किया है। सब धर्म वाले गॉड फादर को याद करते हैं क्योंकि सब तमोप्रधान हैं। इब्राहिम, बौद्ध आदि सब इस समय हाज़िर हैं। पहला नम्बर ब्रह्मा भी पतित दुनिया में है तो और कोई वापस कैसे जा सकता। सभी इस समय कब्रदाखिल हैं। बाप आकर सबको गति सद्गति देते हैं। सतयुग में भारत पवित्र था। देवताओं के आगे गाते भी हैं आप सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी... हम विकारी हैं। इस समय सब विकारी हैं, सबको निर्विकारी बनाने बाप को आना पड़ता है। तो पतित-पावन बाप ठहरा, न कि पानी की नदियाँ। पतित-पावन ज्ञान सागर से निकली हुई यह ज्ञान गंगायें। शिव शक्ति सेना है। शिव से ज्ञान का कलष मिलता है। बाप कहते हैं - बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। कर्म भी जरूर करना है। यह है ही कर्मयोग। कर्म-संन्यास तो नहीं हो सकता। वह समझते हैं घर में खाना नहीं बनाते, भीख पर गुज़ारा करते हैं, इसलिए कर्म संन्यासी हैं। वह तो फकीर ठहरे। अन्न तो विकारियों का पेट में पड़ता है, तो अन्नदोष लग जाता है। पतित घर से भल निकल जाते हैं फिर भी जन्म तो पतित घर में लेना पड़ता है। तुमको भी अन्न असर करेगा, इसलिए परहेज रखी जाती है। पतित का अन्न नहीं खाना चाहिए। जितना हो सके अपने को बचाते रहो। कोई का बहुत झगड़ा भी हो जाता है। एक भाई ज्ञान में आता, दूसरा नहीं आता ऐसे बहुत केस होते हैं। इतना बेहद का राज्य लेते हो तो जरूर कुछ झगड़े होंगे। कोई भी हालत में तुमको अपना बचाव रखना है। मुक्ति तो कोई पाते नहीं हैं। गपोड़े मारते रहते हैं हम ज्योति ज्योत में लीन होंगे। समझाते-समझाते आखिर उन्हों की बुद्धि में भी आयेगा कि यह बात ठीक है। सतयुग की आयु अगर लाखों वर्ष होती तो संख्या बहुत बढ़ जाती। अभी तो संख्या और ही सबसे थोड़ी है क्योंकि कनवर्ट हो गये हैं और धर्मों में। देवता धर्म वाले हैं सूर्यवंशी। राम को फिर क्षत्रिय की निशानी दे दी है। अभी तुम रूहानी क्षत्रिय हो। माया पर जीत पाते हो, इसमें समझने की बड़ी बुद्धि चाहिए। योग भी बड़ा सहज है। आत्माओं का योग लगता है परमपिता परमात्मा के साथ। योग आश्रम तो बहुत हैं परन्तु वह सब हठयोग कराते हैं। यह थोड़ेही कहते हैं परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाओ। तुम बच्चे जानते हो - बाबा हमको दलाल के रूप में मिले हैं। कहते हैं - मामेकम् याद करो तो खाद निकल जायेगी। याद करते-करते तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे।

    बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे दुनिया का हाल देखो क्या हो गया है। तुम जो विश्व के मालिक थे, अब बेगर बन पड़े हो फिर बेगर टू प्रिन्स बनना है। भारत बेगर है। पतित राजायें, पावन महाराना-महारानी के मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं। निराकार शिवबाबा की पूजा करते हैं। जरूर कुछ किया होगा। कितने मन्दिर हैं। तुम अभी जानते हो 5 हजार वर्ष पहले भी आकर राजयोग सिखाया था। तुमने अनेक बार राज्य लिया है और गँवाया है। अब फिर शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, दु:खधाम को भूलते जाओ। यह सब विनाश होना है। फिर तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा बेहद का बाप भी हूँ, तुमको बेहद का वर्सा देने आया हूँ। तुम्हारी दिल में खुशी है, हम अपनी राजधानी श्रीमत पर स्थापन कर रहे हैं। परन्तु है सारा गुप्त। रावण पर जीत पानी है। गाया भी जाता है माया जीते जगत जीत। 5 विकारों पर जीत पानी है। 5 विकारों का संन्यास करना है। खिवैया तो एक बाप है। सबकी सद्गति करने वाले सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा है। भारत में गुरू तो बहुत हैं। हर एक स्त्री का पति भी गुरू है। फिर इतनी दुर्गति क्यों हुई है? कह देते हैं सब ईश्वर के रूप हैं। हम ईश्वर हैं। फिर योग किससे लगायें? फिर तो भक्ति ही बन्द हो जाये। फिर हे भगवान कह किसको बुलाते हैं? साधना किसकी करते हैं? खुद ईश्वर थोड़ेही कभी बीमार पड़ता है। परन्तु कोई पूछने वाला नहीं है। डरते रहते हैं, श्राप न मिल जाये। वास्तव में श्राप देने वाला है रावण। बाप तो वर्सा देते हैं। रावण दुश्मन है इसलिए जलाते रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण के चित्र को कब जलाते हैं क्या? बिल्कुल नहीं। रावण क्या चीज़ है - अभी तुमको मालूम पड़ा है। सतयुग में पावन प्रवृत्ति में सुख था। अभी पतित प्रवृत्ति में दु:ख है। अभी इसका विनाश होना है। तुम देखेंगे अर्थक्वेक आदि होती रहेंगी। बाबा भी कहाँ तक बैठ शिक्षा देंगे? लिमिट होगी ना। राजाई स्थापन होगी और विनाश होगा। अन्त में तुम बहुत मज़े देखेंगे, शुरूआत से भी जास्ती। वह तो पाकिस्तान था। अभी तो विनाश का समय है। तुमको बाबा बहुत कुछ दिखायेंगे। फिर जो अच्छी रीति नहीं पढ़े हुए होंगे वह अन्दर फथकते रहेंगे। क्या कर सकते हैं? अभी जितना पुरुषार्थ करना है कर लो, बाल-बच्चों को तो सम्भालना ही है। कायर नहीं बनना है। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। बाप को याद करते रहना है। बस इसमें ही मेहनत है। पापों का बोझा सिर से कैसे उतरे? उसके लिए है सहज योग। यह है ज्ञान बल, योगबल जिससे माया पर विजय पाकर विश्व के मालिक बनते हो। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) श्रीमत पर ज्ञान और योगबल से माया पर विजय पानी है। विनाश के पहले अपने विकर्मों को विनाश करना है।

    2) बेहद का राज्य लेने के लिए हर बात में अपना बचाव करते रहना है। अन्नदोष से बहुत सम्भाल करनी है।

    वरदान:-

    संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाने वाले सम्पूर्ण ज्ञानी योगी भव

    संगमयुग परमात्म स्नेह का युग है। इस युग के महत्व को जानकर स्नेह की अनुभूतियों में समा जाओ। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों की थालियां भरकर दे रहे हैं, तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ, सम्पन्न बनो। ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, इससे सदा सजे सजाये रहो क्योंकि यह स्नेह ही योग है और स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है। ऐसे रूहानी स्नेह का सदा अनुभव करने वाले ही सम्पूर्ण ज्ञानी-योगी हैं।

    स्लोगन:-

    जो व्यर्थ की फीलिंग से परे रहता है वही मायाजीत बनता है।

    Brahma Kumaris Murli Hindi 14 December 2022

    ***OM SHANTI***

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